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ड्रैकुला 33

 

"डेमेटर" का लॉग....जारी

22 जुलाई- पिछले 3 दिन से मौसम खराब है, और सभी लोग पालों की देख-भाल में व्यस्त हैं, डरने के लिये वक़्त ही नहीं है। लगता है कि आदमी अपने डर को भूल गये हैं। साथी फिर से खुश है, और सभी कुछ बढ़िया है। वह खराब मौसम में काम करने के लिये आदमियों की तारीफ कर रहा है। हम जिब्राल्टर को पार करके जलडमरू मध्य से बाहर निकाल गये। सब ठीक है।

24 जुलाई– लगता है कि जहाज़ को कोई अभिशाप लग गया है। पहले ही एक आदमी की कमी थी, बिसके की खाड़ी में घुस रहे हैं और मौसम भी खराब है, और पिछली रात एक और आदमी खो गया, गायब हो गया। पहले वाले की ही तरह वह भी अपनी पहरेदारी खत्म की और फिर नहीं देखा गया। आदमी सब डर में हैं और घबरा रहे हैं, उन्होंने एक परवाना जारी किया है और दोहरी निगरानी की मांग कर रहे हैं, क्योंकि वे अकेले रहने में डर रहे हैं। साथी नाराज़ है। डर रहा है कि ज़रूर कोई गड़बड़ है, कि या तो वह, या आदमी कोई फसाद खड़ा कर सकते हैं।

28 जुलाई– नर्क में चार दिन, किसी तरह का बवंडर दस्तक दे रहा है, और हवाएँ बहुत तेज़ हो गई हैं। कोई भी सो नहीं सका है। सभी आदमी थकान से चूर हैं। समझ में नहीं आ रहा कि निगरानी कैसे जारी रखी जाये, क्योंकि कोई भी इसके लिये तैयार नहीं है। दूसरे साथी ने स्वेच्छा से स्टियरिंग और निगरानी की ज़िम्मेदारी उठा ली है, ताकि आदमी कुछ घंटों के लिये सो सकें। हवा रुक रही है, लेकिन समंदर अभी भी भयानक है, लेकिन थोड़ा शांत हो गया है, क्योंकि जहाज़ स्थिर हो गया है।

29 जुलाई– एक और हादसा, आज की रात एकल निगरानी थी, क्योंकि क्रू इतना थका हुआ था कि दोहरी निगरानी नहीं कर सकता था। जब सुबह का पहरेदार डेक पर आया तो उसे स्टियरिंग वाले आदमी के अलावा और कोई नहीं मिला। उस चीख-पुकार मचा दी तो सब डेक पर आ गये। अच्छी तरह तलाश की, लेकिन कोई नहीं मिला। अब दूसरा साथी नहीं है और क्रू दहशत में है। साथी और मैं सहमत हो गये हैं कि हथियारबंद रहें और किसी भी कारण के संकेत की प्रतीक्षा करें।

30 जुलाई– पिछली रात। खुशी हो रही है कि हम इंग्लैंड के नजदीक पहुँच रहे हैं। मौसम अच्छा है, सारे पाल चढ़े हुए हैं, थके हुए लोगों को छुट्टी दे दी और गहरी नींद सोया। मेट ने मुझे यह कहते हुए उठाया कि दोनों पहरेदार और स्टियरिंग वाला आदमी गायब हैं। अब जहाज़ पर काम करने के लिए बस मैं, साथी और दो लोग बचे हैं।

1 अगस्त– दो दिन से कोहरा छाया है, और पाल नहीं दिख रहे। उम्मीद है कि जब इंग्लिश चैनल में पहुंचेंगे तो मदद के लिये या दिशानिर्देश के लिये संकेत भेजने में सक्षम हो पायेंगे। पाल पर काम करने की शक्ति नहीं है, बस हवा से चल रहा है। उन्हें उतारने की हिम्मत नहीं पड़ रही, क्योंकि दोबारा चढ़ाना मुश्किल होगा। ऐसा लगता है कि हम किसी भयानक तबाही की ओर बहे जा रहे हैं। अब साथी बाक़ी लोगों से ज़्यादा हताश है। उसका शक्तिशाली स्वभाव मन ही मन उसके खिलाफ काम कर रहा है। आदमी डर के परे जा चुके हैं और दृढ़ता और धैर्य से काम कर रहे हैं। उन्होंने बुरे से बुरे के लिये अपने मन को तैयार कर लिया है। वे रूसी हैं, वह रोमानी है।

2 अगस्त, आधी रात– शायद मेरे पोर्ट के बाहर से ही किसी चीख की आवाज़ सुन कर कुछ मिनट के बाद ही आँख खुल गई। कोहरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। दौड़ कर डेक पर पहुंचा, और साथी के पास गया। उसने मुझे बताया कि उसने भी चीख सुनी थी और दौड़ कर आया था, लेकिन प्रहरी का नामो-निशान तक नहीं था। एक और गया। भगवान, हमारी मदद कर! मेट का कहना है कि हमें डोवर के जलडमरूमध्य से पहले होना चाहिये, क्योंकि कोहरे के बीच एक पल के लिये उसने उत्तरी फोरलैंड को देखा था, तभी, जब उसने उस आदमी की चीख सुनी थी। अगर ऐसा है तो हम अब उत्तरी सागर में हैं, और अब कोहरे में, जो लगता है कि हमारे साथ-साथ चल रहा है, भगवान ही हमें रास्ता दिखा सकता है, और भगवान ने तो लगता है कि हमें छोड़ दिया है।

3 अगस्त, आधी रात को– मैं स्टियरिंग पर तैनात आदमी को छुट्टी देने गया था, और जब मैं वहाँ पहुंचा तो पाया कि वहाँ कोई नहीं है। हवा स्थिर थी, और जैसा पहले था, जहाज़ भी डोल नहीं रहा था। मुझे उसे छोड़ कर जाने की हिम्मत नहीं हुई, इसलिये मैंने मेट को आवाज़ दी। कुछ पल बाद वह अपनी बकवास के साथ भाग कर डेक पर आया। उसकी आँखें खौफ से फटी हुई थीं और वह थका हुआ लग रहा था, और मुझे बहुत डर लगा कि उसकी तर्कशक्ति भी टूट चुकी है। वह मेरे नजदीक आया और फटी-फटी आवाज़ में मेरे कान में फुसफुसाया, जैसे उसे डर हो कि कहीं हवा कुछ न सुन ले।

“वह यहीं है। मैं अब उसे जान गया हूँ। मैंने कल रात पहरा देते हुए उसे देखा था, वह किसी आदमी की तरह था, लंबा और पतला, और लाश की तरह सफ़ेद। वह जहाज़ के अगले हिस्से में था और बाहर देख रहा था। मैं दबे पैरों उसके पास पहुंचा और अपने छुरे से उस पर वार किया, लेकिन छुरा उसके आर-पार निकल गया, वह हवा के जैसा खाली था।” और बात करते-करते उसने जंगलीपन से हवा में छुरा चलाया। फिर वह आगे बोला,

“लेकिन वह यहीं है, और मैं उसे ढूंढ निकालूँगा। वह सामान में है, शायद उन बक्सों में से किसी में। मैं उन्हें एक-एक कर के खोलुंगा और देखुंगा। तुम स्टियरिंग संभालो।”

और चेतावनी भरी नज़र से देखते हुए अपने होंठों पर उंगली रखे वह नीचे चला गया। हवा तेज़ चल रही थी, और मैं पतवार नहीं छोड़ सकता था। मैं ने उसे टूल चेस्ट और लालटेन के साथ वापस डेक पर आते और आगे के हैचवे से नीचे जाते देखा। वह पागल है, निरा पागल है, और उसे रोकने की कोशिश कर के कोई फायदा नहीं होने वाला। वह उन बड़े बक्सों को नुकसान नहीं पहुंचा सकता, उन्हें मिट्टी के रूप में दर्ज किया गया है, और उनको खोलने से कोई नुकसान तो नहीं होने वाला, जैसा कि वह कर सकता है। तो मैं यहीं रह कर पतवार की फिक्र कर रहा हूँ और ये नोट लिख रहा हूँ। मुझे बस भगवान पर भरोसा है और कोहरा छंटने का इंतज़ार है। फिर अगर मैं किसी बन्दरगाह तक नहीं जा पाया, क्योंकि हवा ऐसी चल रही है, तो मैं पालों को काट दूँगा और मदद का सिग्नल भेजूँगा...

अब सब कुछ लगभग खत्म हो गया है। जैसे ही मैंने उम्मीद करनी शुरू की थी कि मेट शांत हो कर ऊपर आयेगा, क्योंकि मैं ने सामान में किसी चीज़ को ठोकते सुना, और उसके लिए काम अच्छा है, हैचवे से अचानक, एक चौंका देने वाली चीख की आवाज़ आई, जिससे मेरा खून जम गया, और वह ऐसे भागता हुआ डेक पर आया, जैसे बंदूक से छूती हुई गोली हो, किसी उग्र पागल की तरह, उसकी आँखें घूम रही थीं और उसका चेहरा डर के मारे ऐंठ गया था। “मुझे बचाओ! मुझे बचाओ!” वह चिल्लाया और फिर कोहरे की चादर में इधर-उधर देखा।

उसका आतंक निराशा में बदल गया, और एक स्थिर आवाज में उसने कहा, "कप्तान, बेहतर होता कि तुम भी आ जाते, इससे पहले कि बहुत देर हो जाये। वह वहाँ है! मुझे अब रहस्य पता है। समुद्र मुझे उससे बचा लेगा, और यही बचा है।” इससे पहले कि मैं कुछ भी कह पाता, या उसे रोकने के लिये आगे बढ़ता, वह दीवार पर चढ़ गया और जानबूझकर समुद्र में कूद गया। मुझे लगता है कि अब मुझे भी रहस्य पता चल गया है। यही पागल था जिसने एक-एक करके आदमियों को नीचे फेंक दिया था, और अब वह खुद भी उनके पीछे चला गया है। भगवन मदद करो! बंदरगाह पर पहुँच कर मैं इन सभी भयावहताओं का हिसाब कैसे दूँगा? मैं बंदरगाह पर कब पहुँचूंगा! क्या ऐसा कभी हो पायेगा?

क्रमशः

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