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शालिनी

शालिनी

सुबह तहसील पहुँचते ही रिज़वाना ने देखा कि दो पुलिस कांस्टेबल कमरे के बाहर उसका इन्तेज़ार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे रायसेन ज़िले से हैं उस ज़िले की कोई लड़की अस्सी प्रतिशत जल गई है जिसे गम्भीर स्थिति में यहाँ मेडिकल कालिज के बर्न वार्ड में भर्ती कराया गया है। वे तहसीलदार साहिब के घर गए थे ताकि उसके मृत्यु पूर्व बयान के लिए किसी नायब तहसीलदार एवं कार्यपालिक मजिस्ट्रेट की ड्यूटी लगाई जा सके। जिन्होंने उसको यह बयान लेने के लिए आदेशित किया है, आदेश पुलिस के आवेदन सह सूचनापत्र पर दर्ज है जो उसने ले लिया है।

वह अभी चार माह पहले नायब तहसीलदार के पद पर नई नई तहसील कार्यालय में पदस्थ हुई है और अभी परिवीक्षाधीन है। कुछ दिन पहले तहसीलदार साहिब ने मृत्यु पूर्व बयान लेने बाबत सावधानियां और नियम उसे बताए थे और अब उनको व्यवहार में प्रयोग किया जाना था। उन्होने यह भी बता दिया था कि आसपास ज़िलों में बर्नवार्ड न होने से गम्भीर जले मरीज़ों को राजधानी के मैडिकल कालिज में लाना पड़ता है और हर सप्ताह एविडेंस एक्ट की धारा 32 (1) के तहत कम से कम एक बर्नकेस के मृत्यु पूर्व बयान लेने के लिए किसी नायब तहसीलदार एवं कार्यपालिक मजिस्ट्रेट की ड्यूटी लगानी होती है। यह माना जाता है कि मरने से पूर्व व्यक्ति सच ही बोलता है इसलिए इस बयान का अधिक महत्व है। कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति यह बयान ले सकता है।

उसने अपनी सील, पैड पर्स में डाले और कुछ सादे काग़ज़ एक फ़ोल्डर में रखे और बाहर आकर पुलिस की जीप में बैठ गई। दोनों कांस्टेबिल पीछे बैठ गए और गाड़ी मैडिकल कालिज के लिए रवाना हो गई।

अस्पताल कोई सा भी हो तरह तरह की दवाओं आदि की गन्ध घुसते ही हमला कर देती है, दिल वैसे भी अजब सा हुआ रहता है कि पता नहीं कैसे कैसे मरीज़ यहाँ आए गए होंगे । फिर ये तो प्रदेश का सबसे बड़ा मेडिकल कालिज था जिसके साथ अस्पताल भी शामिल था। वह उन दोनों कांस्टेबिल्स के पीछे बरामदों और वार्डों से गुज़रती गई। बर्न वार्ड के समीप पहुँचते पहुँचते दूर से आती अजीब सी गन्ध तेज़ व असह्य होती चली गई। उसने सोचा ये डाक्टर कैसे अस्पताल में काम कर पाते होंगे। पास के केबिन में दो डाक्टर मौजूद थे जिनसे परिचय कराते हुए एक कांस्टेबिल ने उन्हें बताया-


"डाक्टर साहिब हम मजिस्ट्रेट मैडम को डाइँग डिक्लेयरेशन के लिए ले आए हैं "


"ओ के, देखता हूँ पेशेन्ट होश में है कि नहीं, अभी उसकी कन्डीशन क्या हैॆ, आइए मैडम " डाक्टर ने अपनी सीट से उठते हुए उसे अपने पीछे आने का इशारा किया और पास के वार्ड में दाख़िल हो गए। जैसे ही चप्पल उतार कर उसने वार्ड के अन्दर लगे हरे कपड़े से बनाए गए घेरे में क़दम रखा जले हुए गोश्त की तेज़ दुर्गन्ध से एक बार तो सिर चकरा गया और दूसरे ही पल लगा कि उल्टी जैसी स्थिति होने लगी। उसने स्वयं को पूरी कोशिश से संयत किया। सामने पलंग पर एक महिला का कन्धों से पैरों तक सफ़ेद क्रीम लगाया हुआ, ज़ख़्मों से उधड़ा और जला हुआ नग्न शरीर था जिस को जाली के छातानुमा फ़्रेम वाले कवर से ढका गया था। वह दर्द से निढाल बहुत थकी आवाज़ में कराह रही थी।


डाक्टर ने उसे पुकारा - " शालिनी... शालिनी... आँखे खोलो देखो तुम से कौन मिलने आया है।"

उसने आँखें खोलीं ... उफ़ ये आँखें और यह दर्द.. . और रिज़वाना सिहर कर उसके चेहरे का जायज़ा लेने लगी... पूरा शरीर जल जाने से ज़ख़्मी हो गया है लेकिन चेहरा बच गया है, बहुत ही सुन्दर नैन नक्श ... जैसे कोई तस्वीर है... रंग ज़रूर कुम्हलाए फूल की तरह पीला हो रहा है।

डाक्टर ने पूछा - "शालिनी.. कैसी हो बेटा.. अपनी माता जी का नाम बताओ।"


वह कमज़ोर आवाज़ में बोली - "माँ कहाँ है? दर्द है... बहुत.. "


डाक्टर ने कहा- "माँ अभी आएँगी तुम उनका नाम बताओ बुलवाते हैं उनको"


"साधना .. उनका नाम साधना.. पिता का नाम रामनारायण... रायसेन "


"ओ के बेटा.. बुलवाते हैं.. ये मैडम आपसे मिलने आई हैं इनसे बात करो।"

डाक्टर ने रिज़वाना से मरीज़ के सिरहाने रखे स्टूल पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, " आप बयान ले सकती हैं लाइए मैं सर्टिफिकेट लिख देता हूँ ।"


डाक्टर ने सादे काग़ज़ पर लिखा- “the patient is in a fit state of mind to depose”


(प्रमाणित किया जाता है कि मरीज़ अपने होश हवास में बयान लिखवाने की स्थिति में है।)


और प्रमाणपत्र लिखा हस्ताक्षरित काग़ज़ सील लगाने के बाद रिज़वाना को सौंप दिया।

आहट से लगा जैसे इस बीच वार्ड के दरवाज़े के पास खड़ा कांस्टेबिल अन्दर होने वाली बातचीत सुनने के प्रयास में था। रिजवाना उठ कर दरवाज़े तक गई और सभी पुलिस वालों को दूर जा कर बैठने और यदि मरीज़ के कोई रिश्तेदार आस पास हों तो उन्हें भी दूर बैठाने का निर्देश दिया और ऐसा होने पर मरीज़ के साइड में रखे स्टूल पर आ कर बैठ गई और मरीज़ से बहुत प्यार और नरमी से बोली-


"सुनो मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ... तुम कैसे इतनी जल गईं? ... क्या हुआ था? ... "


शालिनी ने आँखे बन्द कर लीं,

रिज़वाना मनाती रही -"मुझे बताओ.. मैं तुम्हारी दोस्त हूँ .. " पन्द्रह मिनट ... बीस मिनट बीतते रहे वह समझाती रही "तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो.. आँखें खोलो.. देखो "


कुछ पल आँखें खुली उसके चेहरे पर जमी रहीं फिर उसने पूछा-"मैं मर जाऊँगी न... आह ... मर ही रही हूँ मैं... मैं मरना नहीं चाहती ... मुझे बचा लो " आँखों में भरी याचना गहरे तक जा रही थी समय बीत रहा था और धीरे धीरे जैसे उस तेज़ दुर्गन्ध की रिज़वाना अभ्यस्त होती जा रही थी, सामने केवल एक दम तोड़ती महिला रह गई थी।


" डाक्टर हैं न वे तुम्हारा इलाज करेंगे.. बचा लेंगे।"


"लेकिन वे लोग मुझे मार देंगे.. " टूटी फूटी आवाज़ में वह बोली।


"कौन... कौन मार देंगे तुम्हें... "


" वही... विनोद... जिसने मुझे जलाया... वह पागल है.. और उसके माँ बाप "


रिज़वाना सन्न रह गई ।


" नहीं अब कोई कुछ नहीं कर पाएगा, तुम मुझे पूरी बात बताओ, मैं तुम्हारी हर बात लिखूँगी और तुम्हें न्याय दिलवाऊँगी"


और वह तैयार हो गई.. और अटक अटक कर प्रश्नों के जवाब देने लगी...


रिज़वाना ने कहा- " बोलो जो कहोगी सच कहोगी भगवान को साक्षी मान कर ईमान से कहोगी। "


"जी ईमान से कहूँगी।"

डाक्टर के प्रमाणपत्र के नीचे बयान लिखा जाने लगा-

शपथपूर्वक बयान


प्रश्न - तुम्हारा नाम, उम्र /उत्तर- शालिनी, 22 वर्ष


प्रश्न- पिता का नाम/ उत्तर- रामनारायण


प्रश्न- माँ का नाम/ उत्तर- साधना


प्रश्न- घर का पता/ उत्तर- .......

बयान से जो कहानी सामने आई। वह यह थी। उसके माता पिता रायसेन ज़िले के गाँव के बहुत ग़रीब खेतीहर मज़दूर हैं जिनकी पाँच बेटियों में से वह एक है। विनोद के पिता पुलिस विभाग में ऊँची पोस्ट पर हैं। विनोद उनका इकलौता पुत्र है जिसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। शालिनी के पिता को लालच देकर उन्होंने यह रिश्ता किया, वह तैयार नहीं थी तब भी जबरदस्ती ससुराल भेज दिया गय़ा। शादी को दस बारह दिन हुए हैं। वह विनोद से बात तक नहीं करना चाहती थी। अपने साथ शारीरिक ज़बरदस्ती की कोशिश करने पर उसने दो बार विनोद को कमरे से बाहर धकेल कर दरवाज़ा बन्द किया। एक बार घर से निकल कर भागी लेकिन फिर पकड़ ली गई। दो दिन पहले भी उसने कमरे का दरवाज़ा बन्द कर लिया था और सो गई थी, पता नहीं विनोद ने कैसे दरवाज़ा खोला या खिड़की से अन्दर आया । स्वयं पर कुछ गीला गीला डाले जाने पर वह जागी तब विनोद वहाँ था उसने माचिस जला कर उस पर फेंक दी, वह बहुत चिल्लाई और जल गई। फिर होश नहीं रहा। एक दिन उन सबने घर पर ही रखा। फिर पुलिस आई और यहाँ ले आए। वे कहते हैं वे उसके पूरे परिवार को जला देंगे यदि किसी से उसने कुछ कहा तो। "

बयान लिखते हुए कितना समय बीता रिज़वाना को याद नहीं, दुनिया भूल गई, वह तो बस उसे लिख रही थी जो शालिनी रुक रुक कर और थम थम कर बता रही थी। बयान हो गया। शालिनी दस्तख़त नहीं कर सकती थी जले होने से हाथ के अँगूठे लगाने कठिन थे फिर भी दिल पक्का करके लगवाए, एक पैर का अँगूठा कुछ बेहतर था जिसका निशान भी लगवाया, उसके बाद रिज़वाना ने प्रमाणीकरण लिखा।


"प्रमाणित किया जाता है कि बयान लेते समय पुलिस का कोई व्यक्ति या शालिनी का कोई रिश्तेदार यहाँ उपस्थित नहीं रहा है।"


हस्ताक्षर करके सील लगा कर उसने अस्ल बयान मय कार्बन पेपर की दो प्रतियों के अपने पर्स में रखा। शालिनी को तसल्ली दी जो अब बुरी तरह थक गई थी और दर्द से बेहाल हो रही थी, इस बीच डाक्टर एक दो बार उसे चैक करने आए । वह डाक्टर के केबिन में गई और पूछा - " डाक्टर साहिब शालिनी बच तो जाएगी न? " डाक्टर ने कुछ पल रिज़वाना का चेहरा देखा फिर धीमे लहजे में बोले-" मैडम वह अस्सी परसेन्ट बर्न है इन मरीजों का कुछ पता नहीं चलता, ये अच्छे से बोलते रहते हैं और अचानक सब ख़त्म हो जाता है, उसका सीना जल गया है, बचना असम्भव है।"

रिजवाना उठ खड़ी हुई। रायसेन के टी आई भी कांस्टेबिल के साथ बाहर मौजूद थे। जिन्होंने सैल्यूट करने के बाद मृत्यु पूर्व बयान की एक कापी चाही जो उसने देने से या कुछ भी बताने से इन्कार कर दिया और जीप में जा बैठी। जीप ने उसे तहसील छोड़ दिया।


अभी यह मृत्यु पूर्व बयान नहीं बयान ही था लेकिन अपराध घटित हुआ था। तहसील कार्यालय आकर उसने दो प्रतियाँ लिफ़ाफ़े में सील बन्द करके जिला न्यायालय को सीधे भेज दीं।


अगले दिन समाचार पत्र में रायसेन की एक नवविवाहिता के संदिग्ध परिस्थितियों मे जल कर मर जाने का छोटा सा समाचार था जो पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी की पुत्रवधू थी। जिस पर पुलिस ने केस दर्ज किया है।
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महीने बीत गए हैं।


रिज़वाना के पति पुलिस विभाग में हैं जिनसे रविवार को प्राय: लोग मिलने आते रहते हैं। किसी अधिकारी के मिलने आने पर उसने चाय भेजी थी वे अभी गए हैं।


"सुनो तुमने किसी लड़की का डाइंग डिक्लेयरेशन लिया था?" उसके पति ने पूछा।


"जी कई लड़कियों के ले चुकी हूँ।"


"तुम सीधे सीधे नौकरी करो, इन सब झंझटों में मत पड़ो, ये केसेज़ कोर्ट जाते हैं, ज़रा सी चूक में ख़ुद परेशानी में आ जाओगी।"


फिर कुछ देर सोचने के बाद बोले, "किसी पुलिस अधिकारी की बहू का बयान भी तुमने लिया था, जो जल गई थी?"

रिज़वाना ने कहा, "जी, शालिनी नाम था उसका"


"तुम उसमें गवाही के लिए कोर्ट मत जाना और जाओ तो उसके घर के लोगों को मत उलझाना।"


"जी, क्यों न जाऊँगी? मैंने बयान लिया है उसका?"


"ये प्रभावशाली और ख़तरनाक लोग हैं, वह लड़की जा चुकी है, वापिस नहीं आ सकती, पुलिस ने आत्महत्या का केस बनाया है, वह लड़का ज़मानत पर बाहर है, तुम्हें लड़की ने क्या बयान दिया था?"


"वह बयान नहीं था अमानत थी, जिसे मैंने सीधे कोर्ट को उसी दिन रवाना कर दिया था।"


"अरे तो मुझे तो बता दो, मुझे मालूम हुआ है तुमने न पुलिस को उसकी कापी दी न तहसीलदार को कुछ बताया और सीधे कोर्ट को बयान भेज दिया।"


"जी उसका प्रोसीजर यही होता है। वह मेरी ड़्यूटी थी।"


"तुम देखना किसी दिन ऐसी मुसीबत में फँसोगी कि निकलना मुश्किल हो जाएगा। फिर मत कहना, आइडिल्यस एक हद तक निभाए जाते हैं।" वे झल्ला गए थे।


रिज़वाना की निगाहों में शालिनी की ज़िन्दगी की चाह रखती आँखें घूम गईं। आह! वह बचा लिए जाने का आग्रह करती कमज़ोर सी आवाज़...। वह कुछ देर गुमसुम खड़ी रह गई फिर बोली, "मैं अपनी नौकरी में आपकी मदद नहीं माँगूँगी।" और वहाँ से हट गई।


इस मामले में एस डी एम और तहसीलदार ने भी मौखिक रूप से जानना चाहा था कि महिला ने क्या बयान दिया था जानकारी उसने नहीं दी थी। उन्होंने भी उसे दफ़्तर सम्भल कर आने जाने बाबत सावधान किया था।
अब घर की ओर से यह अन्तिम स्तर तक का दबाव था।
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रिज़वाना कोर्ट में गवाह के कटघरे में गवाही के लिए उपस्थित है। उसका लिया हुआ बयान उसको दिखाया गया और यह तस्दीक चाही गई कि यह बयान उसने ही लिखी गई दिनांक को लिया था, उसी की हैंडराइटिंग है, सारे प्रमाणीकरण सच हैं। आदि आदि, उसने तस्दीक़ की।


जिरह (क्रासएग्ज़ामिनेशन, प्रतिपृच्छा) के लिए प्रदेश के तीन जाने माने वकील थे-


प्रश्न- हमारा कहना है कि जब आपने बयान लिया लड़की होश में नहीं थी वह अस्सी प्रतिशत जली थी। आपने मनमर्ज़ी से कुछ भी लिख कर कोर्ट को भेज दिया था।


उत्तर- नहीं, वह बोल रही थी और होश में थी, ड्यूटी डाक्टर ने प्रमाणित किया हुआ है।


प्रश्न- वहाँ पुलिस और लड़की के रिश्तेदार मौजूद थे उनका भी लड़की पर दबाव था।


उत्तर- नहीं वहाँ कोई नहीं था, मैंने प्रमाणित किया है।"


प्रश्न- आपके पति और लड़की के ससुर दोनों पुलिस विभाग में हैं, उनमें आपसी रंजिश रही है जिसका बदला लेने के लिए उन्होंने आपका उपयोग किया है।


(और इसके साथ ही बचाव पक्ष के वकील ने रिज़वाना के पति के हस्ताक्षर से जारी किसी कार्य में लापरवाही के लिए उस लड़की के ससुर को जारी एक पुराना 'कारण बताओ सूचना पत्र' भी प्रस्तुत कर दिया।)


उत्तर- नहीं, बयान लेते समय मुझे बिल्कुल नहीं मालूम था कि रश्मि किस की बहू है।

इसी विषय पर दो दिन प्रतिपरीक्षण जारी रही और रिज़वाना को हर तरह घेरने की कोशिश करने पर भी वह शान्तिपूर्वक संक्षिप्त जवाब देती गई।
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अन्तत: कुछ वर्ष बाद फ़ैसला हुआ विनोद की मानसिक जाँच पश्चात वह ग्वालियर मानसिक चिकित्सालय इलाज के लिए भेज दिया गया और साक्ष्य छिपाने के अपराध में सास ससुर को सज़ा हो गई। लेकिन बरसों बाद भी शालिनी का चेहरा और वे आँखें रिज़वाना को यथावत् याद हैं और वह सोचती है कि एक सम्भावनाओं से पूर्ण जीवन का ऐसा कष्टदायक अन्त करने वालों के लिए क्या ये सज़ाएँ पर्याप्त हैं?

(समाप्त)

Writte By: Shameem Zahra

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