विषकन्या
दूर दूर तक फैली
रेतीली मिट्टी... साये प्रतीत होते मीनार गुम्बद, खामोश खड़े उस सवार को तक रहे थे जो काली पोशाक में लिपटा सफेद
शाही घोड़े पर सवार तेज हवाओं को काटता चला जा रहा था।
क्षितिज पर काले
बादल थे— न चांद था न सितारे... बस खमोश सी काली रात पसरी हुई थी। हवा तेजी से पंख
फड़फड़ा रही थी— मेघ बरस पड़ने को आतुर थे। जैसे ही हवांग ची मिन्ह का इलाका शुरू हुआ, आबादी से बाहर ही
डेरा डाले पड़ी फौज दिखने लगी। तमाम खेमे लगे हुए थे... बहुत से चपटी नाक और नाटे कद
वाले सिपाही पहरा दे रहे थे।
उसे शुरूआत में
ही रोक लिया गया।
उसने फौरन म्यान
से शाही तलवार निकाली और एक सिपाही को थमा दी। सिपाही झुक कर तलवार लिये चला गया।
थोड़ी देर बाद वह
वापस लौटा और उसे पीछे चलने का इशारा किया... सवार घोड़े से उतर कर उसके पीछे चल पड़ा।
वह एक शाही खेमे
के बाहर रुके— सिपाही बाहर ही रुक गया... सवार आज्ञा लेकर भीतर प्रवेष कर गया जहां
परम्परागत चीनी लिबास में ढका एक शख्स हाथ बांधे चहलकदमी कर रहा था... वह हवांग ची
मिन्ह का शासक फूचांग शाहू था।
”जियांग जिन की मलिका क्या यहां मुकाबले से पहले शिकस्त कबूल
करने आई है।“ फूचांग शाहू के होंठों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान नाच उठी।
काले लिबास वाले
ने नकाब खींच दी... जैसे ओस से धुला चेहरा बेपर्दा हो गया। यह जियांग जिन की मलिका
शेंग ली थी जिसके नाजुक होंठों पर हमेशा कातिलाना मुस्कराहट बनी रहती थी और जिसकी नशीली
आंखों में हमेशा साजिशों के सांप लहराते थे।
”शायद ।“ शेंग ली की आवाज उससे कहीं ज्यादा नशीली थी, ”मेरी सल्तनत एक
मामूली रियासत है जिसमें हवांग ची मिन्ह जैसी बड़ी बादशाहतों से टकराने की जोरोकूवत
नहीं। मैं तुमसे यही कहने आई हूं कि मैं जंग नहीं चाहती जो हमें बर्बाद कर दे। यही
समझ लो कि मैं अपनी शिकस्त कबूल करती हूं।“
फूचांग शाहू का
चेहरा खुशी से लाल हो गया।
”क्या चाहती हो तुम?“
”वापस लौट जाओ— मैं तुम्हारा नजराना भिजवा दूंगी।“
”तुम्हारी बात मानने की वजह।“ कहते हुए मलिका के तन पर टिकी फूचांग
शाहू की आंखों में सुर्ख साये तैर गये।
शेंग ली की आंखों
में तैरते साजिशों के नाग जोर से फुफकारे... उसके गुलाब की पुखुड़ियों से अधरों पर अबूझ
सी मुस्कराहट फैल गई। उसने अपने लिबास की कोई डोर खींची और लिबास उसके पैरों में धराशायी
हो गया। कुंदन चमक उठा... उसके केले के तने जैसे स्निग्ध, सुगठित, स्वर्णिम शरीर की
चमक से फूचांग शाहू की निगाहें चुंधियां गईं। ली की आमंत्रण देती भुजायें उठीं और फूचांग
शाहू दुनिया भूल कर उनमें समा गया।
रात्रि के तीसरे
पहर...
फुचांग शाहू विश्राम
शय्या पर नीला हुआ औंधा पड़ा हुआ था— उसके प्राण पखेरू कभी के उड़ चुके थे। सन्नाटे ने
पूरी तरह पांव पसारे हुए थे। अंगड़ाई लेती शेंग ली उठी... काले लिबास में तन को छुपाया
और खेमे से बाहर आ गई।
थोड़ी देर बाद वह
अपनी रियासत की ओर उड़ी चली जा रही थी।
सोलहवी सदी का शुरूआती दौर... षाड् सभ्यता में पनपती छोटी बड़ी रियासतें... हवांगहो नदी के किनारे जियांग जिन का क्षेत्र था जहां शेंग ली का अधिपत्य था । नदी के पार शूंग यंग का राज था। हवांगहो के समूचे क्षेत्र में वह अकेली औरत थी जो शासन कर रही थी और इस ओहदे को पाने के लिये उसने क्या नहीं किया था और इसीलिये वह इसे मिटते नहीं देख सकती थी।
जियांग की राजधानी
कीन्शू के एक मध्यम वर्गीय क्षेत्र में रहने वाली एक वेश्या की बेटी थी वह... जवान
हो के अपने जिस्म को हथियार उसने भी बनाया लेकिन अपनी मां की तरह नहीं क्योंकि उसके
पास अपनी मां से ज्यादा दिमाग था। उसने सल्तनत के अमीरों, ओहदेदारों को फांसा
जो राज दरबार में प्रभावी थे... जिन्होंने न सिर्फ उसका खर्च चलाया बल्कि उसकी पहुंच
राज दरबार तक बनाई। उस वक्त चाऊ लौंग की हुकूमत का दौर था। शेंग ली को खुशी होती थी
कि उसे लोग बदनाम, चरित्रहीन
सही मगर ताकतवर समझते थे। यहीं वह अपनी मामूली वेश्या मां से आगे थी।
उसका सबसे अचूक
हथियार था— उसका जिस्म... जिससे वह प्रभावी लोगों को ही अपना निशाना बनाती थी। चाऊ
का बड़ा खानदान था लेकिन बड़ा होने के कारण सल्नतन उसके हाथ में थी। उससे छोटे लिमहो
को शेंग ली ने अपने आकर्षण का शिकार बनाया और यहां उसके जीवन की पहली साजिश बनी
... चाऊ की हत्या की साजिश... जो उसके भाई ने ही बनाई थी।
उसके निर्देश पर
ही शेंग ली ने अपनी मोहक अदाओं का जादू चाऊ पर चलाना शुरू किया और चाऊ ज्यादा देर तक
उसके आकर्षण से बचा नहीं रह सका। हालांकि वह शादीशुदा था और उसके दो बच्चे भी थे लेकिन
शेंग ली ने अपनी पहुंच उसके बिस्तर तक बना ली थी। फिर एक दिन लिमहो के दिये जहर को
अपने स्तनों पर मल कर वह चाऊ की गोद में लेटी थी और चाऊ उसे चाटता मर गया था।
हालांकि इस हत्या
के बारे में सीधे-सीधे तो कोई नहीं जान पाया लेकिन शक उसी पर किया गया जिसके कारण लोगों
में उसके खिलाफ रोष फैलना शुरू हुआ तो कुछ दिनों के लिये उसे कीन्शू से बाहर शरण लेनी
पड़ी। इस बीच लिमहो गद्दी पर बैठा। उसने छः महीने हुकूमत की... आखिरी महीने में शेंग
ली वापस पहुंची और अपने खूबसूरत शरीर के बल पर दरबारियों को विश्वास में लेना शुरू
किया। चाऊ के आठ भाइयों में से लिमहो को छोड़ छः और थे... उसने पांच भाइयों को कत्ल
करवा दिया लेकिन एक भाई चांग बच गया । लिमहो की छः महीने की हुकूमत के बाद वही भाई
लिमहो को कत्ल कर के बादशाह बन बैठा लेकिन सिर्फ ढाई महीने बाद ही दरबार के एक ताकतवर
अधिकारी ने उसे मार कर गद्दी खुद हथिया ली लेकिन उसकी दस महीने की हुकूमत ने हर आदमी
को उसके खिलाफ खड़े होने पर मजबूर कर दिया। सौदा इस बार भी शेंग ली से हुआ लेकिन इस
बार कीमत थी राजसिहांसन... चाऊ के बेटे के बड़े होने तक के लिये। दरबारी इस शर्त से
सहमत थे।
फिर शेंग ली ने
वही किया जो चाऊ के साथ किया था। मीकाहो रात उसके साथ लेटा तो लेकिन सुबह जहर से नीला
पड़ा मरा पाया गया।
शेंग ली को गद्दी
नशीन कर दिया गया।
और यूं एक वेश्या
की बेटी एक रियासत की मलिका बन गई। हालांकि जनता में... सेना में बड़ा विरोध हुआ लेकिन
यह विरोध वक्त के साथ ठंडा पड़ता गया। जब लोगों का ध्यान उधर से हट गया तो उसने अपने
जहरीले स्तनों का इस्तेमाल उनके खिलाफ किया जो दरबार में ऊंचे पदों पर थे लेकिन हमेशा
उसका विरोध किया करते थे और उनके खत्म होते ही उसने चाऊ के बेटों को एसे कत्ल कराया
कि किसी को कानों कान खबर न हुई ।
फिर वह निर्बाध
हुकूमत करने में व्यस्त हो गई ।
और अब... उसकी ताजपोशी
के ठीक डेढ़ साल बाद— हवांगहो के किनारे बसी रियासतों में से एक हवांग ची मिन्ह का शासक
फूचांग शाहू जियांग जिन में एक औरत को शासन करते देख हमले पर आमादा हो उठा था। उसे
यकीन था कि कुछ ही दिन में जियांग जिन में उसका राज होगा ।
शेंग ली जानती थी
कि वह उससे टक्कर नहीं ले सकती थी इसलिये फूचांग शाहू के खिलाफ भी उसने अपना सबसे पसंदीदा
हथियार... अपने जहरीले स्तनों का इस्तेमाल किया था और अब फूचांग षाहू इस दुनिया से
रुख्सत हो चुका था।
सुबह सूरज निकलने
तक वह कीन्शू पहुंच गई।
पहुंचते ही वह जियांग
जिन की सारी सेना को हवांग ची मिन्ह को कूच का आदेश दे कर वह खुद भी जंग के लिये तैयार
होने लगी । तकरीबन दिन के दूसरे पहर वह पूरी सेना के साथ चल पड़ी... उन्हें मैदाने जंग
तक पहुंचते शाम हो गई और उन्होंने नदी किनारे ही डेरा डाल दिया। हालांकि हवांग ची मिन्ह
की सेना में राजा की मौत से वैसे भी हड़कम्प मचा हुआ था और वह लड़ने को तैयार न थे...
लेकिन सुबह होते ही शेंग ली के सैनिक पूरे जोरो जलाल से ची मिन्ह की सेना पर टूट पड़े।
हालांकि वहां ची मिन्ह की सेना संख्या में काफी ज्यादा थी लेकिन नेत्रत्व के अभाव में
बिखरी और टूटी हुई थी। आखिरकार सैंतीस घंटे की इस लड़ाई के बाद जब शेंग ली की आधी सेना
बची... तब ची मिन्ह की सेना ने हथियार डाल दिये और यूं शेंग ली के हाथ एक और राज्य
आ गया।
और अब वह पहले की
अपेक्षा कहीं ज्यादा शक्तिशाली थी ।
ढलती शाम... जब
सूरज डूबने की तैयारी कर रहा था तब... शेंग ली शाही महल के शाही कक्ष में शाही शय्या
पर निर्वस्त्र पड़ी थी। उसका दूधिया शरीर कमरे में उजाला भर रहा था। वह विचार पूर्ण
मुद्रा में आंखें बन्द किये चित पड़ी थी। उसके सोचने का तरीका यही था।
दरवाजे पर दस्तक
हुई तो उसकी आंख खुली।
”मैं हूं— शाइतैन।“ बाहर से आवाज आई।
”आ जाओ।“
शाइतैन उसका खास
मुंहलगा दरबारी था जिसे शेंग ली के बिस्तर तक पहुंच हासिल थी। उसकी आमद पर शेंग ली
ने शरीर ढकने की जरूरत न समझी। वह आया और शेंग ली के नग्न शरीर पर नजर पड़ते ही उसकी
आंखों में चमक भरती चली गई लेकिन शेंग ली की तेज नजरों ने उसे सर झुकाने पर मजबूर कर
दिया।
”शाइतैन... जानते हो मैंने इस वक्त क्यों बुलाया है। आज मैंने
एक नई बात सोची... अगर कल तक जियांग जिन जैसी छोटी सी रियासत की मलिका हवांग ची मिन्ह
जैसी बड़ी रियासत की हुक्मरान बन सकती है तो... हम हवांगहो के किनारे बसी तमाम रियासतों
पर भी कब्जा कर सकते हैं ।“ कहते हुए उसकी आवाज में जो उम्मीदें थी वह शाइतैन को कंपा
गई ।
”लेकिन उनमें बहुत सी रियासतें हमसे कहीं ज्यादा बड़ी और ताकतवर
हैं... हम इस मन्सूबे में नाकाम भी हो सकते हैं।“ शाइतैन ने डरते-डरते कहा।
”कुछ नहीं होगा— नाकामी हमारी किस्मत में नहीं।“ वह उठ कर चहलकदमी
करने लगी, ”अब तो हमें सिर्फ
कामयाब होना है। माना कि तमाम रियासतें हमसे बड़ी और ताकतवर हैं लेकिन हम अगर सबकुछ
एक योजना बना कर करें तो कुछ भी गलत नहीं होगा। जाओ... पहले उन रियासतों के बारे में
पता करो जो हमसे छोटी और कमजोर हैं... जहां आपसी झगड़े चलते हों... जहां सत्ता हथियाने
की साजिशें चलती हों। हम पहले वहां हमला करेंगे और वह आसानी से हमारे कब्जे में आ जायेंगी
और इस तरह हमारी ताकत इतनी बढ़ जायेगी कि हम उन रियासतों को भी जीत सकें जो हमसे बड़ी
हैं... हमसे ताकतवर हैं।“
”कहीं एसा न हो मलिका कि यह मन्सूबा हमें खाक में मिला दे।“
”सिर्फ मेरा कहा मानों,“
शेंग ली का स्वर सख्त हो उठा, ”जाआ।“
तैयारियां शुरू
हो गईं... भेदिये सारी रियासतों की ओर दौड़ा दिये गये लेकिन दरबार और सेना में इस कदम
का विरोध भी शुरू हो गया। उन्हें डर था कि कहीं यह कदम उन्हें तबाह न कर दे। सभी अपनी
चालें चलने में लग गये।
फिर एक दिन एक युवक
दरबार पहुंचा... जिसके बारे में दरबारियों ने बताया कि वह हुचांग था... उनसे छोटी और
कमजोर एक रियासत का राजकुमार... तब तक सारी जानकारियां इकट्ठी की जा चुकी थीं और शेंग
ली के विजय अभियान में बस थोड़ी ही देर थी... उसने सोचा कि शुरूआत हुचांग के राज्य सक
ही करते हैं।
शेंग ली के हुक्म
पर उसे खास मेहमान खाने में पहुंचा दिया गया।
रात ढलने की षुरूआत
के साथ ही शेंग ली की तैयारियां भी शुरू हो गईं। उसने गुनगुने सुगंधित पानी से स्नान
किया... शरीर पर खुश्बुयें मलीं... सिंगार किये और अपने स्तनों पर एक विषेष प्रकार
का विष मल कर मेहमान खाने जा पहुंची।
मेहमान ने देखा
तो पलकें झपकाना भूल गया... मलिका के तन से रेशमी लिबास फिसल कर कदमों में ढेर हुआ
तो धड़कनें रुक सी गईं। शेंग ली की मुस्कान में जहर था— उसकी आंखों में फिर साजिशों
के सांप लहरा रहे थे।
”मैं अपने मेहमान की खातिर एसे ही करती हूं।“ कहते हुए शेंग ली
ने बांहे उठा दीं और मदहोश सा मेहमान उनमें दुनिया भूल गया।
और कुछ जहरीले लम्हों
के बाद...
वह वैसे ही निर्वस्त्र
अवस्था में शय्या पर पड़ी तड़प् रही थी... आंखों की पुतलियां सिकुड़ रही थीं होंठों के
कोरों से झाग निकल रहे थे और चेहरे की लालिमा नीलाहट में बदल रही थी। हुचांग एक तरफ
कपड़े पहन रहा था जब धीरे धीरे तमाम दरबारी कक्ष में आ खड़े हुए। तड़पते हुए शेंग ली की
नजरें उन पर पड़ी तो उनमें एक सवाल था।
”तुम्हें गद्दी हमने दी थी शेंग... और तुम खुद को हमसे बड़ा समझने
लगी। अकेले ही वह मन्सूबे बनाने लगी जो हमें बर्बादी के सिवा कुछ नहीं देने वाले। तुम
हद से आगे बढ़ रही थी... तुम्हारा यह इंतजाम जरूरी था। जो काम हमने पहले तुम से लिया
था वही काम आज इससे लिया है... यह किसी राज्य का हाकिम नहीं— हमारा आदमी है।“
शेंग ली की निगाहें
हुचांग पर टिकीं।
”तुम्हें क्या लगता है... तुम अपने अंग पर जहर लगा कर किसी को
भी चटा कर उसे मौत के मुंह तक पहुंचा सकती हो तो यह कला सिर्फ तुम्हें ही आती है। मुझे
भी आती है— कल तक जिस कला से तुमने तमाम दूसरे लोगों को शिकार बनाया था... उसी कला
से आज मैंने तुम्हें शिकार बनाया है।“ कह कर हुचांग बाहर निकल गया।
वह एंठते हुए ठंडी
पड़ गई... एक-एक कर के सारे दरबारी बाहर निकल गये और पीछे वह निर्वस्त्र नीली अकेली
पड़ी रह गई जो कुछ पल पहले तक इस रियासत की मलिका रही थी।
लेकिन फिर भी... भले ही कुछ दिनों के लिये सही... लेकिन कीन्शू की एक मामूली वेश्या की बेटी एक ताकतवर औरत बन कर हवांगहो के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने में कामयाब हुई।
(समाप्त)
कमाल का किस्सागोई का हुनर है आपका अशफाक भाई। एक बार देखा, कि बहुत लंबी कहानी है, बाद में कभी पढूंगा, मगर एक बार पढ़ना शुरु किया, तो खत्म करके ही रुक सका।
ReplyDelete