Header Ads

ड्रैकुला 19

 

ड्रैकुला 19

जब कुछ घंटे बीत गये, तो मैंने काउंट के कमरे में कुछ हलचल सुनी— जैसे कोई ज़ोर से रोया हो और फौरन ही वह आवाज़ दबा दी गई और फिर सन्नाटा छा गया। गहरा भयानक सन्नाटा, जिसने मेरे रोंगटे खड़े कर दिये। धड़कते हुए दिल से मैंने दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन मैं अपने क़ैदख़ाने में क़ैद था, और कुछ नहीं कर सकता था।

मैं बैठ गया और बस रोने लगा।

जैसे ही मैं बैठा, मैंने परिसर में कोई आवाज़ सुनी, किसी औरत के तड़प कर रोने की आवाज़। मैं दौड़ कर खिड़की पर आया और उसे खोल कर सलाखों में से बाहर झाँकने लगा। वहाँ सच में एक औरत थी, जिसके बाल बिखरे हुए थे— वह अपने सीने पर हाथ रखे थी, जैसे दौड़ने की वजह से बेकाबू हुई साँसों को क़ाबू में लाने की कोशिश कर रही हो। वह दरवाजे की चौखट के किनारे पर झुकी हुई थी। जैसे ही उसने खिड़की में से मेरा चेहरा देखा, वो अचानक आगे बढ़ी और धमकी भरी आवाज़ में चिल्लाई, “राक्षस, मेरा बच्चा लौटा दे!”

वह अपने घुटनों पर गिर पड़ी और अपने हाथ ऊपर उठा लिये, और रोते हुए बार बार यही शब्द दोहराने लगी— और उसके शब्दों ने मेरे दिल को झकझोर दिया। फिर वह अपने बाल नोचने लगी और अपनी छाती पीटने लगी। फिर एकाएक उसने चीखना चिल्लाना बंद कर दिया और आगे झुक गई, और हालांकि मैं उसे देख नहीं पा रहा था, लेकिन मैं दरवाजा पीटने की आवाज़ सुन सकता था।

कहीं ऊपर से, शायद मीनार से, मैंने काउंट की पुकार सुनी, वही कठोर धातुई फुसफुसाहट। ऐसा लगा, कहीं दूर से भेड़ियों ने हुआ कर उसकी पुकार का जवाब दिया। कई मिनट पहले उनका एक झुंड किसी सैलाब की तरह परिसर में घुस आया।

अब औरत के रोने की आवाज़ नहीं आ रही है, और भेड़ियों का हुआना भी कम हो गया है, वे बहुत पहले ही अपने होंठों पर ज़ुबान फिराते हुए जा चुके हैं।

मैं उसके लिये कुछ नहीं कर सकता था, क्योंकि मुझे पता था की उसके बच्चे का क्या हुआ होगा, और शायद वह भी मर चुकी होगी।

मैं क्या करूंगा? मैं क्या कर सकता हूँ? मैं रातों के इस खेल, उदासी और डर से कैसे छुटकारा पाऊँ?

25 जून

सुबह— कोई व्यक्ति, जिसने रात को झेला नहीं है, समझ ही नहीं सकता कि किसी के दिल और आँखों को सुबह कितनी प्यारी लग सकती है। आज सुबह जब सूरज इतना ऊंचा उठ आया है कि मेरी खिड़की के सामने के रास्ते के शीर्ष पर रखा मालूम पड़ रहा है, तो मुझे ऐसा लग रहा है कि वह मेरे जीवन में उम्मीद का नया उजाला भर रहा है। मेरा डर मेरे ऊपर से हट चुका है जैसे कि यह कोई धुंध की पोशाक थी, जो गर्मी पा कर पिघल गई। जब तक दिन का उजाला मुझे हिम्मत दे रहा है, मुझे कोई कदम उठाना होगा। कल रात मेरा एक पूर्व लिखित पत्र डाक में जा चुका होगा, उस जानलेवा सिलसिले की पहली कड़ी, जो धरती से मेरे वजूद के निशान मिटाने वाला है।

मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिये। कुछ करना चाहिये!

जब भी मुझे डराया या परेशान किया गया है, या मैं किसी ख़तरे में पड़ा हूँ, हमेशा रात का ही वक़्त रहा है। मैंने आज तक काउंट को दिन की रोशनी में नहीं देखा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि जब सब लोग जाग रहे होते हैं, वह सोता है? काश! मैं बस उसके कमरे में जा पाता! लेकिन कोई रास्ता नज़र नहीं आता। दरवाजा हमेशा बंद रहता है। मेरे लिये कोई रास्ता नहीं है।

हाँ, एक रास्ता है, अगर कोई उससे जाने की हिम्मत करे। जहां उसका शरीर जा सकता है, दूसरा कोई शरीर क्यों नहीं जा सकता? मैंने उसे अपनी खिड़की से रेंग कर बाहर आते अपनी आँखों से देखा है। तो मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता, और उसकी खिड़की से उसके कमरे में क्यों नहीं घुस सकता? इसमें खतरा होगा, लेकिन यहाँ रहने से बड़ा खतरा नहीं होगा। मैं खतरा उठाऊंगा। ज़्यादा से ज़्यादा मेरी मौत ही तो हो जायेगी, और यहाँ पर रहना क्या कम डरावना है। भगवान इस काम में मेरी मदद करे! अलविदा मीना, अगर मैं असफल रहा तो अलविदा, मेरे वफादार दोस्त और पिता समान। सबको अलविदा, और अंत में अलविदा मीना!

उसी दिन, बाद में— मैंने कोशिश की, और भगवान की मदद से, सुरक्षित इस कमरे में वापस भी आ गया। मैं सारा विवरण क्रमानुसार लिखता हूँ। अपनी हिम्मत के ताज़ा रहते हुए ही मैं सीधा दक्षिण की तरफ की खिड़की पर गया, और सीधा उस किनारे से बाहर चला गया। पत्थर खुरदरे हैं और उनके बीच का गारा समय की मार खा कर झड़ गया है। मैंने अपने जूते उतार दिये, और खतरनाक रास्ते पर चल पड़ा। मैंने एक बार नीचे देखा, कि भयानक गहराई पर अचानक नज़र पड़ने से मुझ पर खौफ तारी न हो जाये, लेकिन फिर अपनी आँखें उधर से बचाये ही रखीं। मुझे काउंट की खिड़की की दिशा और दूरी का अच्छी तरह अंदाज़ा था, और मैं अपनी क्षमता भर मौके का भरपूर फायदा उठाते हुए उधर बढ़ गया। मुझे चक्कर नहीं आया। मुझे लगता है कि मैं बहुत उत्साहित था और ऐसा लगा कि मुझे उसकी खिड़की तक पहुँचने में हास्यास्पद रूप से बहुत ही कम वक़्त लगा था और मैं वहाँ पहुँच कर खिड़की को खोलने का प्रयास करने लगा।

हालांकि जब मैंने झुक कर खिड़की में पैर डाले और अंदर फिसल गया तो मैं बहुत उत्तेजना महसूस कर रहा था। फिर मैं चारों ओर काउंट को तलाश किया, लेकिन आश्चर्य मिश्रित खुशी से मैंने एक खोज की। कमरा खाली था! यह मुश्किल से कुछ अजीब सी वैसी ही चीजों से सजा हुआ था— जिन्हें, लगता था कि कभी इस्तेमाल ही नहीं किया जाता था। फर्नीचर कुछ-कुछ वैसा ही था, जैसा दक्षिणी कमरों में था, और वह धूल से अटा पड़ा था। मैंने चाबी ढूँढ़ीं, लेकिन वह ताले में नहीं लगी थी, और वह मुझे कहीं नहीं मिली। मुझे बस एक कोने में पड़ा सोने का ढेर मिला, हर तरह के सोने के सिक्के, रोमन, और ब्रिटिश, और आस्ट्रियाई, और हंगेरियाई, और ग्रीक, और तुर्क, सब पर धूल की परत चढ़ी हुई, जैसे जाने कब से वहीं पड़े हैं। उनमें से कोई भी तीन सौ साल से कम पुराना नहीं था। वहाँ ज़ंजीरें और गहने भी थे, कुछ में नगीने जड़े थे, लेकिन सब के सब सोने के थे और धूल से अटे थे।

कमरे के एक कोने में एक भारी सा दरवाजा था। मैंने उसे खोलने की कोशिश की, क्योंकि अब तक मुझे कमरे की या बाहर के दरवाजे की चाबी नहीं मिली थी, जो मेरी खोज का मुख्य लक्ष्य था। मुझे आगे तहक़ीक़ात करनी थी, वरना मेरी सारी कोशिशें बेकार चली जातीं। यह खुला हुआ था, और एक पथरीले गलियारे से गुज़र कर आगे घुमावदार सीढ़ियाँ थीं, जो सीधे नीचे तक चली गई थीं।

क्रमशः


No comments