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ड्रैकुला 6


किश्त 6

जल्दी ही हम पेड़ों से घिरे हुए थे, जो कई जगह पर सड़क पर झुकने लगते थे।

फिर हम एक सुरंग से हो कर गुजरे।

और फिर से विशाल चट्टानें त्योरियाँ चढ़ाये दोनों ओर से हमारी पहरेदारी कर रही थीं। हालांकि हम बचे हुए थे, हम फुंफकारती हुई हवा का शोर सुन सकते थे, जो चट्टानों के बीच से कराहती और सीटियाँ बजाती गुज़रती थी— और जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, पेड़ों की शाखाएँ आपस में टकरा रही थीं।

ठंड बढ़ती ही जा रही थी और पाउडर के जैसी बर्फ गिरना शुरू हो गई थी, तो जल्द ही हम और आसपास का सारा इलाका सफ़ेद परत से ढक जाता। तीखी हवा में अभी भी कुत्तों के रोने की आवाज़ें घुली हुई थीं। हालांकि जैसे जैसे हम अपने रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे— ये हल्की पड़ती जा रही थीं।

भेड़ियों की आवाज़ें नजदीक आती जा रही थीं, जैसे वे हर ओर से हमारे करीब आते जा रहे हों। मैं बेहद डर गया, और घोड़ों ने भी मेरे डर को साझा किया। हालांकि ड्राइवर ज़रा भी परेशान नहीं था। वह दायें-बाएँ अपना सिर घुमाता रहा, लेकिन मुझे अंधेरे में कुछ भी नहीं दिखा।

अचानक, हमारे बाईं तरफ दूर एक हल्की नीली लपट झिलमिलाई।

उसी समय ड्राइवर ने भी उसे देखा— उसके फौरन घोड़ों को रोका, ज़मीन पर कूदा और अंधेरे में ग़ायब हो गया।

मुझे समझ नहीं आया कि क्या करूँ, भेड़ियों की आवाज़ करीब आती जा रही थी— लेकिन अभी मैं सोच ही रहा था कि ड्राइवर वापस प्रकट हो गया, और बिना एक भी शब्द बोले अपनी सीट पर बैठ गया और हमारा सफर फिर से शुरू हो गया।

मुझे लगता है कि मैं सो गया था और यह घटना मैंने सपने में देखी होगी— क्योंकि यह बार-बार हो रही थी, और अब जब मैं याद करता हूँ तो यह एक भयानक बुरे सपने की तरह लगता है। एक बार जब लपट सड़क के काफी नजदीक प्रकट हुई, तब मुझे इतने अंधेरे में भी ड्राइवर की गतिविधियां दिखाई दे गईं। वह जल्दी से वहाँ गया, जहां नीली लपट प्रकट हुई थी। यह काफी हल्की थी, क्योंकि इससे आसपास की जगहों पर बिलकुल भी उजाला नहीं हो रहा था।

ड्राइवर ने कुछ पत्थर इकट्ठा किये और उससे कोई उपकरण बना दिया।

एक बार प्रकाश का एक अजीब-सा प्रभाव उत्पन्न हुआ। जब वह मेरे और लपट के बीच था, तो लपट छुप नहीं पाई— बल्कि मुझे उसकी भुतहा झिलमिलाहट बिलकुल पहले के जैसे उसके आर-पार दिखती रही।

इससे मैं चौंक उठा, लेकिन चूंकि प्रभाव क्षणिक था, तो मुझे लगा कि अंधेरे में ज़्यादा ज़ोर पड़ने के कारण मेरी आँखें मुझे धोखा देने लगी हैं। फिर कुछ समय के लिये कोई नीली लपट नहीं उठी और हम अंधेरे को चीरते हुए आगे बढ़ते रहे। भेड़ियों की आवाज़ें अब भी हमारे चारों ओर थीं— जैसे वे हमको घेरे हुए हमारे साथ-साथ चल रहे हों।

अंत में एक समय ऐसा भी आया जब ड्राइवर इतनी दूर चला गया, जितनी दूर वह अब तक नहीं गया था—
और उसकी अनुपस्थिति में, घोड़े बुरी तरह बिदकने लगे और डर के मारे चिल्लाने लगे।

मुझे इसकी कोई वजह समझ में नहीं आई, क्योंकि भेड़ियों की आवाज़ें अचानक बिलकुल रुक गईं। फिर अचानक काले बादल छंट गये और देवदार के पेड़ों से सजी ऊंची-नीची पहाड़ियों के पीछे से चाँद निकल आया, और इसकी रोशनी में मैंने देखा कि हमारे चारों ओर सफ़ेद दांतों, लपलपाती जीभों, लंबे-लंबे मजबूत पैरों और झबरे बालों वाले भेड़िये हमें घेरे हुए हैं। घोर सन्नाटे में वे सौ गुना डरावने लग रहे थे, जो उन्हें तब भी जकड़े था, जब वे बोल रहे थे।

जहां तक मेरी बात है, डर के मारे मुझे तो जैसे लकवा मार गया था। यह तो वही समझ सकता है, जिसने इस तरह की दहशत का आमना-सामना किया हो।

तभी अचानक भेड़िये फिर से हुआने लगे, जैसे चाँदनी ने उन पर कोई विशेष प्रभाव डाला था। घोड़े उछलने और पीछे हटने लगे, और असहाय से ऐसी नज़र से चारों ओर देखने लगे, जो देखी नहीं जाती थी— लेकिन आतंक का घेरा हर तरफ से तंग ही होता जा रहा था, और वे इसके अंदर रहने के लिये मजबूर थे।

मैंने कोचवान को आवाज़ दी,क्योंकि मुझे लग रहा था कि हम इस घेरे को तोड़ने की कोशिश कर के ही बच सकते हैं— और उसको बुलाने के लिये मैं चिल्लाने और बग्घी के किनारों को पीटने लगा। उम्मीद यह भी थी कि शोर सुन कर भेड़िये डर जायेंगे और उसे गाड़ी तक पहुँचने का मौका मिल जायेगा।

जाने वह वहाँ तक कैसे पहुंचा— लेकिन मैंने उसकी आदेश देती हुई तेज़ आवाज़ सुनी, और आवाज़ की ओर देखने पर मैंने एउस सड़क पर खड़े पाया। वह अपने लंबे-लंबे हाथों को ऐसे लहरा रहा था, जैसे किसी अदृश्य बाधा को हटा रहा हो। भेड़िये धीरे-धीरे पीछे हटते गये। तभी एक बड़े से बादल ने चाँद के चेहरे को ढंक लिया— तो हम फिर अंधेरे में डूब गये।

जब मैं दोबारा देखने के काबिल हुआ तो मैंने देखा कि ड्राइवर बग्घी पर चढ़ रहा है, और भेड़िये गायब हो गये हैं। यह सब कुछ इतना अजीब और भयानक था कि एक अजीब-सा खौफ मेरे अंदर घर कर गया, और मैं बोलने या हिलने डुलने तक से डरने लगा।

जब हम अपने रास्ते पर बढ़ रहे थे तो पूरी तरह अंधेरा हो गया था— क्योंकि बादलों ने चाँद को फिर से ढंक लिया था, और समय जैसे बीत ही नहीं रहा था। हम चढ़ाई चढ़ते जा रहे थे, जहां कहीं-कहीं हल्की ढलान भी आ जाती थी, लेकिन मुख्य तौर पर चढ़ाई ही थी।

अचानक मैं सावधान हो गया— क्योंकि ड्राइवर घोड़ों को एक महल के खंडहरों के अहाते में हांक रहा था, जिसकी लंबी काली खिड़कियों से रोशनी की एक किरण भी बाहर नहीं आ रही थी… और जिसके टूटे-फूटे कंगूरे चाँदनी में टेढ़ी-मेढ़ी लकीर बना रहे थे।
शायद मैं सो गया था, क्योंकि अगर मैं पूरी तरह से जाग रहा होता, तो मैं ऐसी उल्लेखनीय जगह के रास्ते पर ज़रूर ध्यान देता। अंधेरे में भी परिसर काफी विस्तृत लग रहा था, और चूंकि इससे कई अंधेरे रास्ते निकल कर बड़े-बड़े मेहराबों के नीचे से जा रहे थे— तो शायद यह उससे भी ज़्यादा बड़ा दिख रहा था, जितना यह सच में था।

अभी तक मुझे इसे दिन की रौशनी में देखने का सौभाग्य नहीं मिला है।

जब बग्घी रुकी, ड्राइवर कूद कर नीचे उतरा और उतरने में मेरी मदद करने के लिये अपना हाथ बढ़ाया। एक बार फिर मैं ने उसकी असीम शक्ति को महसूस किया।

उसका हाथ दरअसल लोहे के शिकंजे की तरह लग रहा था, जिससे अगर वह चाहता तो मेरा हाथ कुचल सकता था। फिर उसने मेरा सामान उतारा और उसे मेरे पास रख दिया। मैं एक विशाल दरवाजे के सामने खड़ा था, जो काफी पुराना था और जिस पर लोहे की बड़ी-बड़ी कीलें जड़ी थीं, जो नक़्क़ाशीदार पत्थरों से बने एक बरामदे में स्थित था। मैं इतनी धीमी रोशनी में भी देख सकता था, कि पत्थर बड़ी कारीगरी से तराशे गये थे, लेकिन नक्काशी समय और मौसम की मार झेल-झेल कर बहुत घिस चुकी थी।

मैं अभी खड़ा ही था कि ड्राइवर फिर से कूद कर अपनी सीट पर बैठा और लगाम हिलाई। घोड़े आगे बढ़ गये और बग्घी समेत एक अंधेरे रास्ते में ग़ायब हो गये।

क्रमशः

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