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ड्रैकुला 7

 


मैं सन्नाटे में जहां का तहां खड़ा था— क्योंकि मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ।

न वहाँ कोई घंटी थी, न कड़ा, जिससे दस्तक दी जा सकती। मुझे नहीं लगता था कि मेरी आवाज़ इन डरावनी दीवारों और अंधेरी खिड़कियों को भेद कर अंदर जा पायेगी। इस बार यह इंतज़ार का समय मुझ से काटे नहीं कट रहा था, और शक और डर मेरे अंदर घर करने लगे थे। यह मैं कैसी जगह और कैसे लोगों के बीच आ गया हूँ? यह मैं किस घोर साहसिक कार्य में शामिल हो गया था? क्या ऐसे हादसे वकीलों के बाबुओं की ज़िंदगी में होते रहते थे, जिन्हें किसी विदेशी को लंदन में जायदाद के सौदों को समझाने के लिये भेजा जाता था? वकीलों का बाबू!

मीना को यह पसंद नहीं आयेगा। वकील— क्योंकि लंदन से चलते समय मैं ने उसे बताया था कि मैं परीक्षा में कामयाब हो गया हूँ और अब पूरी तरह से वकील बन चुका हूँ! मैंने यह देखने के लिये कि कहीं मैं सो तो नहीं रहा, अपनी आँखें मलना और खुद को चिकोटी काटना शुरू कर दिया। यह सब मुझे किसी बहुत ही भयानक सपने की तरह लग रहा था, और मुझे लग रहा था कि मैं अचानक जाग जाऊंगा और खुद को घर में पाऊंगा, जहां खिड़की में सूरज निकालने की जद्दो-जहद कर रहा होगा, जैसा कि मेरे साथ अक्सर होता था, जब मैं काम की अधिकता से थक जाता था। लेकिन मेरे मांस ने चिकोटी वाले परीक्षण का जवाब दिया, और मेरी आँखें भी धोखा नहीं खा रही थीं। मैं अब भी जाग रहा था और कार्पेथियन की पहाड़ियों में था। अब मैं बस यही कर सकता था कि धैर्य बनाए रखूँ और सुबह होने का इंतज़ार करूँ।

अभी मैं इस निर्णय पर पहुंचा ही था कि मुझे विशाल दरवाजे के पीछे से किसी के दरवाजे के पास आते भारी कदमों की आहट सुनाई पड़ी, और दरारों के बीच से आती हुई रोशनी दिखाई देने लगी। फिर जंजीरों के खड़कने और बड़े-बड़े कड़ों की गड़गड़ाहट की आवाज़ आने लगी। चाबी घूमने की कर्कश आवाज़ आई, जैसे उसे बरसों से इस्तेमाल न किया गया हो, और विशाल दरवाजा अंदर की ओर खुल गया।

उनके बीच में एक लंबा बूढ़ा आदमी खड़ा था, जिसकी दाढ़ी साफ थी लेकिन लंबी सफ़ेद मूंछें थीं, और वह सिर से पैर तक काले कपड़ों में लिपटा हुआ था, जिस पर कहीं भी रंग का एक छींटा तक नहीं था। उसने अपने हाथों में एक प्राचीन चांदी का लैम्प पकड़ रखा था, जिसमें लौ जल रही थी, लेकिन उस पर कोई चिमनी इत्यादि नहीं थी, और जो झिलमिलाते हुए खुले दरवाजे के पट पर थरथाराती हुई परछाइयाँ बना रही थी। बूढ़े आदमी ने अपने दाहिने हाथ से दरबारी अंदाज़ में मुझे इशारा किया और बेहतरीन अँग्रेजी में, लेकिन अजीब से लहजे में कहा—

“मेरे मकान में स्वागत है! अपनी मुक्त इच्छा से अंदर प्रवेश कीजिये!”

उसने आगे बढ़ कर मुझसे मिलने की कोई कोशिश नहीं की, बस किसी मूर्ति की तरह खड़ा रहा, जैसे उसकी स्वागत करने की चेष्टा को पत्थर में जड़ दिया गया हो। हालांकि जैसे ही मैंने दहलीज़ पर कदम रखा, वह जोश के साथ आगे बढ़ा और हाथ बढ़ा कर इतनी ताकत से मेरा हाथ पकड़ा, कि मैं सहम गया। यह प्रभाव इस बात से और भी बढ़ गया कि वह बर्फ की तरह ठंडा था, और किसी ज़िंदा आदमी की बजाय मुर्दे का हाथ ज़्यादा लगता था। उसने फिर से कहा—

“मेरे मकान में स्वागत है, आज़ादी से प्रवेश कीजिये, सुरक्षित वापसी कीजिये, और जो खुशियाँ आप लाये हैं, उनमें से कुछ यहीं छोड़ कर जाइये।”

हाथ मिलाने में जो शक्ति थी, वह काफी कुछ वैसी ही थी, जैसी मैंने उस ड्राईवर में महसूस की थी, जिसका मैं चेहरा नहीं देख पाया था— क्योंकि कुछ पलों के लिये मुझे संदेह हुआ कि कहीं यह वही शख्स तो नहीं है, जिस से मैं बातें कर रहा हूँ। तो पुष्टि करने के लिये मैंने सवाल किया— “काउंट ड्राक्युला?”

वह दरबारी अंदाज़ में झुका और बोला— “मैं ड्राक्युला हूँ, और मैं अपने घर में आपका स्वागत करता हूँ, मिस्टर हार्कर। अंदर आ जाइये। रात की हवा बड़ी सर्दीली है, और आपको भूख भी लगी होगी, और आप थके हुए भी होंगे।”

बोलते हुए उसने चिराग दीवार में बने एक ताक में रख दिया, और बाहर जा कर मेरा सामान उठा लाया। मैं उसे रोकता, तब तक वह उसे ले कर अंदर आ चुका था। मैं ने उसका विरोध किया, लेकिन उसने आग्रह किया—

“नहीं सर, आप मेरे मेहमान हैं। बहुत देर हो चुकी है और मेरे आदमी उपलब्ध नहीं हैं। तो आपकी सुविधा का खयाल मुझे ही रखना होगा।”

वह आग्रहपूर्वक मेरा सामान ले कर गलियारे में से होता हुआ विशाल चौड़ी सीढ़ियों तक आया और सीढ़ियाँ चढ़ कर एक और विशाल गलियारे में आया, जिसके पथरीले फर्श पर हमारे कदमों की आहटें ज़ोर-ज़ोर से बज रही थीं। इसके अंत में उसने एक भारी दरवाजा खोला और मैं अंदर एक अच्छी तरह प्रकाशित कमरा देख कर खुश हो गया— जिसमें एक मेज़ पर खाना सजा हुआ था, और जिसके बड़े से आतिशदान में हाल ही में लकड़ी के लट्ठों में आग सुलगाई गई थी, जो अब पूरी तरह भड़क चुकी थी।

काउंट रुका, मेरे बैग नीचे रख दिये, दरवाजा बंद किया और कमरा पार कर के एक और दरवाजा खोला— जो एक छोटे से अष्टकोणीय कमरे में खुलता था, जिसमें बस एक ही दिया जल रहा था, और जिसमें किसी तरह की कोई खिड़की या रौशनदान नहीं था। इसे पार कर के उसने एक और दरवाजा खोला और मुझे अंदर आने का इशारा किया। यह एक स्वागतयोग्य जगह थी— क्योंकि यहाँ एक बड़ा सा शयनकक्ष था, जो अच्छी तरह रोशन और गरम था। इसमें भी हाल ही में आग जलाई गई थी, क्योंकि सबसे ऊपरी लट्ठा ताज़ा था और तड़क रहा था। काउंट ने खुद ही मेरा सामान कमरे में ला कर छोड़ा और यह कहते हुए निकल गया—

“सफर के बाद आप खुद को तारो-ताज़ा करना चाहते होंगे, वहाँ प्रसाधन कक्ष है। मुझे भरोसा है कि वहाँ आपको अपनी ज़रूरत की हर चीज़ मिल जायेगी। जब आप तैयार हो जायें, दूसरे कमरे में आ जाइयेगा, जहां आपको अपना खाना तैयार मिलेगा।”

और उसने जाते-जाते दरवाजा बंद कर दिया।

रौशनी और गर्मी तथा काउंट के दरबारी स्वागत ने लगता था कि मेरे सारे संदेहों और डरों को पिघला दिया था। तब अपनी सामान्य अवस्था में पहुँचने के बाद मैंने पाया कि मैं भूख से मरा जा रहा था। तो जल्दी-जल्दी तारो-ताज़ा हो कर मैं दूसरे कमरे में पहुँच गया।

मैंने पाया कि खाना पहले ही लगाया जा चुका है। मेरा मेजबान, जो विशाल आतिशदान की एक ओर पत्थर पर झुका खड़ा था, उसने अपना हाथ लहराते हुए मेज़ की ओर इशारा किया और कहा—

“मैं विनती करता हूँ कि बैठ जाइए और जैसे चाहें खाना खाइये। मुझे भरोसा है कि आप मुझे माफ कर देंगे, क्योंकि मैं आपका साथ नहीं दे पाऊँगा, क्योंकि मैंने पहले ही खाना खा लिया है और अब नहीं खा पाऊँगा।”

मैंने उसे वह सीलबंद खत दिया, जो मिस्टर हॉकिंस ने मुझे दिया था। उसने इसे खोला और गंभीरता से पढ़ा। फिर एक आकर्षक मुस्कान के साथ उसने इसे पढ़ने के लिये मुझे दे दिया। इसके कम से कम एक हिस्से ने मुझे खुशी के रोमांच से भर दिया।

क्रमशः


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