शादी के बाद का हाल
मेरे ऑफिस के सामने ही थाना है, जिसमें दिल्ली सरकार द्वारा मध्यस्थता केंद्र खोला हुआ है
जिसमें पारिवारिक झगड़े वाद-विवाद निबटाए जाते हैं ताकि छोटी मोटी बातें अदालत तक ना जाएं
और सरलता पूर्वक दोनों पार्टी को बैठाकर समस्या का समाधान हो जाए।
पहले तो यह बताता चलूं पारिवारिक झगड़े जब तक घर में रहे तो ठीक रहते हैं
और वहीं चारदीवारी में उनका निपटारा हो जाए तो सही है अगर यह झगड़े सड़क पर आ जाएं तो फिर पारिवारिक नहीं रहते सामाजिक प्रतीत होते हैं।
और रिश्तो की डोर सड़क के किनारे उलझी हुई पड़ी दिखाई देती है।
फिर रिश्ते ऐसे लगते हैं जैसे किसी इमारत में लगी हुई बहुत पुरानी पताका
जो तेज हवा के थपेड़ों से तार तार होकर अपनी सुंदरता खोकर बेरंग हो चुकी हो।
ऐसे घरेलू झगड़े लगभग रोजाना मैं देखता हूं उनकी सुनवाई और निपटारा तो अंदर बंद कमरे में होता है लेकिन कभी-कभी इंसान की ईगो उसका घमंड और नफरत उस बहस को बाहर ऑफिस के सामने सड़क पर ले आती है, जिसका मूक दर्शक मैं भी ना चाहते हुए बन जाता हूं।
आज भी घर के सामान (दहेज ) से भरा एक ट्रक थाने के बाहर आकर खड़ा है।
उसमें वह सभी सामान है जो गृहस्थी बसाने और दो जिंदगानियों को जोड़ने के लिए खरीदा गया था।
आज वह सामान जैसे उदास था, शायद वह जिसलिए खरीदा गया था उस काम ना आया और आज उसकी वापसी हो रही थी।
मध्यस्थता केंद्र ने तो अपना काम कर दिया था, शांतिपूर्वक दोनों घरों की रजामंदी से लड़का और लड़की के संबंध विच्छेद पर मुहर लगा दी थी।
यानी तलाक हो चुकी थी ,
लेकिन बाहर दिलों में अभी भी उबाल था, दहेज वापस करते वक्त और दहेज वापस लेते वक्त दोनों घरों के लोग खुद को सही और दूसरे को गलत साबित करने के लिए अब भी कमर कसे हुए थे।
ट्रक से सामान उतर रहा था और शादी में बनाई गई दहेज की लिस्ट से मिलान हो रहा था
डबल बेड, फ्रीज, अलमारी, सिंगार मेज़ जैसे बड़े आइटम ही नहीं, एक-एक पतीली और डिनर सैट से ले कर कटोरी चम्मच को मिलाया जा रहा था।
लड़की द्वारा बिताए गए कुछ दिनों कि यादों के अलावा, सब कुछ वापस चाहिए था। सब सामान सड़क के किनारे रखा जा रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इंसानी रिश्तों और जज्बातों को किसी झांकी का रूप दे दिया हो।
सड़क पर दहेज नहीं रिश्ते बिखरे पड़े थे, वह रिश्ते जिन्हें कुछ दिन पहले बैंड बाजे के साथ दोनों ख़ानदानों ने बड़े खुशी खुशी समाज के साथ मिलकर जोड़ा था ।
वही खुशी के लम्हे आज सड़क किनारे आंखें फाड़े अपनी आखिरी सांसे गिन रहे थे।
सामान समेटते हुए कुछ जज्बाती आवाज़ें भी आ रही थीं
इस हारामी खानदान का पता होता, तो रिश्ता कभी नहीं जोड़ते
सही कहा ख़ाला कमीने लोगों की नस्ल बाद में पता चली
हरामी साला लड़का , काम का ना काज का
हमारी लड़की को पीटता था शराबी सूअर कहीं का
अरे यह तुम्हारी फुफ्फो ने तारीफ की थी इन ज़लीलों की, के बहुत अच्छा खानदान है, लड़का अच्छा कमाता है। इज्जत वाले लोग हैं, कुछ महीनों में ही बेग़ैरतों की हकीकत सामने आ गई।
अरे दहेज से मुंह भर दिया था कमीनों का फिर भी अपनी ज़ात दिखा दी
अरे क्या पता था ये परवेज़ ही नामर्द निकलेगा। कमीना मां के पल्लू से लिपटा सांप निकला
हरामीं 6 महीने भी मेरी बेटी को खुश नहीं रख सका
अरे बेटी नुज़हत अब ये रोना छोड़ , सामान चेक कर अपना जल्दी ।
उधर दहेज वापस करने वाले लड़के वालों की तरफ से भी कुछ आवाज़ें आईं
अरे बड़ी बी देखो तो इसे , कैसे सीना तान कर खड़ी है करमजली , शर्म तो है नहीं बिल्कुल
चार दिन मेरे बेटे को खुश नहीं रख सकी डायन।
और ना ही कोई खुशखबरी ही दी हमें , लगता है मां बनने के लायक ही नहीं थी कमीनी
अरे छोड़ो आप समझो वक्त रहते हमारे बेटे को छुटकारा मिल गया। एक मेहंदी लगी दाढ़ी हिली थी
अरे ओ चचा इज्जत से चले जाओ वरना यहीं सड़क पर दाढ़ी रगड़ दूंगी। बरतन समेटते हुए एक मोहतरमा बोलीं थीं।
और इस अपने मर्द बेटे को भी ले जाओ वरना यहीं सड़क पर पोल पट्टी खोल दूंगी इसकी , ज़नख़ा कहीं का
अब फिर लड़के वालों की बारी थी...
अरे अपनी गुल खिलाने वाली लड़की को संभालो। जब चक्कर कहीं और था तो मेरे बेटे की जिंदगी क्यों खराब की। वहीं मुंह काला करती ना अपना।
अरे ओ नूरा बेगम, तेरी इस ज़बान को गले में लपेट दूंगी,
पहले अपने बेटे का डाक्टरी चेकअप तो करवा लेती शादी से पहले,
बाप बनने लायक है भी या नहीं।
देखो चिचा अपनी औरतों को चुप करा लो, वरना अभी यही सीन पाट कर देंगे। एक नौजवान का खून उबाल मारा ।
अरे अकरम रहने दे इन बेशर्मों के मुंह क्या लगना।
अबे ओ लौंडे हमने भी चूड़ियां नहीं पहन रखीं
सालों बेटी वापस लेने आए हैं, एक आद की जान लेकर जाएंगे।
अरे तुमने ये क्या शोर मचा रखा है यहां? एक दरोगा थाने के गेट पर खड़ा तमाशा देखते हुए बोला-
तुम लोगों को निपटारा हो गया है ना, अब यह सामान समेटो और चलो यहां से।
अरे अम्मीं सामान कम है।
क्या नासपीटों ने बेच खाया क्या?
और कितनी चीजों का सत्यानाश कर दिया है कमीनों को बरतना भी नहीं आया ।
तुम्हारी बेटी भी तो बरतती थी, हमें क्या पता?
अम्मीं एक डिनर सैट, वाटर कूलर और टेबल फैन कम है।
हय हय, अरे वही टेबलफ़ैन जो तेरी मुमानी ने दिया था?
अरे छोड़ो समझ लो हमारी बेटी का सतक़ा गया। मेहंदी लगी दाढ़ी फिर हिली थी ।
तभी एक पतीली हाथ से छूटकर जमीन पर गिरी और टन टन करती हुई दूर तक लुड़कती चली गई।
मेरी एकाग्रता टूटी, और सोचने लगा यह बर्तन सड़क पर लुढ़का है या रिश्ते?
और आगे का नजारा मुझसे देखा ना गया, और अपने ऑफिस में चला गया।
यह तो एक दिन का क़िस्सा था, आए दिन ऐसे दिलों को झिंझोड़ने वाले मंज़र वहां दिख जाते हैं।
काश शादी सिर्फ दो ख़ानदानों का मिलन ना होकर दो संस्कारों का मिलन हो।
लड़का लड़की का आपस में एक जिस्मानी रिश्ता ना बनकर, एक रुहानी रिश्ता बने।
तो ऐसी नौबत ही ना आए।
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