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ड्रैकुला 18

 

ड्रैकुला 18

फिर उसने आगे कहा— “हॉकिंस वाला पत्र, जो मैं ज़रूर पोस्ट कर दूंगा, क्योंकि यह आपका है। आपके पत्र मेरे लिये पवित्र हैं। माफ कीजियेगा, मेरे दोस्त, कि मैंने अंजाने में सील खोल दी है। क्या आप इसे फिर से बंद कर देंगे?”

उसने चिट्ठी मुझे पकड़ा दी, और दरबारी अंदाज़ में झुक कर मुझे एक साफ लिफाफा दे दिया। मैं बस खामोशी से इस पर फिर से पता लिख कर उसे दे सकता था। जब वह कमरे के बाहर चला गया तो मैंने धीरे से चाबी के घूमने की आवाज़ सुनी। एक मिनट बाद मैंने जा कर इसे खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजे पर ताला था।

जब एक-दो घंटे बाद काउंट चुपचाप वापस कमरे में आया, तब उसकी आहट से मेरी आँख खुली, क्योंकि मैं सोफ़े पर ही सो गया था। वह अपनी तरह से बहुत विनम्र और खुशमिजाज लग रहा था, और मुझे सोते देख कर उसने कहा— “तो मेरे दोस्त, आप थक गये हैं? जा कर सो जाइये। आपको आराम ज़रूर करना चाहिये। आज मुझे बात-चीत का आनंद नहीं मिलेगा, क्योंकि मैंने कई मजदूरों को बुला रखा है, लेकिन आप सोइये, मैं प्रार्थना करूंगा।”

मैं अपने कमरे में चला आया और सो गया— और, कहने में अजीब लग रहा है, मुझे कोई सपने नहीं आये। निराशा में भी अपनी ही शांति होती है।

31 मई

आज सुबह जब मैं उठा, मैंने सोचा कि मैं अपने बैग से कुछ कागज और लिफाफे निकाल कर अपनी जेब में रख लूँ, ताकि अगर मौका मिले तो मैं लिख सकूँ, लेकिन फिर ताज्जुब की बात हुई, फिर मुझे झटका लगा!

एक-एक कागज गायब है, और साथ ही साथ मेरे सारे नोट, रेलवे और यात्रा से संबन्धित मेरे सारे मेमोरेंडम, मेरे क्रेडिट कार्ड, वास्तव में वह सब कुछ गायब है, जो अगर मैं महल से निकल पाता तो मेरे काम आ सकता था। मैं बैठ गया और कुछ देर विचार किया, और फिर मुझे कुछ खयाल आया, और मैंने अपने सूटकेस में और वार्डरोब में ढूँढना शुरू किया, जहां मैं अपने कपड़े रखता हूँ।

जिस सूट को मैं यहाँ आने के समय पहने था— वह गायब है, और मेरा ओवरकोट और लोई भी। मुझे कहीं उनका नामो-निशान तक नहीं मिला। यह खलनायकी की कोई नई योजना मालूम पड़ती है....

17 जून

आज सुबह, जब मैं बिस्तर के किनारे पर बैठा हुआ अपने दिमाग को मथ रहा था, तो मैंने प्रांगण के बाहर पथरीले रास्तों पर चाबुक फटकारने और घोड़ों की टापों की आवाज़ें सुनीं।

मैं खुश हो कर खिड़की के पास पहुंचा, और देखा कि दो विशाल लीटर गाड़ियाँ आँगन में खड़ी थीं, जिनमें प्रत्येक में आठ-आठ घोड़े जुते थे, और हर जोड़े पर चौड़े हैट, कीलों जड़ी बेल्टें, गंदी भेड़ की खाल और ऊंचे-ऊंचे जूते पहने एक-एक स्लोवाक तैनात है। उनके हाथ में उनके लंबे-लंबे डंडे भी थे। मैं दौड़ कर दरवाजे के पास गया, कि नीचे मुख्य हाल के पार जा कर उनसे मिलने जुलने की कोशिश करूँ— क्योंकि मुझे लगा कि उनके लिये रास्ता खोला गया होगा… लेकिन मुझे फिर झटका लगा, मेरा दरवाजा बाहर से बंद है।

फिर मैं दौड़ कर खिड़की पर गया और चिल्ला कर उन्हें पुकारा। वे सर उठा कर बेवकूफ़ों की तरह मुझे देखने लगे और मेरी तरफ इशारा करने लगे— लेकिन तभी सिज़्गानी लोगों का मुखिया बाहर आया और उन्हें मेरी खिड़की की ओर इशारा करते देख कर कुछ कहा, जिस पर वे हंसने लगे।

अबसे मेरी कोई कोशिश, कोई रोना-तड़पना, कोई दर्द भरी फरियाद उन्हें मेरी तरफ देखने तक को मजबूर नहीं करेगी। वे अपने रास्ते चले गये। उनकी लीटर गाड़ियों में बड़े-बड़े चौकोर बक्से रखे थे, जिनमें मोटी रस्सियों के हैंडल लगे थे। जिस तरह आसानी से स्लोवाक उन्हें उठा रहे थे, और बेपरवाही से हिलाए-डुलाए जाने पर उनमें से जैसी आवाज़ आ रही थी, उससे लगता था कि वे खाली होंगे। जब वे चढ़ाए नहीं गये थे और आँगन के एक किनारे एक के ऊपर एक ढेर बना कर रखे हुए थे— सिज़्गानी ने स्लोवाकोन को थोड़ा पैसा दिया, और अच्छे शगुन के रूप में उस पर थूक दिया, फिर उनको ढीले-ढालेपन से घोड़ों के सिरों से छुआया। इसके थोड़ी ही देर बाद मैंने उनके चाबुकों की फटकार को दूर जाते सुना।

24 जून

सुबह से पहले— कल रात काउंट मुझे जल्दी छोड़ गया था, और खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया। मैंने जल्दी से हिम्मत बांधी और घुमावदार सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर पहुंचा और दक्षिण की ओर खुलने वाली खिड़की से बाहर झाँका। मैंने सोचा था कि मैं काउंट पर नज़र रखूँगा, क्योंकि कुछ तो चल रहा है। सिज़्गानी महल में कहीं तो ठहरे हुए हैं और कुछ तो काम कर रहे हैं। मुझे पता है, क्योंकि यदा-कदा मुझे दूर से कुदालें चलने की आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं— और, जो भी हो रहा हो, अब किसी की बेरहम खलनायकी का अंत होना चाहिये।

मैं लगभग आध घंटे तक खिड़की के बाहर झाँकता रहा, तब कहीं मुझे काउंट की खिड़की से कुछ बाहर आता हुआ दिखा। मैं पीछे हट गया और ध्यान से देखने लगा, और उसमें से पूरा आदमी बाहर निकल आया। यह देख कर मुझे एक नया झटका लगा। वह वही सूट पहने हुए था, जो मैंने यहाँ आते वक़्त पहन रखा था, और उसके कंधे पर वही भयानक बैग लटका हुआ था जो मैंने उन औरतों को ले जाते देखा था। अब मुझे कोई शक नहीं है कि उसका मिशन क्या है, और उसने मेरा भेष क्यों धरा है! यह उसकी शैतानियत की एक नई योजना है, कि वह चाहता है कि लोग मुझे देखें, ताकि वे सोचें और वह इस बात का सबूत छोड़ दे कि शहर में अपनी चिट्ठियाँ मैं ने खुद ही पोस्ट की थीं, और जो भी शैतानी चालें वह चले, स्थानीय लोग उन्हें मेरे मत्थे मढ़ दें।

यह सोच कर मुझे गुस्सा आ रहा है कि उसकी चाल कामयाब हो जायेगी— जबकि मैं यहाँ क़ैद हूँ, बिना किसी कानूनी सुरक्षा और सांत्वना के, जिसका हक़ तो किसी अपराधी को भी होता है।

मैंने सोचा, मैं काउंट को लौटते भी देखूंगा, और इस इरादे से बहुत देर तक खिड़की पर बैठा रहा। फिर मैंने ध्यान दिया कि चाँदनी में कुछ अजीब से छोटे छोटे कण तैर रहे हैं। वे धूल के बहुत ही बारीक कणों जैसे थे और वे चक्कर काटने लगे और किसी नेब्यूला की तरह समूहों में जमा होने लगे। उन्हें देखने में मुझे बहुत अच्छा लग रहा था और मेरे ऊपर एक शांति सी छा गई। मैं पीछे झुक कर एक कंगूरे से लग कर और भी आराम से बैठ गया, ताकि मैं इस हवाई खेल का आनंद ले सकूँ।

तभी किसी चीज़ ने मुझे सचेत कर दिया, घाटी में कहीं कोई कुत्ता बड़े बड़े दयनीय भाव से रो रहा था, जो मुझे दिख तो नहीं रहा था। यह आवाज़ मेरे कानों में तेज़ी से गूंजने लगी और आवाज़ के साथ ही धूल के तैरते बादल चाँदनी में नाचते हुए नए आकार में ढलने लगे। मैं अपनी छठी इंद्रिय की पुकार पर खुद को सोने से रोकने के लिये संघर्ष करने लगा। नहीं, मेरी आत्मा संघर्ष कर रही थी और मेरी अर्ध-जागृत इंद्रियाँ उस पुकार का जवाब देने की कोशिश कर रही थीं। मैं सम्मोहित हो रहा था। धूल का नाच तेज़, और तेज़ होता जा रहा था। चाँदनी की किरणें मेरे पास से हो कर पीछे के अंधेरे में समाती हुई काँप रही थीं। वे पास, और पास आती गईं और धुंधला सा भुतहा आकार लेने लगीं।

तभी मैं जाग गया, अच्छी तरह जाग गया और पूरी तरह चैतन्य हो गया और उस जगह से चिल्लाता हुआ भागा। भुतहा आकार धीरे-धीरे और भी घनीभूत होने लगे थे। वे वही भुतहा औरतें थीं, जिनसे मैं बच निकला था। मैं भागा और अपने कमरे में आ कर थोड़ा सुरक्षित महसूस करने लगा, जहां चाँदनी नहीं थी, और जहां दिये की रौशनी फैली हुई थी।

क्रमशः

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