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हिज़ाब

 


"राधे ...राधे सुमित भैया ...भैय्या जी कहाँ खो गए...?"
"यार ये है कौन...साला आँखें इतनी हसीन है तो हिजाब के पीछे चेहरा कितना कातिल छुपा होगा"
"भैय्या जी पता किये हैं...बाजू वाले मुर्शिद चौक की लौंडिया है... बाप जांघिये -कच्छे नाड़े बेचे है घूम-फिर कर...नये आये हैं यहाँ...और सघन जाँच किये तो पता चला...कुछ बनना -सनना चाहती है"

"तूने देखा है इसे... बिना हिजाब के... बता न कैसी दिखती है? नाम क्या है इसका?"
"भैय्या हमने क्या किसी ने नही देखा ...चेहरा हिजाब से हमेशा ढँका रहता है ... कट्टर मुल्ली है भैया जी...और नाम..."
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"मैंने देखा है ......"
तभी पीछे से लता की आवाज कानों में गिरती है... लता मेरी प्रेमिका... मैं झेंप गया...आँखें शर्म से नीचे झुका ली ....तभी वो बोली-
"हर चीज का धर्म निर्धारित है इस दुनिया में ...लेकिन मर्द के खोखलेपन और लालच का नही ... मँगनी हो चुकी है हमारी ...और तुम ....छी "
खैर लता को हाथ जोड़ ..पैर पड़ मना लिया ...लेकिन नींद नही थी आँखों में...वो हिजाब से अनुशासन तोड़ती आँखें ...वो एक पल मुझे घूरती आँखें ... मेरी नींद उड़ाने लगी थी
कॉलेज में दूसरे दबंग गुट का फायर ब्रांड लीडर हूँ...बहुत चलती है अपनी.... अपनी संस्कृति के नाम पर हमारा एक ग्रुप भी है.... कॉलेज में बढ़ती मॉडर्न संस्कृति के विरोध में सदा हम अड़े रहते हैं... और यही काम कॉलेज से बाहर भी करते हैं....अपने सर पर विधायक महेंद्र अवस्थी जी का हाथ है...और हमारे साथ उनका सहयोग

मेरी छवि कॉलेज के लड़कों पर छाई रहती है लेकिन लड़कियाँ मुझे ज्यादा पसन्द नही करती ... वजह ये कि एक तो अपन मारपीट में आगे है ..और दूसरा है कि लता के सिवा हर लड़की मुझे बहनजी दिखाई देती है ...लता के साथ बचपन का प्रेम है अपना और मैं कभी किसी और लड़की की तरफ झुका ही नही ....और ये लता भी जानती है ..तभी मुझसे बहुत प्रेम करती है ....बहरहाल इसलिए ऐंठ कर चलता हूँ बिना किसी भय ...बिना किसी लालच के ...!
जैसे ही करवट बदली याद आया कि ...आज सुबह जोगिया उस लड़की का नाम बता रहा था ...लेकिन लता के बीच में आ जाने की वजह से वो नाम नही बता पाया......
घड़ी देखी रात के दो बज रहे थे ....तुरन्त फोन उठाया और जोगिया का नम्बर डायल किया ~
" हुम्म... भैय्या जी कहाँ आना है ...किसे फोड़ना है ..ह...आआ..."
"अबे चुप कर ...सुबह तू उस लौंडिया ...का नाम बता रहा था ...क्या नाम है उसका ...?"
" भैया जी कोली फ्लावर कर दी आपने ...कल सुबह मिल तो रहे थे ...." सिदरा "नाम है उसका "
" सिदरा ..मतलब ...मतलब क्या होता है इसका ....?"
" भैय्या जी सूख कर सूखा भुट्टे जैसी बन रही है अब ...अब मुझे क्या पता ...मुल्ला मौलवी नही हूँ मैं .."
" अच्छा थैंक्स ...शुभ रात्रि "
वाकई वो रात शुभ ही थी ...फोन काटकर मैं इंटरनेट में सिदरा का मतलब देखने लगा .... और देखने लगा कि मैं न चाहते हुए भी उन आँखों का होते जा रहा था .....

अगली सुबह कॉलेज में ~

" सुनिए सिदरा जी !... वो ....वो ..वो मैं कह रहा था आपको कोई प्रॉब्लम तो नही है यहाँ ...बुक्स -वुक्स मिल गई लाइब्रेरी से...?"
जवाब पीछे से मिला ~
" न मिलेगी तो हम दिला देंगे सुमित ....तू कब से हमारी कौम में इतनी दिलचस्पी लेने लगा है ...अबे ! दूर ही रहियो हमसे ...वरना ....."
" वरना ...वरना ...अबे ! बोल क्या करेगा ..."
मेरी और जीशान हैदर की कहा -सुनी हाथापाई में बदल गई ...और फिर से कॉलेज में ...एक उन्माद बरपा हो गया ...जीशान हैदर जो कॉलेज के दूसरे दबंग गुट के लीडर करन गुप्ता के ग्रुप का लौंडा था ....बस यही बात फिर हम दोनों ग्रुप्स को आमने-सामने ले आई ...खूब तोड़-फोड़ हुई ...खूब आगजनी ....और उसी शाम ~
" मतलब ..क्या हो गया है तुम्हे ..क्या जादू कर दिया है उस लड़की ने तुमपर ...?पापा को सब पता चल गया है सुमित ...बोलो ...बोलो क्या चाहते हो तुम ...?"
मैंने चुप्पी खींच ली ...और लता इस चुप्पी को समझ गई.. वो चुपचाप मेरे कमरे से उठकर चली गई ...अगले दिन विधायक जी के घर पर ~
" हम तो सोचे थे ...तुम हनुमान जी के उपासक हो ...उन्ही के भक्त हो ...लेकिन पता न था लँगोट के कच्चे हो ...और वो भी एक मुसलमान लौंडिया के चक्कर में अपने रेपुटेशन की लंका खुद जला लोगे ....हाथ खींच लिए न सर पर से तो ये जो जोगिया राइट हैंड में खड़ा है न तुम्हारे ...कल तुम्हारी जगह खड़ा कर देंगे ...समझे "
खून का घूँट पीकर वहाँ से उठकर चला गया ....लेकिन सिदरा न जाने कैसे खून में शामिल होते जा रही थी ......
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उधर ~
" जीशान भाई ...कसम खुदा की लौंडिया मर -मिटी होगी आप पर ..क्या करारे पंच दिए साले सुमित के मुँह पर "
" तेरी अम्मा की .... साले और जब वो पंच दे रहा था तब तू कहाँ मर गया था...?"
जीशान हैदर जिसे उस लड़की में कोई इंट्रस्ट नही था ...लेकिन सुमित की पसन्द होने पर उसने उस लड़की के बारे में सब पता लगाया ....लौंडों से सुना कि सुमित उसकी आँखों का दीवाना है तो ये चेक करने अगली शाम जीशान ..सिदरा के घर पहुँच गया ~
" अस्सलामु अलैकुम चचा ...यहीं से गुजर रहे थे ...वो आप की बिटिया सिदरा हमारे की कॉलेज में पढ़ती है ...तब न..."
" ओहहो आओ बेटा बैठो ..."
तभी पर्दे की किनारे से दो आँखों ने झाँका और पता चला कि सुमित क्यूँकर इस चेहरे इस हुश्न पर फिदा है
" वो जी चचा...कह दियो ..सिदरा जी से...कोई दिक्कत हो तो ...अपने ही लोगों से कहे ...मोमिन हूँ मैं ...और एक मोमिन ही मोमिन को समझ सकता है ...अच्छा चलते हैं खुदा हाफ़िज "
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अब हालत ये थी कि एक चिंगारी दो दिलों में आग भर रही थी ....कॉलेज जीशान और सुमित के लिए एक बैटल बन चुका था .....और बेचारी सिदरा इस बैटल में एक मोहरा बन चुकी थी ....लेकिन इसमें एक मासूम जिंदगी और पिसने लगी ....
सुमित की मंगेतर " लता"
सिदरा लैक्चर अटेंड करती ...और लेक्चर रूम की दोनों परस्पर विपरीत खिड़कियों में सुमित और जीशान खड़े मिलते ....जीशान का जहाँ सिदरा के मुहल्ले में आना जाना आसान था वहीं सुमित के लिए उतना ही मुश्किल .....
" भैया जी दीवाने न बनो ...साला एक लौंडिया के लिए पावर और प्रेम दोनों से हाथ धो रहे हो आप ...आपको नही जाने देंगे उसके मुहल्ले में ..."
" कल सन्डे है जोगिया .....देखा नही आज लेक्चर रूम में उसने दो बार मेरी तरफ देखा ...जीशान की तरफ नही ...वो मुझे चाहने लगी है जोगिया ...मैं जा रहा हूँ "
सुमित का सिदरा के मुहल्ले में जाना फिर एक बार बवाल कर बैठा.... खूब मारधाड़ मची ...खूब हो -हल्ला ....लेकिन फिर भी सिदरा नाम का वो सितारा दोनों के मध्य परस्पर छाया रहा ....

एक दिन कॉलेज गेट पर ..~सुमित ने सिदरा से कहा ~
" सुनो सिदरा कुछ कहना चाहता हूँ मैं !"
तभी ~
" ओये सुमित ...साले तू नही सुधरेगा ..."
जीशान मेरी तरफ दौड़ा और मैंने दोनों मुट्ठियाँ भींच ली ....तभी मेरे और उसके बीच मे सिदरा आ खड़ी हुई ....
" क्यों ...क्यों ...क्यों.. तुम दोनों ने मेरी जिंदगी को जहन्नम बना रखा है ...पढ़ने आते है यहाँ हम ...कुछ बनना है हमें .....नही है हमें किसी पर ऐतबार ...नही करना किसी से प्यार ....खुदा के लिए ...भगवान के लिए हमारा और मजाक मत बनाओ तुम दोनों ..नफरत है मुझे इस प्यार ..इस मुहब्बत से ...नफरत है मुझे मर्दों से ...."
ये झटका हम दोनों के लिए गजब का था ....पता नही क्यों एक पल में मेरी मुट्ठियाँ खुल गई ... और जीशान का उबलता खून सर्द पानी बन गया .... पूरे कॉलेज में हमारे चारों तरफ एक जमाव लग गया ....वो जो आँखें मुझे जीने नही दे रही थी उनमें आँसू थे ....तभी जीशान आगे बढ़ा ~
" सिदरा कसम तुम्हारी बहुत चाहता हूँ तुम्हे ...तुमसे शादी करना चाहता हूँ ...मेरी मुहब्बत को अपना लो ...खुदा के लिए "
पीछे से मैं भी बोल पड़ा ~
" मैं तुम्हारी कौम का नही सिदरा लेकिन कसम तुम्हारी सिर्फ तुम्हारे लिए ये कौमी नफरत..ये गुंडागर्दी ...ये राजनीति सब छोड़ चुका हूँ ....प्यार का कोई मजहब नही होता सिदरा ...प्यार करता हूँ तुमसे सिर्फ तुमसे "
पता ही नही चला कि लता भी उसी भीड़ में खड़ी थी ...उसकी सिसकी ने मुझे जता दिया कि वो दौड़ी चली जा रही है मुझसे दूर ...बहुत दूर ....तभी
" तुम दोनों मुझसे प्यार करते हो ...पूरे कॉलेज को गुंडई का अड्डा बनाने वाले तुम दोनों मुझसे प्यार करते हो ....ठीक है ...अब जो आगे बढ़कर मेरा हाथ थामेगा ...मैं समझ लूँगी कि वही मुझसे प्यार करता है ..."
सिदरा का ये जुमला चारों और जुटी भीड़ को फिर कँपपाने लगा ..लगा फिर एक खूनी मुठभेड़ होगी ..वो भी सिर्फ .हाथ थामने के वास्ते ....
जीशान और सुमित के कदम आगे बढ़ने लगे ...तभी सिदरा ने एक ओर हटकर ...अपना हिजाब निकाल के हवा में उछाल दिया...
" इई.. ईई ओह माय गॉड ..."
" बार रे ..."
" यैईई"
सिदरा के आँखों से नीचे सारा चेहरा ...बुरी तरह जला हुआ था ।।।।जीशान और सुमित के बढ़ते कदम रुक गए ...
रुक गया बहता खून उन जमी नाड़ियों में जिनमें अभी इश्क दौड़ रहा था ....जीशान और सुमित ने भी अपनी नजरें उस चेहरे से हटा ली ...जिस चेहरे की आँखों को देखकर उन्होंने बेवफाई ..हिंसा और आपसी नफरत का रास्ता बाँट लिया था ......अब उन दोनों की आँखों मे दम नही था कि सिदरा की आँखों से आँखें मिला सके ।
सिदरा के दोनों हाथ हवा में थे मगर अफसोस न दीवाने सुमित के अंदर उसे थामने की हिम्मत थी न परवाने जीशान के अंदर ...
" क्यों रुक क्यूँ गए ..उतर गया प्यार का भूत ...मुझे पता था ...यही होगा ...क्यूँकि तुम भी उसी सड़क छाप आशिक की तरह हो जिसने मेरी जिंदगी को तेजाब से बदल दिया ... और वजह थी सिर्फ मेरी न ।।।जो मेरा हक था ...तुम जैसे मर्दों का इश्क पता है मुझे ... काश तुम्हे हमारा भी दर्द पता होता ....काश ...."
भीड़ को ये सिदरा का ये जुमला प्रवचन लगा ...तो वो छटने लगी ...जितनी देर में सिदरा ने जमीन से उठाकर अपना हिजाब पहना उतनी ही देर में सुमित और जीशान भी अपने रस्ते निकल चुके थे ....बेपनाह आँसू थे सिदरा कि आँख में ....उसका क्या खूब मजाक बना ...वीडियो बने ...फोटोज क्लिक हुई ... जब वो अकेली रह गई ... और आँसू पोंछकर आगे बढ़ी तभी किसी ने उसका हाथ थाम लिया ....
" जिंदगी भर नही छोडूंगा इसे ...कभी नही ...किसी कीमत ..किसी दौलत ..किसी शोहरत के आगे भी नही ....बस मेरा नाम और मजहब न पूछना ..और अगर जानना ही चाहती हो तो सुनो इंसान से पैदा होकर इंसानियत को मजहब बनाया और इंसान नाम की पहचान साथ लेकर जिंदगी के साथ चल रहा हूँ ...ये दो ही नही मैं भी तुम्हारा दीवाना हूँ ...लेकिन इन दोनों की डर से कभी हिम्मत ही नही हुई कहने की ...ये हिजाब खुलते ही रास्ता बदल गए ...और हिजाब खुलते ही मुझे मेरी मंजिल मिल गई .....यकीन करो सिदरा कुछ मर्द ऐसे भी बने है जो जिस्म से नही सिर्फ रूह से मुहब्बत करते हैं ...."
आदमी से सताई सिदरा ...इंसान की बाँहों में समा गई ...या फिर
गिरते गुलाल को जैसे तूफान मिल गया ...
रूहानी इश्क को फिर एक मुकाम मिल गया........

Written by Junaid Pathan

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