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देखा एक ख्वाब

देखा एक ख्वाब


पार्ट
1


जनेश्वर पार्क का मकाम और बड़ी सी मियाँ भाइयों की भीड़... हर तरफ खुशी की किलकारियां और चिमगोइयां। शरबत बट रहा है और लोग महजूज़ हो रहे हैं।

आखिर हों भी क्यों न... देश के सबसे लंबे चले मुकदमें का अंत जो होने वाला था। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी बनाम राममंदिर की सुनवाई पूरी कर ली थी और यह तय कर लिया था कि चूँकि इस तरह के पुरात्तविक प्रमाण नहीं मिले कि जिनसे यह प्रमाणित हो सकता कि वहां मंदिर ही था... तो अब कोई कारण नहीं बचता कि क्यों न विवादित परिसर मुसलमानों को सौंप दिया जाये और वहां पहले की तरह मस्जिद बनाई जाये।

मजमें में न सिर्फ लखनऊ के लोग थेबल्कि आसपास के जिलों से भर-भर के आये हुए मुसलमान थे... आज वे सब एक थेउनमें फिरकों का कोई भेद न था। वे एक दूसरे से गले मिल रहे थे और एक दूसरे के हाथ से शरबत पी रहे थे।

एकदम खुशियों भरा माहौल था कि हजरत ने खंखार कर कहना शुरू किया...

"जनाबे हाजरीन... जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हमारे केस की सुनवाई पूरी हो चुकी है और माननीय न्यायधीशों ने मन बना लिया है कि उस जगह हमारा ही मालिकाना अधिकार है... लेकिन फैसला देने से पहले एक सवाल हमसे पूछा गया है कि अगर हम मस्जिद बनायेंगे तो आखिर किस मसलक की बनायेंगे... मतलब वह शिया हजरात के लिये होगीदेवबंदी हजरात के लिये या बरेलवी हजरात के लियेतो क्यों न हम पहले यह आम राय बना लें कि मस्जिद हम में से किसकी रहेगी?"

सवाल सुनते ही मजमे में सन्नाटा खिंच गया और जो भीड़ अभी तक इस कदर मिश्रित थी कि अंदाजा लगाना मुश्किल था कि कौन किस फिरके का है... उसमें दरारें पड़ने लगीं और लोग इधर उधर होने लगे।
जल्दी ही वे तीन धड़ों में बटे अलग-अलग दिख रहे थे और मुट्ठियां भींच रहे थे... बाजुओं की मछलियां फड़क रही थीं और वे फैसलाकुन निगाहों से मुकाबिलों को परख रहे थे।

पार्ट 2


अपना रामखिलावन... हाँ-हाँ वही रामखिलावन 'राजवंशी'... अपने पूरे कुनबे के साथ अयोध्या पंहुचा था... रामलला के दर्शन जो करने थे।

अब तो केस का फैसला भी हो चुका था और राम जन्म भूमि के फेवर में गया था। मुल्ले देखने के सिवा और कुछ नहीं कर सके थे... और देखते-देखते रामलला के भक्तों ने यह ऊंचा शानदार मंदिर बना डाला था। देखते हुए खिलावन का मन द्रवित हो गया और सीना गर्व से चौड़ा हो गया।

हाँ... यही तो था वह राम मंदिरजिसके सपने देखे थे उसने। कारसेवा की थीपुलिसिया डंडे खाये थे और कई रातें हवालात में बिताई थीं।

यह लंबी लाईन लगी हुई थी दर्शन करने वालों कीउसने परिवार को लाईन में लगाया और खुद भी उनके पीछे लाईन में लग गया।

अरे यह कौन... यह तो अपने गाँव के प्रधान हैं न... तिवारी जी। वे हाथ में डंडा संभाले व्यवस्था देख रहे थे।

तिवारी जी ने भी खिलावन को देख लिया और लपक कर उसके पास पंहुचे और उसे बांह से पकड़ कर अलग खींच लाये।

"यहां क्या कर रहे हो बे?"

"अरे परधान जीबड़ी इच्छा रहय घर मा सबकी रामलला क्यार दरसन केरीतो लिवाय लाये सबका।"

"अच्छा।"

"हाँ परधान जी... आज याद करित हन तो आंसू आय जात हयं। बानवे (92) मयहां कैसे हम सबय लोग साथयं माँ आये रहैं माहजिद तोड़ै। पहिले साला मुलायमवा कयसी गोली चलवाये रहे हम लोगन पर... कयसे डंडे खाये रहै पुलिस वालेन केरे।"

"हाँ-हाँ ऊ सब तो ठीक है लेकिन..."

"तब तो जवान रहै परधान जीअब तो लरका बच्चा बड़ा होइगे। कित्ती प्रतीक्षा करइक परी... कबहूं मुलायमकबहूं बहन जीकबहूं अकलेसवा। ऊ तो कहवरामललक मंदिर बनइक रहै तो अपनिन सरकार बनि गईअउर सब मजेम होइगा। तबहूं गाँव-गाँव कतनी मेहनत करे हन अप्पन सरकार बनावइक खातिन।"

"अबे ठीक हय। पर हुवां काहे लइन लगे हो बे।"

"अरे परधान जी... रामललक दरसन करइक खातिन... अउर का।"

"सरऊऊ मंदिर केरे अंदर जावय वाली लाईन है बे।"

"अरे अंदर नाय जइबे तो रामलला केरे दरसन कइसे करबे?"

"अबे पगला गये हो का... सरकार बन गयी हम लोगन की तो औकात भूल गये हो का। ऊ लाईन से निकालो सबको... अउर उधर दखिनै जउन लाइन दिख रही हैउधर तुम लोगन की है। उधर बड़ा सा शीशा लगा हय... वहीं सरे दरसन कर लेव जाइ केरे और निकल लेव।"

"अरे कइसी बात कर रहे हउ परधान जी। भूल गेवकइसे घर पइहां बीमार पड़ी महतारी का छोड़ केरेतोहरे साथ कारसेवा करय चल पड़े रहैं... महतारी का सहर अस्पताल नाय लइगे और तोहरे साथ हियां लाठी गोली खाय आये रहे। महतारी मरि गा पर रामलला केरी खातिन पीछे नाय हटे रहयं।"

"अबे तो रामलला पर अहसान किये रहव का बे... देख खिलावनपैर की जूती सर पर नाय रखी जात हय। चुपचाप अपन लोगन का इधर लाईन से निकाल अउर उधर लाईन लग जायके। उंघेन प्रसाद मिल जइहय और हाँ... उधरय दानपात्र रखा हय... समझ लिहे। अब टाईम न खराब करे और चुपचाप निकल ले।"

आखिरी बात कहते हुए प्रधान ने तीन बार हाथ की लाठी जमीन पर ठोकी थी।

खिलावन गंवार थापर यह इशारे तो पीढ़ियों से समझते आ रहे थे वह। चुपचाप उस लाईन से अपने परिवार को निकाल लिया और दक्षिण की तरफ बाहर से दर्शन करने वाली अपने लोगों की लाईन में लग गया।

उसने महसूस किया... कि कुछ ऐसा था जो आते वक्त उसके साथ था पर अब उसी के अंदर टूट गया था।

ख्वाब ही तो है


(समाप्त)
Written by Ashfaq Ahmad


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