गिरता सूरज
"सर मे आई कम इन...?"
"गेट... गेट आऊट... देख नही रहे हो यहाँ मीटिंग चल रही है... अरे... अरे... किसने अंदर भेजा इसे... माणिक लाल।"
माणिक लाल चपरासी अंदर आता है.. और डी.एम साहब से ममियाते हुए बोलता है-
"साहब... खुद को फ्रीडम फाइटर का पोता बोल रहा था... कारड भी दिखा रहा था... तभी अंदर भेज दिया।"
डी एम साहब खिसिया गये और झल्ला के बोले-
"इसको बाहर निकालो और तुम 3 दिन के लिये घर बैठो अब।"
पुनश्च मीटिंग शुरू हुई.. लड़का बाहर निकाला गया और चपरासी की जगह तत्काल दूसरा चपरासी खड़ा किया गया।
"सॉरी मिस्टर राघव... हाँ तो पॉलिसीज अच्छी है... हम मंत्री जी को खुद रिकमेंड करेंगे। आपका काम पक्का समझिए... लेकिन हम भी भाग दौड़ जम कर करेंगे... समझ तो रहे होंगे आप न।"
मैं समझ गया ...डी.एम साहब को थैंक्स बोला और उनसे हाथ मिला कर कैबिन से बाहर निकल रहा था... तभी-
"साहिब हम बोले थे न.. अग्निपुर की लंका लगा देंगे.. तो फिर समझ लीजिये अब चक्का जाम तय।"
"अ..अ..अरे... विशाल बाबू...अमां बैठिये तो सही ....अरे काम आज ही हो जाएगा ....ए.ए...कॉफी लेकर आइये युवा नेता जी के लिये।"
बहुत जल्दी बात समझ मे आई ...जो लड़का अभी इस कैबिन से दुत्कारा गया ...वो बेशक पढ़ा-लिखा और बेहद अनुशासित लड़का था और ये जिसे डी.एम साहब कॉफी ऑफर किये.. जो बिना पूछे बिना आज्ञा के कैबीन में प्रवेश किया ...ये बेशक एक वाहियात ...ऐबी और जाहिल है ....लेकिन इस देश की किस्मत ही कुछ यूँ लिख दी गई है कि नाकाबिल राज करेगा और काबिल धक्के खायेगा ......इसे अब कोई नही बदल सकता..... खैर मैं कैबिन से बाहर निकला .....और देखा वो मासूम सा लड़का जो अभी दुत्कारा गया बाहर वेटिंग बेंच पर उदास बैठा था।
"हैलो यंग मैन ...क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूँ ...?"
"सर नमस्कार .... सर मेरी स्कॉलरशिप का पैसा अभी तक नही आया ....आज दो महीने हो गए हैं..... सर मुझे फॉर्म भरना है और परसों लास्ट डेट है .....सर मैं घूस नही दे सकता इसलिये सब टालमटोली कर रहें हैं ......इसलिए डी.एम सर से मिलने चला आया।"
मैंने उस लड़के की आँखें देखी और उनमें देखी एक सत्य और विश्वास की चमक....
"ये मेरा पता है यंग मैन कल यहाँ चले आना ...तुम्हारी हेल्प हो जाएगी।"
"मुझे हेल्प नही सर मेरा हक चाहिए ....थैंक्स सर लेकिन मैं आपसे मदद नही ले सकता।"
इस देश मे बन्दरबाँट का जो बाजार लगा पड़ा है वहाँ एक इंसान ऐसा भी है जो अपना हक लेना चाहता है ....वाह ...हक किसको मिला है यहाँ ....लेकिन मिलता था ....मिलता रहा ये भी एक सच है .....मैंने उस लड़के के काँधे पर हाथ रखा और बोला-
"सॉरी हेल्प कहने के लिए ...दरअसल डील कर लेते हैं जब तुम्हारा स्कॉलरशिप का पैसा आ जाये तो तुम .. मुझे मेरा पैसा वापस कर देना ....कल मैं तुम्हारा वेट करूँगा।"
मैं जितने कदम चला अपने कदमों पर गर्व हुआ ..मैंने अपनी पाठ्य पुस्तकों में नेक इंसानों ...मानवता ...नैतिक मूल्यों के बारे में पढ़ा था लेकिन ...आज जाकर उन किताबों पर विश्वास आया...कि उनमें सच लिखा था ....कुछ लोग बड़े उसूल और सिद्धांत वाले भी पैदा करता है भगवान...... और एक से अभी मिलकर मैं आ रहा हूँ।
अगली सुबह मैं बेसब्री से उस लड़के की प्रतीक्षा करने लगा लेकिन वो नही आया .... यहाँ तक दिन के 2 बज गए फिर भी वो लड़का नही आया ....पूरी शाम उदास हो गई ...और रात शराब के नाम।
अगले दिन मैं डी.एम ऑफिस गया ....और मैंने वहाँ के बाबुओं से उस लड़के के बारे में जानकारी ली किसी ने बहुत रुचि नही ली ....फिर याद आया ...उस चपड़ासी के बारे में ...जिसको 3 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया गया था।
मैं उसके घर पहुँचा तो पाया वो चपरासी घर पर नही था ....अगल-बगल पूछा तो सुना कि वो अपने गाँव गया हुआ है ....लेकिन मुझे इतनी बेचैनी क्यूँ थी ....क्यूँ वो लड़का एक छोटी सी मुलाकात में मुझे अपना सा लग़ने लगा था ......न जाने कौन सा जादू कर दिया था उसने मुझपर .....जब कहीं उसका कोई सुराग हाथ न लगा तब मैं भी ये सब भूल कर अपने काम पर लग गया ......वो काम जिसको करने के बाद मुझे खूब दौलत -शोहरत मिलती है लेकिन एक कतरा सुकून नही।
मैं नेताओं और मंत्रियों की दलाली करता हूँ उनका हर लीगल काम अगर देश का कोर्ट करता है तो सारे इल्लीगल काम मैं ....जमीन खाली करवाना ...ब्लैक मनी को वाइट करना ...रियल एस्टेट ...रंगबाजी ....कबूतरबाजी और यहाँ तक किडनैपिंग और दंगा -बलवा भी।
लेकिन पहले ये काम करना मेरी जरूरत बना और अब इससे पीठ करना मेरी जिंदगी को खतरे में डाल सकता है ...... पत्नी बहुत आदर्शवादी निकली ...हराम के काम का एक पैसा अपने और अपनी औलाद के लिए हराम समझती थी ....इसलिये रात के अँधेरे में बिना बताए मुझे छोड़ कर हमेशा के लिए चली गई ......गुर्गों ...पुलिस बल सबसे खोज खबर निकलवाई लेकिन फिर कभी कोई खबर नही लगी उसकी।
मैंने दूसरी शादी नही की ....लेकिन बेशुमार औरतों की कभी मजबूरी तो कभी जरूरत का फायदा उठाकर उनके साथ रातें रंगीन की हैं......,लेकिन उम्र के इस पड़ाव में जब लगता है कि जिंदगी कभी भी धोखा दे सकती है तो मन करता है एक बार ...सिर्फ एक बार तौबा का कोई वो दर मिल जाये जहाँ मुझे कुछ तो शांति मिले।
तभी फोन की रिंग बजी-
"हैलो।"
"हैलो राघव ... गोल चौक पर एक लड़का ..हमारी सरकार के खिलाफ लोगों को एकजुट कर रहा है ...भड़का रहा है ...बस ऐसा कोई इंतजाम करो कि ये लौंडा दुबारा इस शहर में नजर न आये लेकिन काम इतनी सावधानी से होना चाहिए कि किसी को सरकार की नीयत और करतूत पर रत्ती भर भी शक न हो।"
फोन कटा...मैंने सीधे अपने गुर्गों को आर्डर दिया...
दो घण्टे बाद फिर फोन बजा-
"बॉस कोई अभिनव नाम का लौंडा है ....पब्लिक के बीच मे है ...काम नही हो सकता आज।"
"तेरी माँ का...मादरखोर.... काम आज ही होगा .....फायर कर भीड़ में ...और सुन किसी भी तरह से उस लौंडे का काम आज ही खत्म करना है।"
लेकिन इसी बीच एक आवाज फोन में आई-
"ये मेरी स्कॉलरशिप का सवाल नही बल्कि लाखों स्टूडें......."
फोन कट गया .....तभी मेरे अंदर चेतना लौटी मैंने हड़बड़ाहट में जग्गा को फोन मिलाया .....लेकिन उसने फोन रीसिव नही किया .....दो बार फोन और लगाया .....लेकिन भीड़ में होने की वजह से जग्गा शायद रिंग नही सुन पा रहा था फोन की....
मैं सीधे गेट की और दौड़ा ...और सीधे कार के पास पहुँचा...ड्राईवर कहीं दिख नही रहा था .....चाबी उसी के पास थी .....बंगलो से बाहर निकला ....ऑटो को हाथ दिया और गोल चौक पर चलने को कहा ....उसने मना किया तो उसे दुगुना दाम देने की बात बोली ...मैं गोल चौक को जा रहा था लेकिन दिल बार-बार धड़क रहा था ...इतनी बेचैनी और वो भी एक अजनबी के लिए .....जग्गा को बार-बार फोन लगाया ...लेकिन उसने फोन रीसिव नही किया ...गोल चौक पहुँचा तभी एक फायर की आवाज कान में गिरी ....अफरा-तफरी मच गई ...मैं सीधे चौक की ओर दौड़ा ....जग्गा दिखा और उसकी रिवॉल्वर की सीध भी जो उस लड़के पर तनी हुई थी ....मैं भागकर उस लड़के की तरफ गया गोली चली लेकिन मैंने उसको टारगेट से तब तक हटा लिया था।
उस लड़के ने मेरी तरफ देखा ...और मैंने उसकी तरफ ...उसकी आँखों मे मेरे लिए घृणा थी और मेरी आँखों में उसके लिए सिर्फ स्नेह और वात्सल्य।
"तुम्हे चोट तो नही आई बेटा ...?"
" बेटा मत कहिये मुझे .....मैं जानता हूँ आप कौन हैं ...और आपके क्या काम हैं .....ये सब कुछ आप जैसे लोग की करवाते हैं ....आपको कोई फर्क नही पड़ता कि देश का युवा उसके नागरिक आप जैसे गुंडों और नेताओं की वजह से आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है।"
पुलिस आ चुकी थी...और हालात बहाल हुए ....उस लड़के को पुलिस ने अरेस्ट किया ......और अगले ही दिन मैंने उसकी बेल करवाई .....
लेकिन वो नही रुका ....उसकी आवाज जनसैलाब का रूप लेने लगी ....कॉलेज के लड़के-लड़कियाँ उसके समर्थन में अपनी आवाज का सहयोग उसे दे चुके थे और......फिर फोन बजा।
" वाह राघव ....खाता और पलता हमारे टुकड़ों में है ....और हमारे दुश्मन की न सिर्फ जान बचाता है बल्कि उसकी रिहाई भी .....तुझे इसका ईनाम जल्द मिलेगा।"
मुझे पता था मैंने अंगार के छत्ते में हाथ डाल दिया है.....लेकिन उम्र के जिस पड़ाव में ..मैं खड़ा था वहाँ अब मुझे न जान की परवाह थी और न किसी दौलत -शोहरत की लेकिन मुझे अभिनव की चिंता थी ....मैंने कई बार उससे मिल कर उसको समझाया लेकिन वो मुझसे बात करने को तैयार ही नही हुआ।
सड़के आक्रोश से जमने लगी ...अभिनव का आंदोलन सरकार विरोधी तो अवश्य था लेकिन जन सहयोगी भी ....स्कॉलरशिप समय पर न मिलने की ये चिंगारी अब गरीब गुरबाओं के मेहनताने की उचित रकम ...उनकी पेंशन पर टालमटोली ...किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य ..सरकारी शिक्षा की बदहाली ...आदि -आदि ज्वलन्त मुद्दों पर केंद्रित हो गई .........
और फिर आया वो दिन जब सरकार के पाले कुछ अराजक तत्वों ने भीड़ में घुसकर हिंसा और आगजनी करनी शुरू कर दी .....और सरकार को इस आंदोलन को कुचलने के मौका हाथ लग गया .....ताबड़तोड़ लाठी चार्ज और वाटर कैनन दागे गए ...... और देश की वो भीड़ जो अपना नेता चुनती है उसकी कीमत चुकाने लगी .....कई निर्दोष बच्चे और बुजुर्ग भी इसकी जद में आये लेकिन ....सरकार की बेरहमी नही टूटी ........
अभिनव अस्पताल में जब जिन्दगी और मौत से जूझ रहा था ...तब जाकर मैं उससे मिलने गया...... आई .सी.यू के बाहर एक औरत खड़ी थी जो शायद अभिनव की माँ थी .....उसने मेरी तरफ पीठ करी हुई थी ....मैंने उनको प्रणाम किया और वो पलटी ......
"आशा तुम ...?"
वो मेरी पत्नी थी ....और समझ आया कि क्यों अभिनव के लिए मेरा खून हमेशा जोश मारता था ....उसने मुझे देख कर मुँह फेर लिया...और मैं बस वहीं खड़ा रहा ....भगवान की मेहर रही कि अभिनव बच गया।
और उस दिन पहली दफा मैंने भगवान के मंदिर की चौखट में न सिर्फ पैर रखा बल्कि गिड़गिड़ाकर प्रभु से अपने पापों के लिए क्षमा भी माँगी .....मैं खुश था कि मेरा बेटा मुझपर नही बिल्कुल अपने दादा पर गया है .....मेरे पिता एक फ्रीडम फाइटर थे ....उस दिन जब चपड़ासी ने डी.एम के केबिन में अभिनव के संदर्भ में ये बात बोली थी तभी मुझे अभिनव से हमदर्दी हो गई थी.....
आजाद भारत में सही मायनों में आजादी का एक सच्चा सूरज निकलने लगा ....एक नई सुबह ने पर खोलने शुरू कर दिए .....मुल्क बदल रहा था ...मुझे अपने बेटे पर नाज था लेकिन ये नाज ये सुबह ये सूरज सब अस्त होने लगा ....जब मेरे बेटे को लोगों ने अपना नेता घोषित कर दिया .....सत्ता ....कुर्सी ...पावर और जनसमर्थन ने उसके दादा के नैतिक मूल्यों को धीरे-धीरे खाना शुरू कर दिया .....क्रांति ने हाँलाकि कुछ क्षण हेतु वातावरण जरूर बदला लेकिन फिर सब सामान्य सा हो गया ........फोन बजा-
" राघव प्रीतमपुर की जमीन पर कब्जा उठवाओ ...तुम्हारा ईनाम तुम तक पहुँच जाएगा।"
ये आवाज थी अभिनव सिंह की ...जिसके दादा अर्जुन सिंह ने अंग्रेजों के भारत में कब्जे को लेकर हुँकार भरी थी ....... आशा ठीक मेरे पीछे खड़ी थी ....मेरी हार अभी नई थी ....लेकिन उस औरत की हार उसके पेट में पलते गर्भ से प्रारम्भ हो चुकी थी ....जिसने उसूलों के लिए बेउसूल को छोड़ा और आज फिर उसकी चौखट में आकर ...अपनी कोख़ के भ्रष्ट होने की मूक सूचना मुझे सुना रही थी।
Post a Comment