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माँ भारती

 


~~~भारत माता की जय~~~
"माँ... माँ... ये भारत माता कौन है....?"
लेकिन बाजार में खचाखच भीड़ थी... माँ के दोनों कंधों में झोले लटके थे... जिनमें गुड़, चावल और सब्जियां थी... माँ के सर पर पीसे आटे का झोला था। माँ पूरी तरह पसीने से तरबतर थी... उसकी साँसे फूल रहीं थी... वो घर जल्दी से जल्दी पहुँचना चाहती थी क्यूँकि घर में मेरी आठ महीने की बहन थी, जो बगल वाली भूरी अम्मी के सहारे माँ छोड़ कर आई थी।
तकरीबन पांच साल का था मैं और मेरी आयु ने पुनः जिज्ञासा प्रकट की--
"माँ बोलो न... कौन है भारत माता... वो लोग कौन है.... माँ... बताओ न।"
"न पता बेटा... इस्कूल नी गई कभी... होगी कोई देवी... देवी का रूप... चल जल्दी चल गुड़िया घर पे अकेली है।"
घर ...घर कहाँ था वो ...एक पुआल की झोपड़ी थी बस ...मेरे बापू बहुत शराब पीते थे ....और एक दिन शराब उन्हें पी गई ....बहुत दिखाया ..लेकिन इलाज कभी न करा सकी माँ ...ईलाज के लिए चाहिए थे पैसे ...जो माँ के पास थे ही नही ....माँ के गले मे कभी मंगलसूत्र भी नही देखा ...मेरा बाप उसे तक बेच कर शराब पी गया ....मेरे बाप के सब अपराध क्षमा योग्य हो सकतें हैं ....लेकिन जो अपराध उसने हम दो बच्चों को मेरी माँ के पेट मे छोड़कर किया उसकी कोई माफ़ी नही ....
एक सुख की साँस नही ली मेरी माँ ने कभी ...कान की दो बालियाँ गड्ढा खोद दफनाई थी उसने...वो भी मेरे बाप के क्रियाकर्म में स्वाहा हो गईं ...
सरकारी इस्कूल में दाखिला हुआ ..सिर्फ इसलिए माँ ने वहाँ भेजा ..क्यूंकि वहाँ दिन का खाना मिलता था ....वहाँ जाकर भी पता नी चला कि भारत माता कौन है .....
मास्टरजी से भला डर बौराया था ..सवाल नही करा ...लेकिन जब सब बोलते तो मैं भी बोल देता ..."भारत माता की जय "

धीरे-धीरे शरीर बढ़ने लगा मेरा....और भूख भी ....माँ दिनभर न जाने कहाँ - कहाँ काम पर जाती ...वो बड़ी इमारतों में सफाई -कचरा करती ....वहीं से बचा खाना भी लाती और हमारे लिए कपड़े भी ....जब 10 साल का हुआ तो लगने लगा कि दुनिया गोल है .....

क्यूँकि जैसे ही दुःख हमारी झोपड़ी से निकलता ... कुछ दिन बाद फिर लौट आता...मुन्नी भी 5-6 साल की हो चुकी थी .....
फिर रेल आई ....बिल्कुल हमारी झोपड़ी के ऊपर से ...तो झोपड़ियां खाली करनी पड़ी..... हम बेघर हो गए ....सरकार -हुजूर से बहुत दरयाफ्त हुई लेकिन कुछ नही बना ....तो शहर से दूर एक भूतिया खण्डर पर हमारा और भूरी अम्मी का परिवार पलने लगा .....भूरी अम्मी के शौहर मुहम्मद इब्राहिम थे ...वो ढोलकी बनाते थे ...और भूरी अम्मी उनके साथ गीत गाकर उन्हें बेचती थी.... भूरी अम्मी की कोई औलाद न बची ...,चार बच्चे पैदा हुए थे उनके...कोई दूध के बिना न रहा ...कोई भूख के बिना और कोई ईलाज के बिना ....
गरीबी किसे कहते हैं ...ये कभी नही समझा क्यूँकि मैं गरीबी के कुँए का मेढ़क जो रहा ....,लेकिन जल्दी ही इस्कूल छोड़ा और बड़ी इमारतों को नंगी आँखों से देखा ....समझ गया ऊँची -नीची दुनिया का भेद ... पोल खुल गई ईश्वर की शक्तियों की ....पता चल गया कि हमारा ईश्वर सिर्फ हमारे हाथ हैं ....और हमारे लिये कोई शैतान है तो वो है ये पेट जिसपर कभी भूख की गाज का पूरा खाना नही गिरा ......
मैंने भूरी अम्मी और इब्राहिम चाचा से ढोलक बनानी सीखी ...और उन्हीं के साथ उन्हें बेचने भी निकल जाता ....माँ दिनभर काम पर रहती..... वो दिन ईद और दीपावली से कम न ठहरता जब मेरी ढोलक बिकती ...और पैसा हाथ लगता.... लेकिन ये रोज नही होता था ... दिनभर गला फाड़ कर चिल्लाने के बाद भी शाम को मायूस लौटना पड़ता ....
उम्र जिस्म में 17 की लगी तो पता चला कि ढोलक का ये काम ही साला गलत है ....जब लोगों के पास वक्त ही नही तो ढोलक क्यूँ बजाने लगे ...शादियों में अलग ही तरह के बैंड -बाजे बजने लगे ....और मायूसी जो गरीब का मुकद्दर है .... वही मुझपर छाने लगी .....
मुन्नी भी जिस्म को छिपाने लगी ... लेकिन उसके कपड़े फिर भी उसे जाहिर कर देते कि वो अब सुरक्षा की चीज बनने लगी है ....


एक दिन ढोलक बजा रहा था ...सूरज सर पर मचल रहा था ... एक पैसे की कमाई नही लगी ....तभी किसी व्यक्ति ने पास आकर मुझे 10 का नोट दिया और बोला ....कोई कव्वाली और गजल सुना दे लौंडे .....
ये क्या होता है पता नही ... और जब फरमाइश करने वाला भी ये समझ गया कि मैं उसकी फरमाइश पूरी नही कर सकता तो उसने वो 10 का नोट मेरे हाथों से छीन लिया ......
इब्राहिम चाचा ने ये देखा तो बोले ..
" साहब हम सुना दें ...?"
औऱ उस आदमी ने 10 के नोट के बदले 10 तरह की फरमाइश इब्राहिम चाचा से की ....एक दस का नोट इब्राहिम चाचा के जी का जंजाल बन गया..... ढोलक पर धाप पीटती रही भूरी अम्मी लेकिन वो आदमी नही पसीजा ....अंत मे गला हार गया ..और फरमाइश बची रही ....वो आदमी उस 10 के नोट को मुट्ठी में जकड़ कर आगे बढ़ गया ......
सामने मन्दिर और मस्जिद सट कर लगे थे ....मैंने दोनों को बराबर खून चढ़ी नजर से देखा लेकिन उनको कोई फर्क नही पढ़ा ...अलबत्ता मेरी आँखें ही दुखने लगी ......
शाम को थके- हारे घर लौटे तो .....
" गुड़िया ....गुड़िया"
ये माँ की चीख थी ..,तेज ..कट्टर ..पैर के तलवे जलाने वाली ...
गुड़िया कहीं नही दिखाई दे रही थी ....रात से सुबह हो गई उसे ढूँढते हुए ....फिर माँ और हम सब पुलिस हजूर के पास गए ...
" देख ...साला एक तो रे गलत जगा पे रिये हो तुम ..एक तो स्याला भूतिया जगा ..ऊपर से जानवर भी बौराये फिरें ...किया उमर क्या लगी होगी ...लौंडिया की ..?"
" साहब हजूर 14 की "
" कोई फोटो है ..."
" नी तो ...हाँ है वो किसी कारड में है साहब बचपने की "
" अबे उससे पहचान नी हो पाएगी ...चल मिलेगी तो बता देंगे .अभी लड़ी हो लियो "
मुन्नी का चेहरा ...आँखों से हटता ही नही था .... सुबह काम पर गया तो इस्कूल के बगल से गुजरा तो वही भारत माँ की जय का नारा सुनाई दिया .....सोचा कि भारत माँ जरूर बहुत ताकतवर पढ़ी-लिखी औरत रही होगी ...वरना मेरी माँ जैसी होती तो कौन उसकी जय बोलता ... लेकिन एक सवाल दिमाग में लग रहा था कि जब भारत माँ इतनी ही शक्तिशाली है तो उसका कोई मन्दिर क्यों नही ...किसी दरगाह पर उसके नाम का बोरड क्यों नही दिखता ....खैर
मुन्नी का पता नही लगा ....लेकिन दो हफ्ते बाद शहर से दूर एक सुनसान जगह पर मुन्नी की लाश जरूर मिली ...उसके मुँह का पता नही लग रहा था ....भारी पत्थर से कुचला गया था वो ....
अब बच्चा नही था तो समझ गया क्या हुआ होगा और क्यों हुआ ....
पुलिस हजूर ने पोस्टल मार्टम के बाद लाश सौंपी हमने जला दी ...उन्होंने खोज -खबर की हो ऊपर वाला जाने ....हमने जिंदगी को उसी सुर में जीना जारी रखा जिस सुर में उसे मुन्नी की मौत ने रोक दिया था .....


एक दिन इब्राहिम चाचा भी कमजोरी और बीमारी की वजह से बिस्तर पकड़ लिए ....और भूरी अम्मी और मैं सड़कों पर ढोलक लेकर दर-दर भटकने लगे ....
लेकिन पेट का पूरा नही होता था तो चाचा की दवाई कहाँ से लाते ...वो खुदा को प्यारे हो गए ...और अब बचे हम तीन जो खुदा और भगवान की बनाई इस दुनिया में खुद को जिंदा रखने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे थे ....
लेकिन मुन्नी कभी आँखों से ओझल न हुई ....और अब खोने को बहुत ज्यादा शेष न रहा तो मैंने ढोलक जमीन पर रखकर ....तमंचा हाथ पर लिया ...
ये तमंचा मुझे थमाया ....दिलेर सिंह ने ...
" देख बे ढोलकिया ...हम न जा सकते उस एरिया में ...पुलिस नजर रखे है ....तू जा सकता है ...बस आड़ देख दबा दियो ..यहाँ जग्गा गिरा वहाँ पैसा खड़ा ...समझा न "
ऐसा ही किया ....और ऐसा ही करता रहा .....और फिर बरसा पैसा और रसूख ....हम भूतिया खण्डहर से बड़े मकान में फिट हुए .....माँ अनजान थी कि मैं क्या करता हूँ ...लेकिन उसे कुछ भनक जरूर थी कि मैं जरूर कुछ गलत करता हूँ ....
घर की सफाई में माँ ने एक दिन तमंचा देख लिया ...और फिर भूरी अम्मी का हाथ पकड़ वो कभी उस मकान में न घुसी जिसकी नींव में इंसानी खून ठहरा था .....
जुर्म आखिर जुर्म होता है ....पीछा नही छोड़ता ....लेकिन पहले उड़ने के बहुत से मौके देता है ....शराब और औरत का सुरूर लग गया... माँ को भूल सा गया ...पैसा भिजवाता तो थूक कर वापस कर देती ......
दुश्मन 10 तरह के खड़े हो गए... वो ज्यादा थे जिनके बाप-भाई.. दादा को मैंने ढहाया था ....लेकिन सबसे बड़ी फील्डिंग पुलिस की थी ....जब तक पैसा भेजता रहा सांस ले रहा था .....
एक दिन यूँ ही कार से जा रहा था तभी रास्ते पर....माँ और भूरी अम्मी दिखाई दी ...बेहद बूढ़ी हो गईं थी दोनों.... लेकिन ढोलक की उनकी थाप अब भी जवान थी ...मैंने तुरन्त एक किनारे पर गाड़ी रोकी और गाड़ी से उतरकर उनकी ओर जाने लगा ....तभी माँ की नजर मुझसे मिली ...और उसने तुरंत अपनी नजर फेर ली ...मैं रुक गया ...लेकिन फिर माँ ने मुझसे नजर मिलाई ...और बूढ़े बेजान कदमों से मेरी ओर दौड़ी ....मैं सकपका गया ....लेकिन मेरे शरीर का रोम -रोम माँ को गले लगाने के लिए व्याकुल हो गया ...माँ मुझ तक पहुँची और एक तेज धक्का मुझे दिया ....मैं जमीन पर गिरा और ताबड़तोड़ गोलियाँ माँ के जिस्म में धंस गई ....
सड़क माँ के खून से लाल थी .....और मैं सन्न होकर सिर्फ माँ की हिचकियाँ गिन रहा था ....हमलावर फरार हो चुके थे ...मैंने माँ के खून से लथपथ जिस्म को अपनी गोद में उठाया ...और माँ आखरी बार मुझसे बोली~
" छोड़ ..द..दे य..ये स..ब कुछ "
" और मैंने सब कुछ छोड़ दिया साहब ...सब कुछ ...."
साहब हाकिम ने मेरी बात सुनी और आँख में फँसा एक आँसू पोंछा...
" ठीक है ...मैं तेरे लिए जितना हो सकता है उतना करूँगा ...तेरी सजा कम करवाने की कोशिश करूंगा ...और तेरी भूरी अम्मी भी तब तलक मेरे साथ रहेगी ...मेरे परिवार की सदस्य बनकर .....अच्छा अभी चलता हूँ और हाँ ...भारत माता और कोई नही ...वो तेरी माँ है ...और वो इस देश की वो हर नारी जो अपने सिद्धांत और उसूलों से कभी समझौता नही करती.... सलाम करता हूँ तेरी माँ को ..जिसने जिंदगी भर गरीबी से लोहा लिया लेकिन कभी उस गरीबी को काटने के लिए गलत रास्ते और गलत तरीकों का सहारा नही लिया ..वैसे क्या
नाम क्या था तेरी माँ का ...?"
मैंने आँख से आँसू पोंछे और साहब की आँखों में आँखें डाल कर कहा ....
" साहब ....भारती..... माँ भारती "

Written by Junaid Pathan

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