Header Ads

ड्रैकुला 2

 

हम पूरा दिन सुस्त रफ्तार से एक ऐसे देश की यात्रा करते रहे, जो हर तरह की सुंदरता से भरा पड़ा है।

कभी-कभी हमें खड़ी पहाड़ियों पर छोटे-छोटे कस्बे और किले दिखाई देते, जैसे हमें पुरानी धार्मिक किताबों में दिखते हैं। कभी-कभी हम नदी की बहती हुई धारा पर से हो कर गुजरते— जो पथरीले पहाड़ों के बीच घाटियों में बह रही होती, और ऐसा लगता जैसे उनमें बाढ़ आ गई है। यह बहुत सा पानी ले कर आती है, तेज़ी से बहती है और नदी के किनारों को साफ करती जाती है।

हर स्टेशन पर लोगों के बहुत से समूह होते थे, कभी-कभी तो भीड़ की शक्ल में— जो तरह तरह की पोशाकें पहने होते थे, जिनमें से कुछ गरीब किसान थे। या मैंने उन लोगों को देखा जो फ्रांस और जर्मनी से आ रहे थे, जो छोटी-छोटी जैकेटें, गोल हैट और घर के बने पाजामे पहने होते थे, लेकिन बाक़ी बहुत चित्रलिखित से थे। औरतें अच्छी लगती थीं, लेकिन तभी तक जब तक आप उनके नजदीक न जायें, लेकिन वे कमर से बहुत बेडौल थीं। वे किसी न किसी तरह की सफ़ेद पूरी बाहों की पोशाकें पहने थीं, और उनमें से अधिकांश बड़े-बड़े कमरबंद पहने थीं जिसमें से किसी चीज़ की पट्टियाँ लटक रही थीं— जैसे बैले की पोशाकें होती हैं, लेकिन ज़ाहिर है कि उनके नीचे पेटीकोट भी थे।

सबसे अजीब जो हमें दिखे वे स्लोवाक थे, जो दूसरों से अधिक बर्बर थे— उनके बड़े-बड़े काऊबॉय हैट, ढीले-ढाले और मैले-कुचैले सफ़ेद पाजामे, सफ़ेद लिनेन की कमीज़ और भारी-भारी चमड़े के कमरबंद, लगभग एक फुट चौड़े, जिन पर पीतल की कीलें जड़ी हुई थीं। वे ऊंचे-ऊंचे बूट पहने थे, और उनके पाजामे उनमें खुंसे हुए थे, और उनके लंबे काले बाल और बड़ी-बड़ी काली मूंछें थीं। वे बहुत चित्रलिखित से थे, लेकिन अगर उन्हें मंच पर खड़ा कर दिया जाता तो वे कोई अच्छा प्रभाव न डालते, वे पूर्वी लुटेरों के किसी गिरोह जैसे लगते थे।
हालांकि मुझे बताया गया है कि वे बिलकुल सीधे-सादे हैं, बल्कि कुदरती आत्मविश्वास से रहित हैं।

जब हम ब्रिस्टीज़ पहुंचे, जो बहुत दिलचस्प प्राचीन स्थान है, तब शाम का धुंधलका रात में तब्दील होने लगा था। व्यवहारिक रूप से सीमा पर स्थित होने के कारण— बोर्गो दर्रा इससे हो कर बुकोविना की ओर जाता है। इसका अस्तित्व काफी तूफानी रहा है, और निश्चित रूप से इसकी निशानियाँ भी समेटे है।

पचास साल पहले, भीषण आग की एक श्रृंखला पेश आई थी, जिसने पांच अलग-अलग मौकों पर भयानक तबाही मचाई थी। सत्रहवीं शताब्दी कि बिलकुल शुरुआत में इसने तीन सप्ताह की घेराबंदी का सामना किया, जिसमें इसे 13,000 जानें गंवानी पड़ीं। युद्ध की जनहानि में अकाल और बीमारियों ने भी अपना कम योगदान नहीं दिया था।

काउंट ड्राक्युला ने मुझे गोल्डेन क्रोन होटल में जाने का निर्देश दिया था, जो मुझे मिल गया। जिसे देख कर मुझे बहुत खुशी हुई, कि वह बिलकुल पुराने ढंग का है— क्योंकि मैं जितना हो सके इस देश के तौर-तरीकों को देखना चाहता था। ज़ाहिर है कि मेरा इंतज़ार किया जा रहा था— क्योंकि जैसे ही मैं दरवाजे के पास पहुंचा, मुझे एक खुशमिजाज बूढ़ी औरत मिली, जो आम किसानों वाली वेशभूषा में थी… सफ़ेद निचला परिधान, उसके ऊपर लंबा दोहरा एप्रन, सामने और पीछे कोई रंगीन पोशाक, जो इतनी चुस्त थी कि बुरी लगने लगी थी।

जब मैं पास पहुंचा तो वह झुकी और कहा— “श्रीमान अंग्रेज़?”

“जी हाँ,” मैं ने कहा, “जोनाथन हार्कर।”

वह मुस्कराई, और सफ़ेद कमीज़ पहने एक बूढ़े आदमी को कुछ संदेश दिया— जो उसके पीछे-पीछे दरवाजे तक आया था। वह चला गया, लेकिन फौरन ही एक ख़त के साथ लौट आया।

“मेरे दोस्त, कार्पेथियंस में आपका स्वागत है। मैं बेसब्री से आपका इंतज़ार कर रहा हूँ। आज रात आराम से सोइये। कल शाम तीन बजे के लिये सवारी निकलेगी— इसमें आपके लिये एक स्थान सुरक्षित कर दिया गया है। बोर्गो दर्रे पर मेरी गाड़ी आपके लिये इंतज़ार करेगी, जो आपको मुझ तक ले कर आयेगी। मुझे भरोसा है कि लंदन से यहाँ तक की आपकी यात्रा सुखद रही होगी, और आप मेरी खूबसूरत धरती पर ठहरने का आनंद लेंगे।”
—आपका दोस्त, ड्राक्युला”

4 मई

मैंने पाया कि मेरे मेजबान को भी काउंट का एक ख़त मिला था, जिसमें उसे निर्देश दिया गया था कि गाड़ी में मेरे लिये सबसे अच्छी जगह सुरक्षित करवा दे— लेकिन विस्तार में पूछ-ताछ करने पर लगा कि वह बात करने से कतरा रहा है। उसने ऐसा जताया कि जैसे उसे मेरी जर्मन समझ में नहीं आ रही। यह सच नहीं हो सकता, क्योंकि तब तक तो वह उसे अच्छी तरह से समझ रहा था। कम से कम उसने मेरे सवालों के जवाब तो सही सही ही दिये थे, जैसे कि उसने और उसकी बीवी, उस बूढ़ी औरत ने, जिसने मेरा स्वागत किया था— एक-दूसरे को डरी-डरी नज़रों से देखा।

वह बुदबुदाया कि पैसा एक पत्र द्वारा भेजा गया है, और वह बस इतना ही जानता है। जब मैं ने उससे पूछा कि क्या वह काउंट ड्राक्युला को जानता है, और क्या वह मुझे उसके महल के बारे में कुछ बता सकता है— उसने और उसकी बीवी, दोनों ने सीने पर क्रॉस बनाया और यह कहते हुए कि वे कुछ भी नहीं जानते हैं, आगे बात करने से सिरे से इंकार कर दिया।

निकलने का समय इतना नजदीक आ गया है कि अब किसी और से कुछ पूछने का वक़्त भी नहीं बचा है, क्योंकि यह सब काफी रहस्यमय लग रहा है, और बिलकुल भी सांत्वना देने वाला नहीं है।

मेरे निकलने से ठीक पहले वह बूढ़ी औरत मेरे कमरे में आई और पागलों की तरह कहने लगी, “क्या आपका जाना ज़रूरी है? ओह! बेटे जी, जाना ज़रूरी है क्या?”

वह इतनी उत्तेजित थी कि वह उतनी जर्मन भी नहीं बोल पा रही थी, जितनी उसे आती थी, और उसके साथ किसी और भाषा की खिचड़ी बना दी थी, जो मैं बिलकुल भी नहीं जानता था। मैं बस कुछ सवाल पूछ-पूछ कर उसकी बात समझने की कोशिश कर रहा था। जब मैंने उसे बताया कि मुझे तुरंत जाना ही होगा, और मैं किसी खास काम में लगा हुआ हूँ।

“क्या आप जानते हैं कि आज कौन सा दिन है?” उसने फिर पूछा।

मैंने जवाब दिया कि आज 4 मई है। उसने सिर हिलाया और फिर कहा—

“ओह, हाँ! मुझे पता है! मुझे पता है, लेकिन क्या आपको पता है कि आज दिन कौन सा है?”

क्रमशः

Translated by Mumtaz Aziz Naza

No comments