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ड्रैकुला 21

 


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  • जैसे ही दरवाजा खुलने लगा—
  • भेड़ियों की गुर्राहट और भी तेज़ और उग्र होने लगी। उनके सुर्ख जबड़े और किटकिटाते हुए दाँत थे और वे अपने कुंद पंजों वाले पैरों से उछल-उछल कर दरवाजे के अंदर आने की कोशिश करने लगे। मैं समझ गया कि इस वक़्त काउंट के खिलाफ संघर्ष करना बेकार है।

    ऐसे साथियों के होते हुए, जो उसके हुक्म के गुलाम हैं, मैं कुछ नहीं कर सकता। दरवाजा अभी भी धीरे धीरे खुल रहा था और काउंट उसके बीच में खड़ा था। अचानक मेरे मन में आया कि शायद मेरी तबाही का पल यही है। शायद मुझे भेड़ियों को खिला दिया जायेगा, और वह भी मेरी अपनी फरमाइश पर। इस विचार में एक शैतानी कुटिलता भरी थी, लेकिन यह काउंट के लिये काफी आसान था। और आखिरी चांस लेते हुए मैं चिल्लाया— “दरवाजा बंद कर दो! मैं सुबह तक इंतज़ार कर लूँगा।”

    और गहरी निराशा के कड़ुए आंसुओं को छुपाने के लिये मैंने अपने हाथों से अपना चेहरा ढंक लिया।

    अपने शक्तिशाली हाथ के एक ही झटके से काउंट ने दरवाजा बंद कर दिया, और विशाल बोल्ट बंद हो गये और बोल्टों के अपनी जगह बैठने की आवाज़ पूरे हाल में गूंज गई।

    हम खामोशी से लाइब्रेरी में लौट आये, और एक-दो मिनट बाद मैं अपने कमरे में आ गया। आखिरी बार मैंने काउंट ड्राक्युला को तभी देखा था, कि उसने मुझे अपने हाथों को चूमने पर मजबूर किया था। उसकी आँखों में जीत की खूनी चमक थी, और उसके होंठों पर एक ऐसी मुस्कान थी, जिस पर नर्क में यहूदा को गर्व होगा।

    जब मैं अपने कमरे में था और लेटने ही जा रहा था, कि मुझे लगा कि मैंने अपने दरवाजे पर किसी को कुछ फुसफुसाते सुना है। मैं दरवाजे के पास गया और कान लगा कर सुनने लगा। अगर मेरे कान धोखा नहीं दे रहे थे तो मैंने काउंट की आवाज़ सुनी थी।

    “जाओ, जाओ, अपनी जगह वापस जाओ! अभी तुम्हारा समय नहीं आया है। रुको! सब्र रखो! आज की रात मेरी है। कल की रात तुम्हारी है!” हंसी का एक हल्का सा मीठा बवंडर उठा, और रोष में मैंने एक झटके से दरवाजा खोल दिया, और देखा, तीनों औरतें अपने होंठों पर ज़ुबान फिरा रही थीं। जैसे ही मुझे देखा, उन सब ने मिल कर भयानक ठहाका लगाया और भाग गईं।

    मैं अपने कमरे में वापस लौट आया और अपने घुटनों पर गिर पड़ा। तो क्या अंत इतना नजदीक आ गया है? कल! कल! भगवान, मेरी मदद कर, और उनकी भी, जो मुझे प्यार करते हैं!

    30 जून

    सुबह— ये शायद इस डायरी में मेरे लिखे आखिरी शब्द होंगे। मैं सूरज निकालने के ठीक पहले तक सोया, और जैसे ही मैं उठा, अपने घुटनों के बल बैठ गया, क्योंकि मैंने फ़ैसला कर लिया था कि अगर मौत आये, तो मुझे तैयार पाये।

    अंत में मैंने हवा में एक बारीक सा बदलाव महसूस किया और मैं समझ गया कि सुबह हो चुकी है। तभी मुर्गे ने बांग दी और मुझे लगने लगा कि मैं सुरक्षित हो गया हूँ। खुशी-खुशी मैंने दरवाजा खोला और भागता हुआ नीचे हाल में पहुंचा। मैंने देखा था कि दरवाजे पर ताला नहीं है और अब मैं भाग सकता हूँ। उत्तेजना से काँपते हाथों से मैंने ज़ंजीरें खोलीं और फिर विशाल बोल्टों को खोला।

    लेकिन दरवाजा हिला भी नहीं। मेरे ऊपर निराशा छा गई। मैं दरवाजे को खींचता रहा, और उसे हिलाता रहा, और वह विशाल दरवाजा अपनी चौखट पर खड़खड़ाता रहा। मैं अपनी सारी कोशिशें नाकामयाब होते देख सकता था। मेरे काउंट को छोडने के बाद इस पर ताला लगा दिया गया था।

    फिर मेरे अंदर एक तीव्र इच्छा जागी कि मैं किसी भी कीमत पर चाबी हासिल करूँ, और मैंने उसी वक़्त फिर से उस दीवार से उतरने और काउंट के कमरे में जाने का फैसला कर लिया। शायद वह मुझे मार डाले, लेकिन इन शैतानों के बीच मौत एक आसान विकल्प मालूम पड़ रही है। बिना रुके मैं जल्दी से पूर्वी खिड़की पर गया और पिछली बार की तरह दीवार से उतर कर काउंट के कमरे में पहुँच गया। कमरा खाली था, जिसका मुझे अंदाज़ा भी था। मुझे कहीं कोई चाबी नहीं मिली, लेकिन सोने का ढेर वहीं पड़ा था। मैं कोने के दरवाजे से जा कर घुमावदार सीढ़ियाँ उतरते हुए अंधेरा गलियारा पार कर के पुराने चैपल में पहुँच गया। अब मुझे अच्छी तरह पता था कि वह राक्षस मुझे कहाँ मिलेगा।

    विशाल बक्सा दीवार के पास अपनी जगह पर था, लेकिन इस पर ढक्कन लगा था, कीलों को जड़ा नहीं गया था, लेकिन वे जड़ने के लिये एकदम तैयार थीं।

    मुझे पता था कि चाबी पाने के लिये मुझे उसके शरीर तक पहुँचना होगा, इसलिये मैंने ढक्कन उठाया, और उसे दीवार के सहारे खड़ा कर दिया… और फिर मैंने कुछ ऐसा देखा कि मेरी आत्मा तक काँप गई। काउंट उसमें लेटा था और ऐसा लग रहा था कि उसकी आधी जवानी लौट आई है। क्योंकि उसके सफ़ेद बाल और मूंछें गहरे स्लेटी रंग में बादल गई थीं। गाल कुछ भरे-भरे थे, और सफ़ेद त्वचा के नीचे से माणिक सी लाल आभा झलक रही थी। मुंह पहले से भी ज़्यादा लाल था, जैसे होंठों पर ताज़े खून के थक्के जमे थे, जो मुंह के कोनों से छलक कर ठुड्डी और गर्दन तक बह रहा था। यहाँ तक कि गहरी जलती हुई आँखें भी भरे हुए मांस में धँसी लग रही थीं। क्योंकि ऊपरी और निचली पलकें फूल गई थीं। ऐसा लगता था कि पूरा भयानक प्राणी खून से लबालब भर गया है। वह किसी गंदी जोंक की तरह लेटा था, जो पेट भरने में थक गया था।

    जैसे ही मैं उसे छूने के लिये नीचे झुका, मैं काँप उठा, और मेरी सभी इंद्रियाँ उससे दूर जाने के लिए विद्रोह करने लगीं— लेकिन मुझे ढूँढना था, वरना मैं हार जाता। अगली रात मेरे अपने शरीर पर भी वे तीनों भयानक चुड़ैलें दावत उड़ा सकती थीं। मैंने पूरे शरीर की तलाशी ली, मगर मुझे चाबी का नामो-निशान तक नहीं मिला। फिर मैं रुका और मैंने काउंट की ओर देखा। उसके फूले-फूले चेहरे पर एक मज़ाक उड़ाती हुई मुस्कान थी, जो मुझे पागल किये दे रही थी। इसी प्राणी को मैं लंदन स्थानांतरित होने में मदद कर रहा था, जहां शायद आने वाली सदियों तक अपने दल के साथ लाखों लोगों के खून से अपनी प्यास बुझाया करेगा, और मजबूर लोगों के रक्त पर पलने वाला अर्ध-दानवों का हमेशा बढ़ते जाने वाला समाज खड़ा कर देगा।

    इस विचार ने मुझे पागल कर दिया। ऐसे राक्षस से दुनिया को छुटकारा दिलाने की भयानक इच्छा मुझ पर हावी हो गई। वहाँ कोई जानलेवा हथियार नहीं था, लेकिन मुझे एक बेलचा मिल गया, जिसका इस्तेमाल मजदूर लोग शायद बक्सों में मिट्टी भरने के लिए करते होंगे। मैंने उसे उठाया और इसके धारदार किनारे से उसके नफरत से भरे हुए चेहरे पर वार किया— लेकिन जैसे ही मैंने ऐसा किया, उसका सिर घूम गया, और गिरगिट की जैसी मक्कार और दहशत अंगेज़ नज़रें मुझ पर पड़ीं। उसकी नज़रों ने मुझे पंगु बना दिया, और बेलचा मेरे हाथ से छूट कर उसके चेहरे पर गिरा और माथे पर एक गहरा निशान बनाता चला गया। बेलचा मेरे हाथ से छूट कर बक्से में गिरा और जब मैंने उसको खींचा तो उसकी धार ढक्कन में फंस गई और ढक्कन गिर कर बंद हो गया और वह भयानक चीज़ मेरी नज़र से छुप गई। आखिरी झलक जो मैंने देखी— फूले हुए खून सने चेहरे की थी, जिस पर एक कलुषित मुस्कुराहट थी, जो खुद सबसे निचले नर्क को धारण करने वाला था।

    क्रमशः

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