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ड्रैकुला 14

 



एक पत्र सैमुएल एफ़॰ बिलिंगटन, न॰ 7, द क्रीसेंट, व्हिट्बी के पते पर था। दूसरा हर ल्यूटनर, वार्न के नाम था। तीसरा कौट्स एंड कं॰, लंदन के नाम था और चौथा हेरेन क्लॉपस्टॉक तथा बिलरियूथ, बैंकर्स, बुडापेस्ट के नाम। दूसरे और चौथे को सीलबंद नहीं किया गया था। अभी मैं उन्हें देखने ही जा रहा था कि मैंने देखा, दरवाजे का हैंडल घूम रहा है। मैं फिर से अपनी सीट में धंस गया, और अपनी किताब पढ़ना शुरू ही किया था कि काउंट ने हाथ में एक और पत्र लिये हुए कमरे में प्रवेश किया। उसने चिट्ठियाँ मेज़ पर रख दीं और सावधानी से उन पर टिकट लगाये, और फिर मेरी तरफ घूम कर कहा—

“मुझे भरोसा है कि आप मुझे माफ कर देंगे, लेकिन आज शाम मुझे अकेले में बहुत काम करना है। मुझे उम्मीद है कि आपको अपनी इच्छानुसार तमाम चीज़ें मिल जायेंगी।” दरवाजे तक जा कर वह पलटा और एक पल रुकने के बाद फिर बोला— “मेरी आपको एक सलाह है, प्यारे जवान दोस्त। नहीं, मैं आपको बड़ी गंभीरता से चेतावनी देता हूँ, कि इन कमरों को छोड़ कर आप किसी भी सूरत में महल के और किसी भी और हिस्से में न सोयें। यह महल पुराना है और इसमें बहुत सी यादें बसी हैं, और जो लोग नादानी से सोते हैं उन्हें बुरे सपने परेशान कर सकते हैं। सावधान रहियेगा! नींद कभी भी आप पर हावी न होने पाये, या अगर ऐसा हो भी जाये तो फ़ैरन अपने कमरे में या इनमें से किसी कमरे में चले आइये, क्योंकि तभी आप सुरक्षित ढंग से आराम कर पायेंगे— लेकिन अगर आप सावधान नहीं रहेंगे, तो ऐसी हालत में...” उसने अपनी बात बड़े भयानक तरीके से समाप्त की, क्योंकि उसने अपने हाथ से ऐसा इशारा किया, जैसे वह उन्हें धो रहा हो।

मैं सब कुछ समझ गया। मुझे बस यही शक था कि क्या कोई सपना उससे भी भयानक हो सकता है, जो अस्वाभाविक और भयावह निराशा और रहस्याओं का जाल मेरे चारों ओर बुना जा रहा है।

बाद में— मैं अपने लिखे गये आखिरी शब्दों का समर्थन करता हूँ, लेकिन इस बार शक का कोई सवाल ही नहीं है। मैं ऐसी किसी भी जगह सोने से नहीं डरूँगा, जहां वह नहीं होगा। मैंने क्रूसिफिक्स को अपने बिस्तर के सिरहाने रख लिया है, मुझे लगता है कि इस तरह मैं सुरक्षित ढंग से आराम कर पाऊँगा, और यह वहीं रहेगा।

जब वह मुझे छोड़ कर चला गया तो मैं अपने कमरे में चला आया। कुछ देर के बाद, कोई भी सुगबुगाहट न होने के कारण मैं पत्थर की सीढ़ियों से ऊपर चला आया, जहां से मैं बाहर दक्षिण की ओर का नज़ारा देख सकता था। दुर्गम विशाल विस्तार में, जहां तक हालांकि मेरी पहुँच नहीं थी, प्रांगण के सँकरे अँधियारे की तुलना में थोड़ी आज़ादी का एहसास होता था। इसे देख कर मुझे महसूस हुआ कि मैं अब भी क़ैद में हूं, और मुझे सांस लेने के लिये थोड़ी खुली हवा की ज़रूरत है, भले ही यह रात की हवा हो। मुझे लगने लगा था कि यह निशाचरी अस्तित्व मुझसे कुछ कह रहा है।

यह मेरी तंत्रिकाओं को तबाह किये दे रहा था। मैं अपनी ही परछाईं से डरने लगा था और मेरे दिमाग में भगवान जाने कैसी कैसी कल्पनाएँ जन्म लेने लगी थीं, और मेरे हर खौफ का बीज इसी शापित स्थान में उगा था! मैंने बाहर के खूबसूरत विस्तार पर नज़र डाली, जो हल्की पीली चाँदनी में ऐसा नहाया हुआ था, कि वहाँ लगभग दिन के जितनी ही रोशनी थी। हल्की रोशनी में दूर की पहाड़ियाँ पिघली हुई सी लगती थीं, और घाटियों और दरारों पर पड़ने वाली परछाइयाँ मखमली काले रंग की थीं। लगता था कि यह सुंदरता बस मुझे खुश करने के लिये है।

हर सांस के साथ मुझे सुकून और चैन का एहसास हो रहा था तो मैं खिड़की पर झुक गया। तभी मेरी नज़र किसी चीज़ पर पड़ी, जो एक मंज़िल नीचे जहां मैं खड़ा था— वहाँ से थोड़ा बाईं तरफ हरकत कर रही थी, जहां, कमरों के क्रम के अनुसार मेरा अंदाज़ा था कि काउंट के अपने कमरे की खिड़की होगी। जिस खिड़की पर मैं खड़ा था वह लंबी और गहरी थी, पत्थरों की बनी थी, और हालांकि मौसम की मार झेल-झेल कर खराब हो चुकी थी, लेकिन फिर भी पूरी थी। ज़ाहिर था कि यह यहाँ काफी दिनों से थी। मैं पत्थर की कारीगरी के पीछे छुप गया और सावधानी से बाहर देखने लगा।

मैंने देखा कि खिड़की में से काउंट का सिर बाहर आ रहा है। मैं चेहरा नहीं देख पा रहा था, लेकिन मैं उसे उसके गले और उसके पिछवाड़े और हाथों की हरकतों से पहचान सकता था। और किसी भी सूरत में हाथों के मामले में तो मैं धोखा खा ही नहीं सकता था, जिनका अध्ययन करने के मुझे कई मौके मिले थे, और जिनमें मुझे काफी दिलचस्पी रही थी, और जिन्होंने मुझे आश्चर्य में डाल दिया था— क्योंकि यह आश्चर्य की बात थी कि जब कोई आदमी क़ैद में होता है तो छोटी-छोटी बातें कैसे उसकी दिलचस्पी को जागा कर उसे आश्चर्य में डाल सकती थीं।

लेकिन तभी, जब मैं ने देखा कि खिड़की में से धीरे-धीरे पूरा का पूरा आदमी निकल आया और भयानक रसातल के ऊपर महल की दीवार पर रेंगने लगा तो मेरा आश्चर्य नफरत और आतंक में बदल गया। उसका मुंह नीचे की ओर था और उसका लबादा उसके आस-पास विशाल पंखों की तरह फैला था। पहले तो मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। मुझे लगा कि यह चाँदनी द्वारा पैदा किया हुआ एक भ्रमजाल है, परछाइयों का एक अजीब सा प्रभाव, लेकिन मैं देखता रहा और यह भ्रम नहीं हो सकता था। मैंने देखा कि उसने हाथों और पैरों की उँगलियों से पत्थरों पर पकड़ बना रखी थी, जिनका गारा बरसों की मार झेल कर झड़ गया था, और इस प्रकार वह बाहर निकल आए पत्थरों की सभी असमानताओं का इस्तेमाल करते हुए अच्छी-ख़ासी रफ्तार से नीचे की ओर बढ़ता रहा, जैसे कोई छिपकली किसी दीवार पर चलती है।

यह किस तरह का आदमी है, या यह किस तरह का प्राणी है, क्या यह मानव का रूप धरे है? मुझे लगता है कि इस भयानक जगह का आतंक मुझ पर हावी होता जा रहा था। मैं खौफ में हूं, भयानक खौफ में, और मेरे बचने का कोई रास्ता नहीं है। मैं ऐसे आतंक के घेरे में हूं, जिसके बारे में मैं सोचना भी नहीं चाहता।

15 मई


एक बार फिर मैंने काउंट को अपने छिपकली वाले तरीके से बाहर जाते देखा। वह कुछ सौ फीट नीचे बाईं तरफ को ज़रा तिरछेपन से नीचे की तरफ बढ़ रहा था। वह किसी छेद या खिड़की के अंदर ग़ायब हो गया। जब उसका सिर ग़ायब हुआ तो मैं ठीक से देखने के लिये बाहर की ओर झुका, लेकिन कुछ भी देख नहीं पाया।

दूरी इतनी ज़्यादा थी कि मुझे देखने के लिये सही कोण नहीं मिल पाया। मुझे पता है कि वह अभी-अभी महल से बाहर गया है और मैंने फैसला किया है कि मैं इस मौके का फायदा उठाऊंगा और थोड़ी और छान-बीन करूंगा, जो अब तक करने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ी थी।

मैं लौट कर अपने कमरे में गया और एक दिया लेकर सारे दरवाजों को खोलने की कोशिश करने लगा। सभी दरवाजों में ताला था, जिसकी मुझे उम्मीद भी थी, और ताले भी बनिस्बत थोड़ा नये थे। लेकिन मैं पत्थर की सीढ़ियाँ उतर कर नीचे हाल में चला आया, जहां से मैं शुरू में आया था। मैंने पाया कि मैं कड़ियों को आसानी से खोल सकता था और जंजीरों को उतार सकता था। लेकिन दरवाजा बंद था, और चाबी गायब थी! वह चाबी ज़रूर काउंट के कमरे में होगी। मुझे देखना चाहिये, शायद उसके कमरे का दरवाजा खुला हो, तो मुझे इसकी चाबी मिल जाये और मैं भाग सकूँ।

मैंने सभी सीढ़ियों और दलानों की अच्छी तरह जांच की और उन दरवाजों को खोलने की कोशिश की, जो वहाँ से खुलते थे। हाल के पास के इक्का-दुक्का छोटे-छोटे कमरे खुले थे, लेकिन उनमें पुराने फर्नीचर के अलावा कुछ नहीं था, जो धूल से अटा पड़ा था और समय की मार और कीड़ों के खाये जाने से सड़ चुका था। हालांकि आखिर में मुझे सीढ़ियों के आखिर में एक दरवाजा मिला, जो यूं तो बंद लगता था, लेकिन दबाव देने से खुल गया। मैंने काफी ज़ोर लगाया, और पाया कि वास्तव में उसमें ताला नहीं लगा था, लेकिन ज़ोर लगाने पर पता लगा कि कब्जे बाहर आ गये और भारी दरवाजा धराशायी हो गया।

क्रमशः



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