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ड्रैकुला 4

 

बीच की धरती के हरे-भरे उभरे हुए पहाड़ों के परे खुद कार्पेथियन की ऊंची-ऊंची पहाड़ियों तक जंगल की विस्तृत ढलानें फैली हुई थीं। हमारे दायीं और बायीं तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ थे— जिन पर ढलती शाम का सूरज अपनी किरणें पूरी दिलदारी से बिखेर रहा था और इस श्रंखला के सभी खूबसूरत रंगों को उजागर कर रहा था। चोटियों के नीचे गहरा नीला और बैंगनी, जहां चट्टानें घास से मिलती थीं, वहाँ हरा और भूरा— और आरी के दांतों जैसी ऊंची नीची पहाड़ियाँ और नुकीली चट्टानों का अंतहीन सिलसिला था, जब तक वे दूर होती हुई खुद ही दृष्टि से ओझल न हो जाएँ— जहां से शानदार बर्फीली चोटियों का सिलसिला शुरू हो जाता है।

पहाड़ों के बीच कहीं कहीं विशाल घाटियां हैं, जिनके बीच से, हालांकि सूरज अपनी रौशनी सिकोड़ने लगा था— फिर भी गिरते हुए झरनों की सफ़ेद झिलमिलाहट साफ दिखाई दे जाती थी। हम एक पहाड़ी के नीचे से निकल कर ढलान से होते हुए बर्फ से ढकी एक पहाड़ी की चोटी पर चढ़ने लगे, जो ऐसी दिखती थी, जैसे हम अपने बल खाते रास्ते पर उड़ रहे हैं। तभी मेरे एक साथी यात्री ने मेरी बांह को छुआ।

“देखो! इस्टेन जेक! भगवान का सिंहासन!” और कहते हुए उसने आदर से खुद को क्रॉस किया।

जैसे-जैसे हम अपने अंतहीन रास्ते पर बढ़ रहे थे, और हमारे पीछे सूरज नीचे, और नीचे डूबता चला जा रहा था— हमारे चारों ओर शाम की परछाइयाँ रेंगने लगी थीं।

उनका साँवलापन इस बात से और भी उभर रहा था कि बर्फीली पहाड़ियों पर अभी भी धूप ढली नहीं थी और वे नाज़ुक गुलाबी रंग से चमक रही थीं। कहीं-कहीं हमें चेक और स्लोवाक मिल जाते, सब कुछ किसी खूबसूरत पेंटिंग सा दिख रहा था, लेकिन मैंने ध्यान दिया कि उनमें घेंघा रोग काफी आम था।

सड़क के किनारे-किनारे बहुत से क्रॉस थे और जब हम उनके पास से गुजरते, मेरे साथी यात्री खुद को क्रॉस करते। कहीं कहीं किसान मर्द और औरतें किसी दरगाह के सामने झुकते दिखते, जो हमारे पहुँचने पर पलट कर भी न देखते— और ऐसा लगता कि वे आस्था में स्वयं को खो चुके हैं और बाहरी दुनिया के लिये उनकी आँखें और कान बंद हैं।

बहुत सी चीज़ें मेरे लिये नई थीं। उदाहरण के लिये पेड़ों में घास के ढेर और रोते हुए सनोबर के पेड़ के खूबसूरत झुरमुट, हारी पट्टियों के बीच से उनके सफ़ेद तने चांदी की तरह चमक रहे थे।

कहीं कहीं हमें लीटर-गाडियाँ मिलीं— साधारण किसानों की गाडियाँ, जो अपनी लंबी, साँप जैसी बनावट से सड़क की असमानताओं से ताल-मेल बनाने के लिये बनाई गई थीं। बेशक इन पर घर लौटते किसानों के समूह बैठते होंगे। सफ़ेद कपड़ों वाले चेक, रंगीन, भेड़ों के चमड़े पहने स्लोवाक। स्लोवाकों के पास बरछे-नुमा लंबी लाठियाँ भी थीं, जिनके सिरों पर कुल्हाड़ियाँ लगी थीं।

जैसे जैसे शाम गहराने लगी, सर्दी बढ़ने लगी और बढ़ता हुआ धुंधलका अंधेरे की ढूंढ में घुलने लगा। बलूत, बीच और देवदार के पेड़ों पर उदासी की चादर फैलने लगी।

हालांकि जैसे-जैसे हम दर्रे की ओर बढ़ते जा रहे थे, घाटियां पहाड़ों के बीच खोती जा रही थीं। कहीं-कहीं पुरानी गिरी बर्फ की पृष्ठभूमि में यहाँ-वहाँ खड़े सारो के पेड़ दिखाई देते। कभी कभी, क्योंकि सड़क देवदार के जंगल के बीच से निकाली गई थी— ऐसा लगता कि वे विशाल पेड़ हमारे ऊपर गिर जायेंगे। अंधेरे की चादर, जिसने पेड़ों को ढक लिया था— अजीब-सा गंभीर प्रभाव पैदा कर रही थी। ऐसा प्रभाव जो उन विचारों और गंभीर कल्पनाओं को उभारने लगा था, जो मैंने कुछ देर पहले सुने थे— जब डूबता हुआ सूरज अपने साथ अजीब सी राहत भी ले गया।

कार्पेथियन की हवाओं पर लगातार तैरने वाले बादल भुतहा लगने लगे।

कहीं-कहीं चढ़ाई इतनी खड़ी थी कि हमारे ड्राइवर की लाख जल्दी के बावजूद घोड़े तेज़ नहीं चल पाते थे। मेरा दिल कर रहा था कि नीचे उतर जाऊँ ताकि वे बढ़ सकें, जैसा हम अपने यहाँ करते हैं, लेकिन ड्राइवर ने बात नहीं सुनी।

“नहीं, नहीं।" उसने कहा— “यहाँ आपको पैदल नहीं चलना चाहिए। यहाँ के कुत्ते बहुत आक्रामक होते हैं।”

और फिर उसने उदास हंसी के साथ आगे कहा— “और सोने से पहले आपको ऐसी कई चीजों का सामना करना पड़ेगा।"

और उसने बाक़ी लोगों का समर्थन पाने के लिये उनकी ओर देखा। बीच में वह बस अपने दिये जलाने के लिये पल भर को रुका था।

जब अंधेरा गहराने लगा तो यात्री कुछ उत्तेजित होने लगे, और एक-एक कर के उससे रफ्तार बढ़ाने के लिये कहने लगे। वह अपने लंबे से चाबुक से घोड़ों को बेरहमी से पीटने लगा, और जंगली आवाज़ों से उन्हें और तेज़ चलने के लिये प्रेरित करने लगा। फिर अंधेरे में मुझे आगे एक धुंधली रोशनी का धब्बा सा दिखा, जैसे पहाड़ियों में कोई दरार हो।

यात्रियों की उत्तेजना बढ़ने लगी। डब्बा अपनी बड़ी-बड़ी चमड़े की स्प्रिंगों पर हिचकोले खाने लगा, जैसे समुद्री तूफान में फंसी कोई नाव हो। मुझे पकड़ के बैठना पड़ा। सड़क समतल होने लगी और हम हवा से बातें करने लगे। फिर पहाड़ ऐसा लगने लगा कि दोनों ओर से हमारे नजदीक आ रहे हैं और हमारे ऊपर झुके आ रहे हैं।

हम बोर्गो दर्रे में प्रवेश कर रहे थे। एक-एक कर के कई यात्रियों ने मुझे तोहफे दिये, जो उन्होंने इतने प्यार और आग्रह से दिये कि मना करने का कोई सवाल ही नहीं उठता था। ये तरह-तरह की अजीबोगरीब चीज़ें थीं, लेकिन शुभेच्छाओं और आशीर्वादों के साथ अच्छी नीयत से दी गई थीं— और अजीब सी डर में डूबी हरकतें, जो मैं ने ब्रिस्टीज में होटल के सामने देखी थीं। क्रॉस का निशान और बुरी नज़र से बचने का टोटका।

फिर जब हम आगे बढ़ आये, ड्राइवर आगे की ओर झुक गया— और दोनों तरफ से मुसाफिर डब्बों के किनारों पर लटक-लटक कर अंधेरे में कुछ देखने की कोशिश करने लगे। ज़ाहिर था कि कुछ बहुत उत्तेजक चीज़ या तो हो रही थी, या होने वाली थी— लेकिन जब मैंने हर यात्री से पूछा, किसी ने मुझे कुछ भी नहीं बताया। यह उत्तेजना की स्थिति कुछ देर तक जारी रही।

और फिर अंत में हमने देखा, दर्रा पूर्व की तरफ खुल रहा है। वहाँ अंधेरा था, बादल हमारे सरों पर मंडरा रहे थे। हवा में भारीपन था और ऐसा लग रहा था कि तूफान आने वाला हो। लग रहा था जैसे पर्वत श्रंखला वातावरण को विभाजित कर रही थी, और अब हम तूफानी वातावरण में आ गये हैं। अब मैं उस गाड़ी की तलाश कर रहा था जो मुझे काउंट के पास ले कर जाने वाली थी। हर पल मैं उम्मीद कर रहा था कि अब मुझे अंधेरे में दीयों की झिलमिलाहट दिखाई देगी, लेकिन वहाँ बस अंधेरा था।

वहाँ बस एक ही रोशनी थी, हमारी अपनी गाड़ी के दियों की झिलमिलाती रोशनी— जिसमें हमारे दौड़ कर आये हुए घोड़ों के मुंह से निकलती भाप सफ़ेद बादलों की तरह दिख रही थी। अब हमारे सामने रेतीले रास्ते की सफेदी फैली थी, लेकिन किसी भी गाड़ी का कोई नामो-निशान तक न था।

मुसाफिरों ने राहत की सांस ली और सीधे बैठ गये, जो लगता था कि मेरी निराशा का मज़ाक उड़ा रहे हों। मैं सोचने लगा था कि अब क्या किया जाये, तभी ड्राइवर ने अपनी घड़ी की ओर नज़र डालते हुए दूसरों से कुछ कहा, जो मैं समझ नहीं सका। यह इतने धीरे से और इतनी धीमी आवाज़ में कहा गया था कि मुझे सुनाई दिया, “समय से एक घंटा पहले।”

क्रमशः


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