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ड्रैकुला 17

 

ड्रैकुला 17

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जोनाथन हार्कर की डायरी

जारी.......

मैं अपने खुद के कमरे में जागा। अगर मैंने सपना नहीं देखा था, तो काउंट ही मुझे उठा कर यहाँ लाया होगा। मैंने इस विषय में खुद को संतुष्ट करने की कोशिश की लेकिन किसी ऐसे नतीजे पर नहीं पहुँच पाया, जिस पर सवाल न उठते हों। इस बात से भी इसकी पुष्टि होती थी कि इस बारे में छोटे-मोटे सबूत मौजूद थे— जैसे मेरे कपड़ों को तह लगा कर इस तरह से रखा गया था, जो मेरी आदत नहीं है।

मेरी घड़ी अब भी मेरी कलाई में थी और जाने क्या वजह थी कि मेरा मिजाज निश्चित रूप से काफी बिगड़ा हुआ था। मुझे सबूत ढूँढने चाहिये। एक बात से मैं खुश हूँ। अगर काउंट मुझे यहाँ लाया था और मेरे कपड़े उतारे थे, तो ज़रूर वह काफी जल्दी में रहा होगा, क्योंकि मेरी जेब को छुआ भी नहीं गया था। मुझे यकीन है कि यह डायरी उसके लिये एक रहस्य जैसी होती, जिसे वह किसी सूरत में छोड़ कर न जाता। उसने इसे गायब कर दिया होता या नष्ट कर दिया होता। जब मैं इस कमरे को देख रहा हूँ। हालांकि यह भी मेरे लिये काफी डरावना है— लेकिन फिलहाल यह मुझे अभयारण्य लग रहा है, क्योंकि उन डरावनी औरतों से ज़्यादा डरावनी कोई चीज़ नहीं हो सकती, जो मेरा खून पीना चाहती थीं, जो अब भी मेरा खून पीने के इंतज़ार में हैं।

18 मई

मैं दिन के उजाले में उस कमरे को देखने फिर से नीचे गया था, क्योंकि मैं सच्चाई जानना चाहता था। जब मैं सीढ़ियों के ऊपर बरामदे में पहुंचा— मैंने पाया कि यह बंद है। उसे उसकी चौखट पर इतना ज़ोर-ज़बरदस्ती बैठाया गया था कि लकड़ी के काम का एक हिस्सा उखड़ गया था। मैं देख सकता था कि दरवाजे की कड़ी नहीं लगाई गई है, लेकिन दरवाजा अंदर से बंद था। मुझे डर है कि यह कोई सपना नहीं था, और मुझे इसी अनुमान पर काम करना चाहिये।

19 मई

मुझे वाकई कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। पिछली रात काउंट ने बड़े बाअदब लहजे में मुझसे तीन ख़त लिखने को कहे थे। एक में यह लिखना था कि यहाँ मेरा काम लगभग खत्म ही हो गया है, और कुछ दिन बाद मैं घर के लिये निकल पड़ूँगा, दूसरे में लिखना था कि मैं कल, यानी पत्र की तारीख से अगले दिन निकल रहा हूँ, और तीसरे का आशय यह था कि मैं महल से निकल गया हूँ और ब्रिस्टिज पहुँच गया हूँ। मैं विद्रोह कर देता, लेकिन मुझे लगा कि चीज़ें जैसी चल रही हैं— वर्तमान हालात में काउंट से खुल कर झगड़ा मोल लेना पागलपन होगा, जबकि मैं पूरी तरह से उसकी शक्ति के अधीन हूँ।

और इनकार करने से उसके दिल में शक पैदा होगा, और उसका गुस्सा भड़क उठेगा। वह जानता है कि मैं बहुत कुछ जानता हूँ, और मुझे ज़िंदा नहीं छोडना चाहिये, कहीं ऐसा न हो कि मैं उसके लिये खतरा बन जाऊँ। मेरे पास बस एक ही रास्ता है कि मैं किसी तरह समय को लंबा खींचूँ। शायद कुछ ऐसा हो जाये कि मुझे भागने का मौका मिल जाये। जब वह उस गोरी औरत को खुद से दूर धकेल रहा था, मैंने उसकी आँखों में उमड़ते क्रोध में कुछ तो देखा था। उसने मुझे समझाया कि डाक मुश्किल से और बहुत देर में पहुँचती है, और मेरे अभी ख़त लिखने से मेरे दोस्तों को राहत मिल जायेगी।

और उसने बड़े प्रभावी ढंग से मुझे यकीन दिलाया कि अगर ज़रूरत न पड़ी तो वह बाद वाले ख़तों को रद्द कर देगा, जो एक निश्चित समय तक ब्रिस्टीज में रखे जायेंगे, कि शायद मुझे लंबे समय तक रुकना पड़े। मुझे डर था कि मेरा विरोध उसके मन में शक के नये बीज बो देगा। इसलिये मैंने ऐसा दिखावा किया कि जैसे मैं उसकी बातों में आ गया हूँ— और मैं ने उससे पूछा कि खतों पर कौन सी तारीख डालनी है।

उसने एक मिनट के लिये हिसाब लगाया, और फिर कहा— “पहले पर 12 जून, दूसरे पर 19 जून और तीसरे पर 29 जून।”

अब मुझे अपनी ज़िंदगी के दिन पता चल गये हैं। हे भगवान, मेरी मदद करो!

28 मई

भागने का एक मौका नज़र आया है— या कम से कम घर पर कुछ शब्द लिख भेजने का। सिज़्गानी लोगों का एक जत्था महल में आया है, जो प्रांगण में ठहरा हुआ है। ये बंजारे हैं। मैंने अपनी किताब में उन पर नोट लिखे थे। हालांकि ये सारी दुनिया में पाये जाने वाले सामान्य बंजारों से सम्बद्ध हैं, लेकिन ये दुनिया के इसी हिस्से में पाये जाते हैं। हंगरी और ट्रांसिलवेनिया में ये हजारों की तादाद में हैं, जो लगभग हर कानून से परे हैं। वे नियमानुसार खुद को किसी शरीफ या बोयार से जोड़ लेते हैं और खुद को उसी के नाम से बुलाते हैं। वे निडर होते हैं और किसी धर्म को नहीं मानते, बहुत अंधविश्वासी होते हैं, और वे सिर्फ रोमन ज़ुबान की अपनी ही तरह की बोलियों में बात करते हैं।

मैं घर के लिये कुछ पत्र लिखूंगा और कोशिश करूंगा कि उन्हें उनके द्वारा डाक में डलवा पाऊँ। मैंने जान-पहचान बढ़ाने के लिये पहले ही अपनी खिड़की से ही उनसे बात-चीत शुरू कर दी है। उन्होंने अपनी टोपियाँ उतारीं और सम्मान प्रकट किया और कई तरह के इशारे किये, जो हालांकि मुझे उनकी बोली जाने वाली भाषा से ज़्यादा समझ में नहीं आये।

मैंने ख़त लिख लिये। मीना वाला शॉर्टहैंड में है, और मि॰ हॉकिंस को मैं ने बस इतना लिख दिया है कि उससे बात कर लें। उसे मैंने अपनी स्थिति समझा दी है, लेकिन उस खौफ के बिना, जिससे हो कर मुझे गुजरना पड़ रहा है। अगर मैं उसके सामने अपना दिल खोल कर रख देता तो वह सदमे में आ जाती और यह डर उसके लिये जानलेवा साबित होता। चिट्ठियों में यह सब होना भी नहीं चाहिये, क्योंकि अब तक काउंट को मेरा रहस्य या मेरी जानकारी की सीमा नहीं पता है....

मैंने चिट्ठियाँ दे दी हैं। मैंने उन्हें सोने के एक टुकड़े के साथ अपनी खिड़कियों की सलाखों में से बाहर फेंक दिया और जितना भी इशारे से उन्हें समझा सकता था, उन्हें पोस्ट करने के लिये कहा। जिस व्यक्ति ने उन्हें उठाया था, उसने उन्हें अपने दिल से लगाया और झुका, और फिर उन्हें अपनी टोपी में रख लिया। इससे ज़्यादा मैं कुछ कर भी नहीं सकता। मैं चुपके से अध्ययन कक्ष में चला आया, और पढ़ने लगा। क्योंकि काउंट अभी तक आया नहीं है, इसलिए मैं लिख रहा हूँ.....

काउंट आया। वह मेरे बगल में बैठ गया, और दो चिट्ठियाँ खोलते हुए बड़े प्यार से कहने लगा, “सिज़्गानी ने मुझे ये दिये हैं। जिनमें से, हालांकि मुझे पता नहीं है कि वे कहाँ से आए हैं, मैं निश्चित रूप से इन का खयाल रखूँगा। देखिये!” उसने ज़रूर उन्हें देखा होगा।

“एक तो आपकी तरफ से है, मेरे दोस्त पीटर हॉकिंस को। दूसरा....” जैसे ही उसने लिफाफा खोला उसे अजीब से प्रतीक नज़र आए, और उसके चेहरे पर अंधेरा छा गया, और उसकी आँखें कुटिलता से दहक उठीं, “दूसरा एक बुरी चीज़ है, दोस्ती और आतिथ्य पर धब्बा! इस पर हस्ताक्षर नहीं हैं। खैर, फिर यह हमारे लिये कोई माने नहीं रखता।” और उसने शांति से पत्र और लिफाफे दोनों को तब तक दिये की लौ से लगाए रखा, जब तक वे जल कर भस्म न हो गये।

क्रमशः

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