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ड्रैकुला 3


 मेरे यह कहने पर कि मैं समझा नहीं, उसने आगे कहा—

“आज सेंट जॉर्ज दिवस की शाम है। क्या आपको नहीं पता कि आज की रात, जब घड़ी में रात के बारह बजते हैं, दुनिया की सारी बुरी शक्तियाँ अपने पूरे शबाब पर होती हैं? आपको पता भी है कि आप कहाँ जा रहे हैं, और किसके पास जा रहे हैं?”

वह इतनी परेशान लग रही थी कि मैंने उसे दिलासा देने की कोशिश की, लेकिन कोई फाइदा नहीं हुआ। अंत में उसने अपने घुटने टेक दिये और मुझसे प्रार्थना करने लगी कि मैं न जाऊँ— या कम से कम एक दो दिन ठहर कर जाऊँ। यह सब बहुत हास्यास्पद था, लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगा।

हालांकि वहाँ मुझे काम से जाना था, और मैं किसी को इसमें बाधक बनने की अनुमति नहीं दे सकता था। मैंने उसे उठाने की कोशिश की, और जितनी गंभीरता से कह सकता था, कहा— कि मैं उसे धन्यवाद देता हूँ, लेकिन मेरा फर्ज़ सबसे ऊपर है, और मुझे जाना ही होगा।

फिर वह उठी और उसने अपनी आँखें पोंछ डालीं, और अपने गले से क्रॉस निकाल कर मुझे देने लगी। मुझे समझ में नहीं आया कि क्या करूँ— क्योंकि एक अंग्रेज़ ईसाई होने के नाते मुझे ऐसी चीजों की इज्ज़त करना सिखाया गया है, जैसे कुछ मूर्तिपूजक उपाय… और किसी ऐसी बूढ़ी औरत को मना करना भी बहुत बुरा लग रहा था, जो इतनी चिंतित थी और ऐसी मानसिक स्थिति में थी।

मुझे लगता है कि उसने मेरी आँखों में तैरते शक को पढ़ लिया, क्योंकि उसने तसबीह मेरे गले में डाल दी और कहा, “तुम्हारी माँ की खातिर," और कमरे से बाहर निकाल गई।

मैं डायरी का यह हिस्सा गाड़ी का इंतज़ार करते हुए लिख रहा हूँ, जो ज़ाहिर है कि लेट है— और क्रूसिफिक्स अब भी मेरे गले में पड़ा है। चाहे यह बूढ़ी औरत का डर हो, या इस जगह के कई भुतहा रिवाज, या फिर खुद यह क्रूसीफिक्स— पता नहीं, लेकिन मुझे उतना सामान्य महसूस नहीं हो रहा है, जितना आम तौर पर मैं रहता हूँ। यदि मीना तक मेरे पहुँचने से पहले यह किताब पहुँच जाये, तो उसे मेरा अलविदा।

गाड़ी आ रही है!

5 मई

महल में…

सुबह की स्लेटी आभा गुज़र चुकी है, और दूर क्षितिज पर सूरज थोड़ा ऊंचा उठ गया है, जो कि दाँतेदार लगता है— जाने पेड़ों के कारण या पहाड़ियों के, क्योंकि यह इतनी दूर है कि बड़ी और छोटी चीज़ें एक में मिल गई हैं। मुझे नींद नहीं आ रही है, और चूंकि मुझे जागने तक कोई नहीं बुलायेगा, स्वाभाविक रूप से मैं नींद आने तक लिखता रहूँगा। बहुत सी अजीब बातें हैं, जो मुझे लिखनी हैं, और ऐसा न हो कि पढ़ने वाला कल्पना करे कि मैंने ब्रिस्टिज़ से निकालने से पहले खूब खा लिया था, मैं अपने शाम के खाने का ठीक-ठीक विवरण लिख देता हूँ।

मैंने खाया था, जिसे वे कहते हैं, “रॉबर स्टीक”— थोड़े से बेकन के टुकड़े और प्याज़, और बीफ, जिसमें मिर्च पड़ी थी, और सींक में लगा कर लंदन के कैट के मीट की तरह साधारण ढंग से आग पर भूना गया था! शराब गोल्डेन मीडिएस्क थी, जो ज़ुबान पर अजीब डंक सा मारती है, जो हालांकि रद्द करने लायक नहीं है। इसके मैंने कुछ ही गिलास लिये थे, बस और कुछ भी नहीं।

जब मैं गाड़ी में बैठ गया— अभी ड्राइवर अपनी सीट पर नहीं बैठा था, और मैंने देखा, वह होटल की मालकिन से बात कर रहा था। वह ज़रूर मेरे ही बारे में बात कर रहे थे, क्योंकि बीच-बीच में वे मेरी तरफ देखते जाते थे, और कुछ और लोग भी, जो दरवाजे के बाहर बेंच पर बैठे थे। वे भी आकर सुनने लगे, और फिर मेरी ओर देखने लगे। उनमें से ज़्यादातर लोगों की आँखों में दया के भाव थे। बहुत से शब्द, जो बार बार दोहराये जा रहे थे— मैं सुन सकता था। अजीब से शब्द, क्योंकि भीड़ में कई जातियों के लोग थे— तो मैंने चुपचाप अपने बैग से अपना बहुभाषीय शब्दकोश निकाला और उसमें देखने लगा।

मुझे कहना पड़ेगा कि वे मेरे लिए खुशी नहीं मना रहे थे, क्योंकि वे शब्द थे, “ओर्डोग”—शैतान, “पोकोल”— नरक, “स्ट्रेगोइका”— डायन, “व्रोलोक” तथा “व्ल्कोसलक”, जिनमें से एक शब्द स्लोवाक है और एक सर्वियन, और दोनों के एक ही मतलब हैं, कोई इच्छाधारी भेड़िये या पिशाच जैसी चीज़, (यादः काउंट से इन अंधविश्वासों के बारे में ज़रूर पूछना है)।
जब हम चले, सराय के दरवाजे पर जो भीड़ जमा थी, जो अब तक काफी बड़ी हो गई थी— सबने क्रॉस का निशान बनाया और दो उँगलियों से मेरी ओर इशारा किया। थोड़ी परेशानी के बाद, मैं एक साथी यात्री से पूछ पाया कि इसका मतलब क्या था। पहले तो उसने जवाब नहीं दिया, लेकिन यह जानने के बाद कि मैं अंग्रेज़ हूँ, बताया कि यह बुरी नज़र से बचने का एक टोटका है। किसी अनजानी जगह पर, किसी अंजाने व्यक्ति से मिलने जाते वक़्त, यह मुझे बहुत अच्छा नहीं लगा।

लेकिन हर कोई इतना रहमदिल दिख रहा था, और इतना दुखी, और इतना सहानुभूति से भरा हुआ कि बस मेरे दिल को छू गया।

मैं सराय के आँगन और इसमें जमा भीड़ की चित्रलिखित आकृतियों की आखिरी झलक कभी नहीं भूल पाऊँगा, सभी खुद को क्रॉस करते हुए चौड़े महराबदार गलियारे के चारों ओर खड़े थे, जिसकी पृष्ठभूमि में आँगन के बीचों-बीच में जमा हरे गमलों में लगे ओलिएंडर और नारंगियों के हरे-भरे पेड़ थे। फिर हमारा ड्राइवर, जिसकी चौड़ी लिनेन की सलवार ने आगे की पूरी बॉक्ससीट को घेरा हुआ था— जिसे वे “गोत्ज़ा” कह कर बुला रहे थे, उसने अपने चार छोटे घोड़ों पर, जो कदम से कदम मिला कर दौड़ते थे— अपना बड़ा सा चाबुक फटकारा, और हम अपने सफर पर निकाल पड़े।

जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गये, जल्दी ही दृश्यों की खूबसूरती में खो कर मैं उस सारे भुतहा डर को भूल गया।

हालांकि मुझे वह भाषा, या कहें कि भाषाएँ नहीं पता थीं, जो मेरे साथी यात्री बोल रहे थे— लेकिन मैं उन्हें इतनी आसानी से अनसुना नहीं कर सकता था। हमारे सामने एक हारा-भरा ढलवां मैदान फैला था, जो जंगलों और पेड़ों से भरा हुआ था। यहाँ-वहाँ खड़ी पहाड़ियाँ थीं, जिनके सर पर पेड़ों झुरमुटों का ताज धरा था— या फार्महाउस थे, जिनके खाली कोने सड़कों से लगे थे। वहाँ हर जगह अनगिनत सेब, आड़ू, नाशपाती, चेरी इत्यादि के फलों से लड़े पेड़ थे, जिन्हें देख कर मन हक्का-बक्का रह जाता था।
और जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गये, मुझे पेड़ों के नीचे हरी घास दिखाई देने लगी— जो गिरि हुई पंखुड़ियों से ढकी हुई थी। इन हरे-भरे पहाड़ों के अंदर और बीच से, जिन्हें यहाँ के लोग “बीच की धरती” कहते हैं— सड़क जा रही थी, और जब वह घास से भरे मोड़ों पर पहुँचती थी, तो कहीं खो जाती थी। या देवदार के तितर-बितर जंगलों के सिरों पर बंद हो जाती थी, जो पहाड़ियों के किनारों पर यहाँ-वहाँ आग की लपटों की तरह दिखाई देते थे।

सड़क ऊबड़-खाबड़ थी, फिर भी हम उत्तेजना में डूबी रफ्तार से इस पर उड़े चले जा रहे थे।

तब मुझे समझ में नहीं आया था कि इतनी तेज़ रफ्तार की ज़रूरत क्या है— लेकिन ड्राइवर को ज़ाहिरी तौर पर बोर्गो प्रूण्ड पहुँचने की बहुत जल्दी थी। मुझे बताया गया था कि यह सड़क बहुत बढ़िया है, लेकिन सर्दियों की बर्फ गिरने के बाद से अब तक इसे व्यवस्थित नहीं किया गया है। इन मायनों में यह कार्पेथियन की दूसरी सड़कों से कुछ अलग थी, क्योंकि पुरानी परंपरा थी कि इन्हें बहुत अच्छी स्थिति में नहीं रखा जाता था। पुराने समय में मालिक इनकी मरम्मत नहीं कराते थे, कि कहीं ऐसा न हो कि तुर्क सोचें कि वे विदेशी हमलावरों को न्योता दे रहे हैं, और इसलिए जंग तेज़ कर दें, जो कि हमेशा खदबदाती ही रहती थी।

क्रमशः

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