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आई हेट यू

 


"छी ...तुम ...तुम यहाँ भी चले आये... आई हेट यू... यू विलेजर... पहाड़ी ..चले जाओ यहां से"

मैं उठ बैठा गहरी नींद से... जब भी ये जुमला अक्सर सपनों में सुनाई और फिर दिखाई देता है... मानों नाड़ियां जब्त हो जाती हैं... खून रगों में उल्टा दौड़ने लगता है... ऐसा लगता है कि कोई अनगिनत बार मेरे मुँह पर थूकता बस थूकता जा रहा हैरात के दो बजे हुए थे... लेकिन अलार्म चार बजे का रखा था मैंने... हल्की सर्द रात थी... पंखी जिस्म में डालकर... मैं बालकनी में आ गया... एक ग़ज़ल मोबाईल की प्ले लिस्ट लाइबेरी में जाकर प्ले की और देखता रहा... इस शहर का अंध यौवन... आती-जाती गाड़ियों का रेला... ट्रकों का बेतरतीब शोर... ट्रैन की भागती नंगी आवाजें... और याद आया अपना बचपन... उसका पलछिन...

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" वाह ! अद्भुत ...अत्यंत सुरीला कंठ ... ये लो कार्तिक... ये पुरस्कार तुम्हारे लिए ...आओ बेटा ...."
परन्तु मेरा पुरस्कार था ...वो जो दर्शक दीर्घा में बैठी थी ..वो जो मेरे इस गीत पर तालियाँ बजा रही थी ...वो जो अपलक मुझे निहार रही थी .....वो जो मेरे जीवन में सृष्टि के सर्वस्व रंग घोल रही थी ..."अवनि देशराज " ...मेरे गुरुजी श्री अनन्त देशराज की सुपुत्री .....
सु ...हाँ ..अत्यंत सु है वो ...सुकुमारी ..सुकोमलांगी ..सुचितवन धारी... सुछाया ..सुचरित्र ..सु...।।।।।
गाँव की प्राईमरी पाठशाला में ये नन्ही प्रेम कहानी जो बुदबुदा के आँखेँ खोल रही थी .... यही एक वजह थी मेरे विद्यालय आने की ...गीतों के अतिरिक्त मेरे जीवन में और कोई रंग नही ....हर प्रभात मेरी गीतों से जगती है ...हर धूप मेरे गीतों से जलती है ...गीत मेरे साँझ का बदन सेंकते हैं ......रात्रि मेरी गीतों के तकिये में सोती है ......
गीत सुनकर ही मेरी बकरियाँ ममियाती है ...गैय्या मेरी दूध की नदियाँ बहाती है ... गीत सुन-सुन माँ मेरी चूल्हे में रोटियां पकाती हैं ...बापू की दिन की थकान मेरे गीतों में खो सी जाती है .....
गीत मेरे अवनि को भी पसन्द हैं ...तभी मुझे गीतों में गुम रहने की आदत सी हो चली है ....
बस्ता खोलूँ तो ऊँट.. लंगूर.. भालू सब में अवनि दिखती है ...गणित के दो दुनी में भी अवनि मेरे होंठों पर चलती है ...हर जगह मेरे लिए या तो मेरे गीत या अवनि !
5 किमी. का पहाड़ी रास्ता औ उसके बीच उफनती नदी ...ये सब कम हैं ...क्यूँकि अवनि का आकर्षण अधिक है ...मैं इन सब से जूझकर रोज बंशी गाँव के विद्यालय पहुँचता हूँ ताकि अवनि को एक नया गीत सुना सकूँ ...उसे देख सकूँ...उसे महसूस कर सकूँ.....
समय गुजरता रहा और हमारा प्रेम ...प्राईमरी से होता हुआ जूनियर और फिर इंटर कॉलेज पहुँचा.... न चाहते हुए भी मुझे पढ़ना पड़ा क्यूँकि यदि एक कक्षा भी पिछड़ गया तो अवनि का साथ छूट जाता .....जो मेरे लिए मेरी साँस छूटने जैसा होता ....
अवनि एक अध्यापक की पुत्री थी और उसपर अत्यंत मेधावी भी ...वो कुछ करना चाहती थी ...लेकिन मैं उसके सिवा यदि कुछ सोच लूँ तो मेरे भोले बाबा मुझे भस्म कर दें .....
ये अव्वल आने का तनाव था कि अवनि ने मुझे देखना कम कर दिया था ... मेरे गीत सुनने का उसके पास समय नही था ..वो अब दिखती भी बहुत कम थी मुझे ....
17 का हो चुका था ....फ़ौज में जाना चाहता था ...क्यूँकी एक बार अवनि को कहते सुना था कि उसका बाँका बड़ा रौब वाला फौजी होगा ....शाम के ढलते सूरज को देख जब अवनि को याद करता तब ...लगता कि कहीं कुछ डूब तो नही रहा है .....


" तू पागल है रे कार्तिक ...बोरा गया है उस लड़की के लिए ...अरे वो मास्टर की लड़की है ...और तू ठहरा गरीब पल्लेदार की औलाद ...सब भूल कर अपने काम पर ध्यान दे ...फ़ौज की तैयारी कर बेटा ..मुक्त करा हमे गरीबी से "
" अम्मा वो तो मुक्त कराऊँगा ही ...लेकिन बहुत प्रेम करे है अम्मा वो मुझसे ...मेर बिना जी नही पाएगी वो ..."
अम्मा चुप हो गई ...और होती भी क्यों नही ...आखिर मैंने उसकी चिंता के बिखरे कोयले को सच के चिमटे से शांत जो कर दिया ।
बारहवीं का रिजलर आया और पूरे जनपद में टॉप किया अवनि ने ...जितनी अधिक खुशी उसे थी ...उससे ज्यादा मस्ती मेरी नाड़ियों में बह रही थी ....सूचना अम्मा को दी तो वो बोली ~
" ये छोड़ ..पहले ये बता तेरा क्या हुआ...बोल न बेटा ..?"
" खाली -मुच्ची वाला पास हो गया अम्मा लेकिन अवनि ने टॉप किया है जानती है .....ला जल्दी से बेसन के लड्डू डाल कमंडल में ...मैं उसके घर जा रहा हूँ "
पुनः 5 किमी. का लम्बा सफर...50 फूलती साँसों से पार किया ..और अवनि के घर पहुँचा "
" अरे ! आओ बेटा कार्तिक ..बधाइयाँ बेटा तुम भी उत्तीर्ण हुए हो ....बैठो बेटा ...मैं लड्डू लाया "
" जी..गुरुजी ...ये अम्मा ने भी बेसन के लड्डू भेजे हैं ...अवनि के लिये कहाँ हैं वो ...टॉपर ..?"
" ओह्ह धन्यवाद ...लेकिन बेटा वो तो अभी शहर जा रही है ...अभी पक्की सड़क पहुंची होगी बस पकड़ने ..अपने चाचा जी के पास ...अब वो वहीं आगे की पढ़ाई करेगी "
मेरे हाथ से लड्डू का कमंडल छूट गया ...लड्डू की तरह मेरे अरमान भी बिखर गए ...मैं सुध-बुध खोकर पक्की सड़क को दौड़ गया .....लेकिन पेड़ की निकली जड़ में पैर फँसा और मुँह के बल गिरा ...सर में गढ्ढा बन गया ...उससे खून छूटने लगा ..पैर की एक पसली जाती रही ....लेकिन किसी तरह पक्की सड़क पहुँचा....और मुझे अवनि दिखाई दी जो बस की प्रतीक्षा कर रही थी ....
" ये...ये ..ये क्याया हाल बना रखा है तुमने कार्तिक..?"
" कहाँ जा रही हो अवनि ...मुझे छोड़ कर ..?"
" मुझे छोड़ कर मतलब ...? "
" मतलब मेरे प्रेम से मुँह मोड़कर .?"
" तुम पागल हो क्या...बचपनें और नादानी को तुम प्रेम कैसे समझ सकते हो...और मैं तुमसे क्यों प्रेम करने लगी ...पागल मत बनो ..जाओ लौट जाओ ...मेरी बस आ रही है "
वक्त ने कर्रा तमाचा मारा मेरे मुँह पर ...इस कदर कर्रा की बिखर के रह गया ....
" क्या मतलब बचपना...पहले नही बता सकती थी ...तब जब मुझे घूरती थी ...मेरे गीतों में मचलती थी मुस्कुराहती थी "
" पागल हो ...रहे न गंवार के गंवार ..इसे तुम प्रेम समझने लगे ...चले जाओ इससे पहले में शोर मचाऊँ "
मैंने अवनि का हाथ पकड़ कर अपने सर पर रखा और कहा ~
" कसम खाकर कहो कि तुम मुझसे प्रेम नही करती "
अवनि ने फौरन मेरे सर से हाथ खींचकर मेरे गाल पर एक करारा तमाचा रसीद किया ...और बस पर चढ़ गई ...और चिल्ला कर बोली ~
" आई हेट यू ... नफरत करती हूँ मैं तुमसे समझे तुम "
जिसका प्रेम ही काफी था मेरी जान लेने को उसकी नफरत तो मुझे राख बना देगी ... बहुत देर तलक बैठा रहा सड़क पर यहाँ तलक की साँझ ढल गई ...अम्मा मुझे ढूंढते हुए चली आई ~ बहुत रोई वो मेरी दशा को देखकर ...मुझे बड़ी मुश्किल से घर ले गई ...घर पर मेरे घावों पर हल्दी -चूना लगाते हुए बोली ~
" पहले ही कहा था कार्तिक ...मत पड़ उस लड़की के चक्कर में..माटी होकर फुहार के सपने मत देख... क्या मिला बोल"
और फिर अम्मा मुझसे लिपट कर फूट -फूट कर रोने लगी ...लेकिन ये प्रेम था ...सच्चा पका और गाढ़ा प्रेम ...जिसने मुझे घर से भागकर शहर की ओर धकेल दिया ~


अम्मा -बापू के सपने कुचल कर ..मैं शहर की अजनबी भीड़ के बीच खड़ा था ...वो भीड़ जो लगता था मुझे कुचलने को मेरी ओर आ रही है ...भूख-प्यास से लड़ता दो दिनों तलक मैं शहर का जर्रा-जर्रा खंगालता रहा ...कि कहीं तो अवनि की सुगंध उड़कर मेरी नाक को सूचित करे ...
लेकिन हार गया ...मेरी सूरत एक भिखारी सी बन गई लेकिन इस शहर के बड़े लोगों ने मेरी दशा पर रत्ती भर भी तरस नही खाया ...सड़क के किनारे धातु पिघला कर बर्तन बनाने वाली एक औरत ने जब भात का निवाला अपने बच्चे के मुँह डाला तब उसने मेरी तरफ देखकर कहा ~
"आ लल्ला तू भी खा ले ...पेट न भरेगा लेकिन कुछ तो पेट में गिरेगा "
आँखों से आँसू निकल पड़े ...अम्मा की बहुत तेज याद आई और सोचा वो कैसे मेरे बिना जी रही होगी ...लेकिन मुझे एक बार अवनि से मिलना था ...पेट मे कुछ गिरा तो बुद्धि खड़की ...याद आया अवनि इस शहर में पढ़ने आई है तो मैंने अगले दिन शहर के तमाम बड़े कॉलेजों को पूछ-पूछ कर खंगाल दिया ...और जब आखरी कालेज के गेट पर पहुँचा ....अवनि मुझे कॉलेज गेट से बाहर आती दिखाई दी ...शहरी कपड़ों में बिल्कुल परी लग रही थी ...लेकिन मुझे उसका वो रंग ही अत्यंत प्रिय था जो देहात की खुशबू में लिप्त था ...
" सु..सु..सुनो अवनि !"
" छी ...तुम...तुम यहाँ भी चले आये ..आई हेट यू विलिजर ...पहाड़ी...चले जाओ यहाँ से "
गाँव में जो अधूरा रह गया था ...उसे शहर ने पूरा कर दिया ...अब दो रास्ते थे मेरे पास ..या तो मौत या फिर गाँव वापसी "
ढलती रात उसी बर्तन वाली अम्मा के पास पहुँचा...लेकिन वो बिलख रही थी ...कुछ देर पास सटकर खड़ा हुआ तो पाया ..उसका मासूम बच्चा ..भूख और बीमारी से हार गया ...उस अभागी के पास इतना भी पैसा नही था कि वो उसका क्रियाकर्म कर सके ....फूट-फूट कर रोने लगा ...और जब आँखें सूखी तो वो अम्मा बोली ~
" चुप जा लल्ला ...तू है न अब... बोल तू तो छोड़कर नही जाएगा अपनी अम्मा को ...जैसे ये गया इसका बाप गया ....इसका बाप गाता था ...गाकर पैसा माँगता था... वो भी मुझे छोड़ गया "
गाकर पैसा माँगता था ...इस जुमले ने मुझे जगा दिया ...मासूम के क्रियाकर्म के लिए पैसे चाहिए थे ...मेरी जेब खाली थी और उस अम्मा की किस्मत ....
मैंने दर्द की चोट से दिल का नक्कारा पीटा और गले ने सात सुरों का समंदर समेट कर उसे आवाज में तब्दील कर दिया ...आते -जाते..गिरते सिक्कों की खनक मुझे बता रही थी ...उस दुखियारी के मासूम के आखरी सफर की तैयारी हो रहीं है....यहाँ तक गाता रहा जब तलक गले से खून की फुहार न निकल पड़ी... अम्मा ने मुझे गले लगा लिया ~
" रुक ...रुक...रुक जा लल्ला ...तूने मेरे बिटवा के आखरी सफर की तैयारी कर दी रे ....उसे कफ़न मिल जाएगा और अब मुक्ति भी "
उस अम्मा के एक तरफ उसका मुर्दा बच्चा सोया था और एक तरफ उसकी जिंदा औलाद यानि मैं...सुबह उठकर सबसे पहले उसे जमीन को सौंपा ...और अम्मा से हाथ पकड़कर बोला ...
" मेरे साथ अब गाँव चलेगी अम्मा "
दोनों मिलकर सामान समेटने लगे तभी पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ धरा और मैं पलटा ~या फिर मेरी किस्मत ~
" कल तू ही था न जो रात को यहाँ गा रहा था ..?"
" जी...जी..जी साहब "
" मेरे लिए गायेगा..डर मत
..इस शहर ..इस देश का सबसे बड़ा सितारा बना दूँगा "
मैं हक्का -बक्का था ...लेकिन अम्मा ने हाँ का इशारा किया औऱ मैंने हामी भर दी ....
अम्मा ने सामान खोला ..और मैंने अपनी किस्मत का दरवाजा...
आज एक बहुत बड़ा सिंगर हूँ मैं ...बहुत प्रसिद्ध और दौलत-शोहरत वाला....एक प्रोग्राम के बाद जब एग्जिट डोर से बाहर निकल रहा रहा तब एक लड़की की आवाज मेरे कानों में टकराई ...
" कार्तिक... कार्तिक ...दिस इज़ मी.....अवनि "
मैं ठिठक गया ....और पीछे पलटा ...मन किया बाँहें फैला दूँ ..लेकिन तभी नजर आई भीड़ में खड़ी मेरी बर्तन वाली अम्मा...और नजर आया ...अपना बचपन जिसे प्यार ने फनाह किया ...नजर आया वो कुछ कर गुजरने ..लिखने -पढ़ने का दौर जिसे प्रेम ने किश्तों में तबाह किया ...नजर आया वो दर्द जब मैं लड़खड़ा कर गिरा था ...नजर आया अपनी अम्मा का मेरे जख्मों पर मरहम लगाकर फूट-फूट कर रोना ...वो करारा तमाचा जो मुझे प्रेम में उपहार मिला ...वो दर्द ..वो उपहास जो मेरे निश्चल प्रेम को इस स्वार्थी लड़की ने दिया ...
लेकिन मैं अवनि की तरफ आगे बढ़ा ..उसकी आँखों मे बेशुमार हसरतें थी ...वो मेरे गले लगने को व्याकुल थी ...जैसे ही मैं उसके बिल्कुल करीब पहुँचा ...उसने अपनी बाँहों के पर खोले ...और मैंने अपने ....वो आगे बढ़ी और मैंने टर्न लेकर...भीड़ में खड़ी अपनी गरीब बर्तन वाली अम्मा को गले लगाकर उनसे कहा ~
" अम्मा माफ़ कर देना ...लेकिन हरपल तुम याद थी ....अब तुम मेरे साथ रहोगी ....हमेशा मेरे साथ ....और वो लोग मुझसे दूर ही रहें जिन्होंने मेरे पावन प्रेम पर गंवार और देहाती का लेवल लगाया .जबकि प्रेम सिर्फ प्रेम होता है ...न ये गाँव देखता है न शहर ..और न सरहदें..उस प्रेम का उपहास बनाया उसे सस्ती गाली बनाया और सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए और आज फिर अपने स्वार्थ के लिए बाँहें फैला दी ...छी ...आई हेट यू ...आई हेट यू अवनि ...गेट आऊट ...चली जाओ इससे पहले कि मैं तुम्हारे मुँह पर थूक दूँ..दफा हो जाओ यहाँ से "
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तभी अलार्म बजा...4 बज चुके थे..... बड़ा सुकून था ..मैंने झाँककर देखा मेरे ग्रामीण माँ-बाप सुख की नींद सो रहे थे ...और दूसरे कमरे में मेरी बर्तन वाली अम्मा भी .....
मैंने उन सब को हाथ जोड़े और मैं जॉगिंग में निकल गया .....

Written by Junaid Pathan

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