पाप की औलाद
बिन बाप के बच्चे को वह गोद में लेकर चुप कराने का प्रयास कर रही थी।
बिन बाप का बच्चा?
हां जनाब वेश्या के बच्चे पर किसी बाप के नाम का ठप्पा नहीं होता,
उसकी देह रुपी धरती पर कौन बीज डाल गया था, यह वह भी नहीं जानती थी।
आज सुबह से ही रो रहा है, उसे बुखार है यह सोचकर चिंतित हो रही है
लेकिन ग्राहक आने का भी समय है इसलिए मजबूर हैं।
अब उसके पास बहुत कम ग्राहक आते हैं। बच्चा पैदा करने के बाद उसकी देह जो खराब हो गई है। अब अब उसके पास वह शरीर है जो एक नारी अपने बच्चे के लिये अपने सुंदर शरीर को दावं पर लगा देती है।
भावनात्मक दृष्टि से देखें तो एक मां का शरीर है और वासना की नजर से देखें तो एक बेडौल शरीर।
तभी दरवाजे पर आहट हुई और भगवान द्वारा रचित एक काया कमरे में दाख़िल हुई।
शक्ल तो इंसानों वाली थी लेकिन आंखों से किसी भेड़िये का गुमान होता था, कमरे में घुसते ही बोला-
अरे ये बच्चा...
आओ साहब अभी इसे चुप करा देती हूं जरा दूध पिला दूं।
वह आंखें तरेर कर बोला- मैं यहां तेरे बच्चे को दूध पिलाने नहीं आया हूं, चल हट साली दूसरा कमरा देखता हूं।
नहीं नहीं साहब ठहरो... और यह कह कर उसने रोते हुए बच्चे को बराबर पड़ी दूसरी खाट पर लिटा दिया।
और ख़ुद को उस ग्राहक को समर्पित कर दिया। अब वह अपने बीमार बच्चे को नहीं बल्कि उस ग्राहक की लाल आंखों में आंखें डाल कर देख रही थी।
अब उसे अपने बच्चे की रोने की आवाज नहीं बल्कि ग्राहक के मुंह से निकलती कामुक आवाजें सुनाई दे रही थीं।
अब वह जन्मजात जैसी अवस्था में अपने दिये हुए पूरे पैसे वसूल कर रहा था।
और वह नारी जिसे समाज वैश्या का तमग़ा देता है...
अपने बच्चे की भूख मिटाने से पहले किसी और की भूख मिटा रही थी ।
कमरे के किसी कोने में खड़ा ईश्वर भी इस कृत्य का गवाह था।
क्योंकि वह तो हर जगह है?
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