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फितूर

 



"आपके कान पर जूं नही रेंगती... नेहा पूरे 25 साल की हो गई है... उसकी शादी-ब्याह करवाना भी है या नही?"

"अरे! मैं तो कल उसके हाथ पीले करवा दूँ... लेकिन कोई ढंग का रिश्ता टकराये तो सही"

ओम बाबू ने अखबार पढ़ते-पढ़ते निरूपा अर्थात अपनी पत्नी से जब ये जुमला कहा... तभी ओम बाबू के हाथ से अखबार लेकर दूर फेंक कर...

"पापा... क्या मैं अब आप पर बोझ बन गईं हूँ? आप ही तो कहते थे कि मैं तुझे कभी खुद से दूर नही करूँगा तो फिर ये ढंग-वंग का रिश्ता क्या है?"

ओम बाबू ने सोफे पर बैठे-बैठे सामने खड़ी नेहा का हाथ पकड़ा और उसे अपने पास खींचा और सोफे में ठीक अपने बगल में बैठा कर उसका सर अपने कंधे पर रखकर उससे कहा~

"लेकिन मेरी प्यारी गुड़िया...तेरे लिये कोई प्यारा सा गुड्डा तो खोजना ही पड़ेगा न... कल जब हम नही रहेंगे तो..."

"बस पापा... प्लीज..."

एकदम से सैलाब उतर आया नेहा की आंखों में और अपने पापा के गले लगकर बच्चों की तरह रोने लगी .....लेकिन कोई देख नही सकता था उससे ज्यादा आँसू ओम बाबू की आँखों मे थे ...बल्कि उनके तो होंठ भी एक अनजानी पीढ़ा से कांपने लगे.....

बाप.. बेटी का ये विलाप और स्नेह देख निरूपा भी रो पड़ी और अपनी आँख के आँसू पोंछकर माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए बोली ~
" चलो ! बाप-बेटी नाश्ता कर लो ...वरना घर मे बाढ़ आ जायेगी और बेचारी मम्मी के पास छाता तो है लेकिन नाव नही है"
सब खिलखिलाकर हँसे और नेहा ने ब्रेक फास्ट करके कॉलेज की राह ली ... गलियों से होते हुए वो एक सुनसान सड़क पर पहुंची ...तभी ~
" नेहा ...सुनो नेहा ....!"
" मैंने कितने बार तुमसे कहा है रघु की मेरा पीछा छोड़ दो "
" लेकिन नेहा ...मैंने अब सारे बुरे काम छोड़ दिए हैं ..सिर्फ तुम्हारे लिए ..प्लीज यकीन करो मेरा ..बल्कि अब तो मैं एक गैराज चलाता हूँ लक्ष्मीनगर में "
" तुम जाते हो कि नही ...मैं तुमसे बिल्कुल भी कोई रिश्ता रखना नही चाहती प्लीज लीव मी अलोन "
तभी अर्जुन की बाइक आती हुई दिखी और उसने ठीक मेरे सामने बाइक रोकी और बोला ~
" क्या हुआ नेहा ...बोलो ..क्या बोल रहा था ये ...?"
नेहा कुछ नही बोली ..बल्कि नफरत से रघु की देखकर फिर उससे मुँह फेर लिया ...अर्जुन मामला समझ गया ....और बाइक स्टैंड पर लगा कर ...
" क्यों बे झोपड़ी के ...साले ज्यादा चर्बी चढ़ गई है.. बेटा जानता है मुझे ...सेकेट्री हूँ एम .जे कॉलेज का समझा.. चल अब निकल ले यहाँ से वरना पैरों पर घर वापस नही जायेगा "
रघु ने मेरी तरफ देखा और फिर चुपचाप अपने रस्ते लौटने लगा ...
" चलो नेहा ..वी आर गेटिंग लेट ...वैसे कौन था ये ..?"
" रघु ...रघु राइफल ! "
" कयायाआआ ... ओय तेरी ...मेरी लंका लगा दी तुमने ...वो मुझे जिंदा नही छोड़ेगा....पहले क्यों नही बताया यार वो रघु भाई है..अब क्या होगा ..?"
" टेक इट इजी अर्जुन ...उसने हर बुरा काम छोड़ दिया है अब"

मैं बाईक में अर्जुन के पीछे बैठ गई ..और अर्जुन के काँधे पर हाथ रख लिया....लेकिन अर्जुन के शरीर में अब भी एक कँपकँपी मैं महसूस कर सकती थी ... वो अच्छी तरह जानता था कि रघु सिर्फ एक नाम नही बल्कि पूरा काल का प्रतिरूप है ......लेकिन अर्जुन मुझे पसन्द था और वो भी मुझे पसन्द करता था
....हम दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह समझने लगे थे और अब इस रिश्ते को एक मंजिल देना चाहते थे ......
रात को कुछ डरते ...कुछ शरमाके मैंने पापा को अर्जुन के बारे में बताया ..मम्मी खुशी से झूम उठी.. और मैं पापा से नजरें न मिला सकी ...बल्कि सीधे उनकी बाँहों में समा गई ...पापा के दिल की धड़कने तेज थी ....जो शायद मुझसे कहा रहीं थी कि बेटा मुझे ये रिश्ता मंजूर है .....
अगले दिन जब मैं कॉलेज जा रही थी तो पता चला आज सुबह जब अर्जुन जॉगिंग में गया था तो किसी ने उसके सर पर लोहे की रॉड मार दी ....वो जे. जे.हॉस्पिटल में अपनी अंतिम साँसे गिन रहा है...मैं जे. जे हॉस्पिटल से पहले पुलिस स्टेशन गई ...और रघु के खिलाफ कम्प्लेन की ...पुलिस सीधे मुझे जीप में बैठाकर रघु के गैरेज ले गई ...
" रघु भाई ..मतलब..., रघु कल रात आप कहाँ थे ...?"
" क्या बात है इंस्पेक्टर साहब ..और नेहा तुम ...सब ठीक तो है ..?"
नेहा ने एक करारा तमाचा रघु के मुँह पर मारा ....तभी
" तेरी माँ का ...भाई के ऊपर हाथ उठाती है साली यहीं ठोक दूँगा "
अब तमाचा रघु ने मारा और वो भी अपने हेल्पर को ...और फिर पुलिस इंस्पेक्टर से बोला ~
" क्या ..क्या बात क्या है इंस्पेक्टर साहब ..?"
" इनका कहना है कि तुमने इनके बॉय फ्रेंड अर्जुन सिंह पर जानलेवा हमला किया है क्यूँकि कल वो आपसे उलझा था.."
" इंस्पेक्टर साहब ...कल मैं दिल्ली गया था .गैरेज का सामान लेने..ये देखिए बस के टिकट चाहे तो कंडक्टर मिश्रा से पूछ लीजिए ....और अभी 15 मिनट पहले यहाँ पहुँच रहा हूँ "
पुलिस ने तफ्तीश की और रघु के डर से बस कन्डेक्टर ने भी उसकी हाँ में हाँ मिला दी ...रघु अपने वक्त का सबसे शातिर गुंडा था इसलिए उसने बस के टिकट से लेकर सब जगह पहले ही अपने पत्ते फिट किये हुए थे ताकि वो जुर्म करने के बाद साफ-साफ बच निकले ..
मैं रोती तड़पती रही ...लेकिन किसी ने मेरी एक न सुनी....एक पापा ही थे जिनको मुझपर विश्वास था ....लेकिन फिर मुझे सुकून मिला क्यूँकि अर्जुन रिकवर हो रहा था ...मैं उसकी सेवा में लगी रहती ...एक दिन जब अर्जुन ने आँख खोली तो झूम कर मेरी आँखों में आँसू आ गए ...,लेकिन तभी अर्जुन ने मुझसे मुँह फेर लिया...और उसकी मम्मी बोली ~
" नेहा प्लीज बेटा..ट्राई टू अंडरस्टैंड.., लेकिन अब अर्जुन से मिलना छोड़ दो...अर्जुन को हमेशा के लिए छोड़ दो ...वरना फिर इसकी जान पर आ बनेगी "
मैं सकते में थी ...,लेकिन अर्जुन भी यही चाहता था ...उसने एक बार भी मेरी तरफ नही देखा...जैसे ही मैं रोते-रोते अस्पताल से बाहर निकली...सामने रघु खड़ा दिखाई दिया ....
" सुनो ..नेहा तुम गलत समझ रही हो मैंने अर्जुन पर हमला नही किया ...वो तो.."
" दफा हो जाओ यू गुंडे .... "
और रोते हुए मैं अपने घर को दौड़ पड़ी ...कमरा बन्द कर मुँह तकिये में रख कर सिर्फ रोती रही ...रात को पापा ने अपनी कसम देकर मुझसे दरवाजा खुलवाया ...और फिर वो रात भर मुझे अपने सीने से लगाकर हिम्मत देते रहे.... इस दुनिया में मर्द कहने को सिर्फ पापा ही थे जो मुझे समझते थे ...मेरी खुशियों के लिए वो कुछ भी कर सकते थे ।।।

इस ब्रेक अप के बाद मुझे सहारा मिला रणवीर का ...जो अर्जुन का दोस्त था ....औए धीरे-धीरे उसकी दोस्ती ने मुझे एक गहरे सदमे से बाहर निकाला..... एक दिन शाम को जब मैं और रणवीर
नीलम पार्क के बाहर ठेली पर पानी-पूरी खा रहे थे तब ~
" भई हमें भी कोई इनवाइट करेगा कि नही ..?"
पीछे पलट कर देखा पापा पीछे खड़े मुस्कुराह रहे थे ...और उनके पीछे खड़ा था वो चेहरा जिसे देखकर मेरी खुशी डर में बदल गई .....रघु ..जो हमें देख रहा था ...तभी वो आगे बढ़कर भीड़ में खो गया ....
" क्या हुआ बेटा... बोलो ..?"
"ओह्ह नो ..नो ..पापा ...लीव इट..कुछ नही ...इससे मिलो रणवीर ..माय फ्रेंड ..."
पापा ने रणवीर से शेक हैंड किया और एक झटके में रणवीर बोला ~
" अंकल मैं यहीं आपसे नेहा का हाथ माँगता हूँ... प्लीज अंकल मना मत करना ...आई लव नेहा "
मैं इसके लिए बिल्कुल तैयार नही थी ...रणवीर अभी सिर्फ मेरा एक अच्छा दोस्त था लेकिन तभी पापा हँसते हुए बोले ~
" ओके बाबा ...जब लड़का और लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं तो हम बीच में बोलने वाले कौन होते हैं...बेटा रणवीर मैं आपके माता -पिता से मिलना चाहूँगा "
" ओह्ह थैंक्स अंकल ...नेक्स्ट वीकेंड पर मैं उनको लेकर आपके घर आता हूँ"
लेकिन सिर्फ तीन दिन लगे ..जब पूरा मंजर ही बदल गया ....अब हॉस्पिटल के जिस बैड पर जहाँ अर्जुन था वहाँ रणवीर था ...रघु ने उसको भी नही छोड़ा और मैं जानती थी वो किसी को नही छोड़ेगा ....किसी को भी नही जो मेरे करीब आने की कोशिश करेगा ....क्यूँकि वो मुझे स्कूल के वक्त से चाहता है ...और स्कूल में मुझे छेड़ने वाले एक लड़के के सर पे उसने ऐसे ही रॉड मारी थी ...उसके बाद रघु स्कूल से निकाला गया और उसने जुर्म की दुनिया में कदम रखा.....
मेरी रातों की नींद उड़ गई ...मैं डिप्रेशन में जाने लगी ...पापा ने मुझे साइक्ट्रिस्ट को भी दिखाया ...,पापा का प्यार फिर मुझे अँधेरी दुनिया मे दफ्न होने से वापस ले आया ....एक दिन ~
" सुनो जी ! मैं श्रीवास्तव जी के बेटे से नेहा की शादी पक्की करवा रही हूँ...मैं इसको इस हाल में हरगिज नही देख सकती "
शाम को श्रीवास्तव अंकल परिवार संग मुझे देखने आ रहे थे ..लेकिन दिन मैं मम्मी सीढ़ियों से गिर पड़ी और उनके सर पर चोट लग गई....हर कदम पर दुःख हमारा भाग्य बन गया ....पापा फूट-फूट कर रोने लगे ...और मैं समझ गई कि इसकी वजह सिर्फ मैं हूँ .....
पापा मम्मी के साथ अस्पताल में थे तो मैं कुछ जरूरी सामान लेने घर आई .......बेड शीट को निकालने के लिए जैसे ही मैंने अलमारी खोलनी चाही ...तो देखा अलमारी में लॉक लगा है ..सभी जरूरी चाबी मम्मी के पास रहती है .वो मुझे मिल नही रही थी..मैं सीधे पापा के कमरे में गई ..क्यूँकि घर के सभी कमरों के लॉक्स की सेंकड की ..उन्ही के कमरे में होती है ...मैंने उनके कमरे की अलमारी खोली ...और फिर जो मैंने देखा तो मेरी घिग्घी बंध गई ....सामने एक लोहे की रॉड थी जिसपर खून लगा था ....
मैं सकपका गई मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई....पापा ऐसा क्यों करेंगे ..?.हो सकता है किसी ने ये रॉड पापा की अलमारी में रख दी हो ....लेकिन कौन कर सकता है ये .....रघु हाँ रघु सिर्फ रघु ...
मैं सीधे वो रॉड लेकर रघु के गैरिज को निकली ...रघु किसी गाड़ी की मरम्मत कर रहा था ....मैंने वो रॉड उसके आगे फेंक दी और ....
" लो अपनी अमानत जो तुम मेरे पापा की अलमारी में चोरों की तरह रख आये हो !"
रघु ने औजार जमीन पर रखे ...और जेब से मोबाइल निकाला और बोला ~
" लेकिन तुम अपने पापा का ये अपराध किसको सौंपोगी ..?"
रघु ने एक वीडियो क्लिप प्ले की ...उसमें साफ-साफ मेरे पापा रणवीर के सर पर रॉड मारते नजर आ रहे थे ..मैं होश खोने लगी ...मैंने रघु के हाथ से वो मोबाईल छीना ..और बार-बार उसे प्ले करके देखा ....वो पापा ही थे ....मैं घुटनों पर बैठ गई और फूट-फूट कर रोने लगी फिर बोली ~
" तो तुमने ये क्लिप पुलिस को क्यों नही दी ...?क्यों अब तक मेरी नफरत और ये आरोप सहन कर रहे थे ...?"
" प्यार करता हूँ तुमसे ...तब से जब प्यार का मतलब तक नही पता था ...तुम्हारी इज्जत मेरी इज्जत है नेहा ...मेरे एक पंटर ने बताया था कि उसने जॉगिंग के वक्त अर्जुन के सर पर रॉड मारते हुए तुम्हारे पापा को देखा था ...इसलिये जिस दिन मैंने तुम्हारे पापा को तुम्हारे और रणवीर के साथ पानी-पूरी खाते देखा मैं समझ गया तुम्हारे पापा का अगला शिकार रणवीर होगा...क्यूँकि तुम्हारे पापा तुम्हे किसी के साथ बाँट नही सकते नेहा "
रघु ठीक कह रहा था ...पापा ने सब कुबूल कर लिया ...मम्मी को सीढ़ियों से धक्का भी उन्होंने दिया था ....लेकिन रघु के कहने पर हमने पापा की पुलिस कम्प्लैन नही की ...बल्कि पापा को सीधे बैंगलोर ले गए ...और साइकेट्रिस्ट ने बताया ~
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" मेडिकल साइंस इसे कुछ भी कहे ..लेकिन मनोविज्ञान के पास इसकी एक परिभाषा है ...आसान शब्दों में ..इस बीमारी का नाम है स्किजोफ्रेनिया या सीजोफ्रेनिया और इसका अंतिम चरण है सीवियर वायलेंस ...जो हिंसा की अनुमति देता है ...इसमें इंसान किसी भी चीज के लिए पजेसिव हो सकता है ..अपनी कार..मोबाईल ..जूते.. और इनको उसकी बिना आज्ञा के टच करने पर वो गुस्से से पागल हो सकता है ...ये बीमारी अमूमन शक या वहम पर निर्भर है ...जब इंसान को लगे कि उसकी सबसे कीमती चीज खो जाएगी या उसको कोई छीन लेगा तो वो इंसान उस व्यक्ति की जान का दुश्मन भी बन जाता है ...तुम्हारे फादर तुमसे बहुत प्यार करते हैं वो तुम्हे किसी भी कीमत पर खोना नही चाहते... कोई और तुम्हे प्रेम करे ये वो देख ही नही सकते ......लेकिन ये सिर्फ एक बीमारी है .... ये ठीक हो सकती है ...अगर किसी तरह पेशेंट को ये विश्वास दिला दिया जाए कि जो उसका है वो किसीऔर का हो ही नही सकता ...चाहे फिर वो उसके पास हो या उससे दूर ......."
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पापा ठीक हो रहे हैं ...और वो खुद के किये पर बेहद शर्मिंदा भी हैं ....लेकिन मुझे फक्र है कि मुझे जिंदगी में एक नही बल्कि दो वो इंसान मिले हैं जो मेरे लिए अपनी जान तक दे सकते हैं ....जो इस पूरी दुनिया में मुझसे सिर्फ मुझसे प्यार करते हैं ...एक मेरे पापा और दूसरा मेरा प्यार रघु ।।।।।।

Written by Junaid Pathan

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