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ड्रैकुला 15

 

मुझे एक मौका मिला था, जो शायद मुझे दोबारा न मिलता— इसलिए मैंने अपनी सारी ताक़त लगा दी और कई कोशिशों के बाद आखिरकार उसे गिरा ही दिया और अब मैं अंदर घुस सकता था। मैं अब महल के ऐसे हिस्से में था जो उन कमरों के और भी दायीं तरफ था, जिन्हें मैं जानता था, और उनसे एक मंज़िल नीचे था। खिड़कियों से मैं देख सकता था कि कमरों की एक श्रंखला थी, जो महल के दक्षिण की ओर स्थित थी— जिनमें से आखिरी कमरे की खिड़कियाँ पश्चिम और दक्षिण, दोनों ओर खुलती थीं।


पश्चिम की ओर भी और दक्षिण की ओर भी, काफी गहरे खड्ड थे। महल एक विशाल चट्टान के कोने पर बना था, तो तीन तरफ से यह बिलकुल अभेद्य था, विशाल खिड़कियाँ थीं, जहां गोफन, तीर और तोपों के गोले नहीं पहुँच सकते थे, नतीजतन यह प्रकाशित और आरामदेह था, और ऐसी किसी भी स्थिति से सुरक्षित था, जिससे इस तक पहुँच बनाई जा सके। पश्चिम की ओर बहुत बड़ी घाटी थी, जिससे काफी दूरी पर ऊंचे-नीचे अडिग पर्वत, सिर उठाती चोटियों पर चोटियाँ, लम्बवत खड़ी चट्टानें और उन पर जड़े ऐश के वृक्ष और कंटीले पेड़, जिनकी जड़ें पत्थरों की दरारों और छेदों में अपने पैर जमाए थीं। यह संभवतः महल का वह हिस्सा था, जिस पर बीते दिनों में महिलाओं ने कब्जा जमाया हुआ होगा, क्योंकि यहाँ का फर्नीचर अब तक के देखे गए मेरे फ़रनीचरों में से सबसे अधिक आरामदेह था।

खिड़कियों पर पर्दे नहीं थे, और पीली चाँदनी चौकोर शीशों में से छन कर अंदर भरी जा रही थी, जिसकी रोशनी में किसी को रंग भी नज़र आ सकते थे, जबकि धूल के ढेर इससे हल्के पड़ गए थे, जिनसे पूरा कमरा अटा पड़ा था और जिसने बीते दिनों के और कीड़ों के विध्वंस को कुछ हद तक ढक रखा था। चमकदार चाँदनी में मेरे दिये की रोशनी फीकी पड़ गई थी, लेकिन मुझे खुशी थी कि वह मेरे साथ था— क्योंकि उस जगह एक भयावह अकेलेपन का वास था, जिससे मेरा दिल काँपने लगा था और मेरी नसें तक काँप उठी थीं। फिर भी यह उस कमरे में रहने से बेहतर था, जिससे मुझे काउंट की उपस्थिति की वजह से नफरत होने लगी थी, और अपनी तंत्रिकाओं को थोड़ा प्रशिक्षित करने के बाद मैंने पाया कि एक हल्की शांति की भावना मेरे ऊपर हावी होने लगी है।

मैं यहाँ एक छोटी सी बलूत की मेज़ पर बैठा हूँ, जहां प्राचीन काल में संभवतः कोई गोरी महिला बैठ कर शर्माते-सकुचाते हुए सोच-सोच कर अपना गलत-सलत प्रेमपत्र लिखा करती होगी, और मैं शॉर्टहैंड में अपनी डायरी लिख रहा हूँ, वह सब कुछ लिख रहा हूँ जो पिछली बार इसे बंद करने से ले कर अब तक हुआ है। यह उन्नीसवीं सदी है, जो प्रतिशोध से ताज़ा हो चुकी है। और अब भी, अगर मेरी इंद्रियाँ मुझे धोखा नहीं दे रही हैं तो— प्राचीन शताब्दियों की अपनी शक्तियाँ थीं, और हैं, जिन्हें आधुनिकता खत्म नहीं कर सकती।

बाद में: 16 मई की सुबह— भगवान मेरे होशो-हवास कायम रखे, क्योंकि मेरे होशो-हवास खोटे जा रहे हैं। सुरक्षा और सुरक्षा का एहसास बीते दिनों की बातें हो गई हैं। जबकि मैं यहाँ रह रहा हूँ, तो बस अब मैं यही मना रहा हूँ कि मैं कहीं पागल न हो जाऊँ, अगर अभी तक मैं पहले ही पागल न हो चुका होऊँ।

अगर मैं होश में हूँ, तो उन सब बुरी चीजों के बारे में सोचना बेशक पागल कर देने वाला है, जो इस नफरत भरे स्थान पर भटका करती हैं— जिनमें से मेरे लिये काउंट ही सबसे कम भयानक है, कि मैं अपनी सुरक्षा के लिए बस उसी का मुंह देख सकता हूँ… हालांकि यह भी तभी होगा जब मैं उसका उद्देश्य पूरा करूंगा। हे सर्वशक्तिमान! दयानिधान ईश्वर, मुझे शांत कर दे, वरना मैं पागल हो जाऊंगा। मुझे कुछ खास चीजों के बारे में कुछ और भी पता चला है, जिसने मुझे और भी उलझा दिया है। अब तक मैं नहीं जानता था कि जब शेक्सपियर ने हैमलेट से कहलाया था, “मेरी गोलियों! जल्दी करो मेरी गोलियों! मुझे मिलो, ताकि मैं इसे जल्दी से लिख डालूँ,” इत्यादि, तो उसका क्या मतलब था, अब जबकि मेरा अपना दिमाग हिल गया है, या सदमे में आ गया है, जो जल्दी ही काम करना बंद कर देगा तो मैं खुद को तसल्ली देने के लिये अपनी डायरी खोल लेता हूँ। शायद हर चीज़ को इतनी बारीकी से लिखने की आदत ही है, जिससे मुझे सहारा मिलता है।

काउंट की रहस्यमय चेतावनी ने उस समय मुझे काफी डरा दिया था। अब यह मुझे और भी डरा रही है, जबकि मैं इसके बारे में सोच रहा हूँ— क्योंकि भविष्य में वह मुझे अपनी डरावनी पकड़ में ले सकता है। उसने जो भी कहा था, उस पर शक करने में मुझे डर लगता है!

जब मैं अपनी डायरी लिख चुका और खुशकिस्मती से मैंने उसे फिर से अपनी जेब में रख लिया तो मुझे नींद सी आने लगी। काउंट की चेतावनी मेरे दिमाग में गूंजी, लेकिन उसकी अवज्ञा में मुझे अजीब सा आनंद आया। नींद का एहसास मुझ पर हावी हो रहा था, और इसके साथ ही एक ज़िद भी थी, जो नींद के साथ-साथ आई थी। मुलायम चाँदनी आराम पहुंचा रही थी, और बिना दरवाजों के विशाल विस्तार ने मेरे अंदर एक स्वतन्त्रता की भावना भर दी, जिसने मुझे तरो-ताज़ा कर दिया।

मैंने फैसला कर लिया कि आज की रात उन उदास डरावने कमरों में नहीं लौटूँगा, बल्कि यहाँ सोऊँगा, जहां प्राचीनकाल में औरतें बैठती होंगी, और गीत गाती होंगी और मधुर ज़िंदगियाँ जीती होंगी, जबकि उनके मुलायम स्तन अपने मर्दों के लिये उदास होंगे, जो दुखद युद्धों के बीच फंसे रहे होंगे। मैंने एक काउच को इसकी जगह से खींच कर किनारे पर डाल लिया, ताकि जब मैं लेटूँ तो मैं पूर्व और दक्षिण के हसीन नज़ारों को देख सकूँ— और धूल के बारे में न सोचा, न परवाह की, और लेट कर सोने की तैयारी करने लगा।

मुझे लगता है मैं ज़रूर सो गया होऊँगा। उम्मीद करता हूँ, लेकिन डरता हूँ, क्योंकि आगे जो कुछ हुआ, वह चौंका देने की हद तक वास्तविक था, इतना वास्तविक कि यहाँ, सुबह की चमकीली खिली हुई धूप में बैठ कर भी मैं यकीन नहीं कर पा रहा हूँ कि यह सब सपने में हुआ था।

मैं अकेला नहीं था। कमरा वही था, जब से मैं वहाँ आया था, तब से कुछ भी नहीं बदला था। मैं पूरी ज़मीन को देख सकता था, जिस पर खिली हुई चाँदनी में, जहां मैंने लंबे समय से जमी धूल को अस्तव्यस्त कर दिया था, मेरे पैरों के निशान नुमायाँ थे। चाँदनी में मेरे सामने तीन नौजवान औरतें खड़ी थीं, जो अपने कपड़ों और तौर-तरीकों से कुलीन लगती थीं। जब मैंने उन्हें देखा तब मुझे लगा था कि मैं सच में सपना देख रहा हूँ, ज़मीन पर उनकी कोई परछाईं नहीं पड़ रही थी। वे मेरे नजदीक आईं और कुछ देर तक मुझे देखती रहीं, और फिर एक साथ फुसफुसाईं। उनमें से दो साँवली थीं, और उनकी नाकें तोते की जैसी थीं, जैसी काउंट की है, और बड़ी-बड़ी काली चुभती हुई आँखें थीं, जो हल्की पीली चाँदनी में लगभग लाल सी लग रही थीं। तीसरी गोरी थी, इतनी गोरी कि लगभग सफ़ेद सी थी, जिसके घने सुनहरे बाल थे और हल्के नीलम की जैसी आँखें थीं।

क्रमशः


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