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औरत


औरत


आज उन दो खुराफाती खबरचियों ने काम से लौटते हुए अब्दुल को पकड़ लिया।

"सुनो यार, यह जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड वालों ने औरतों के फार्म जमा कराये थे, उसमें तुम्हारे घर की तीनों ख्वातीनों के भी नाम थे।"

"तो?"

"तो हमें सरकार ने क्रास चेक करने पर लगाया है, कि वह औरतों ने खुद भरे हैं या फर्जी हैं। तो हमें तुम्हारे घर की औरतों के इंटरव्यू लेना है।"

"ना दें तो?"

"तो पुलिस लेकर आयेंगे फिर... अच्छा लगेगा?"

अब्दुल ने कसमसा कर हामी भर दी और दोनों को घर ले आया। अब्बा ने पहले तो तैश में आकर चार गालियां बकीं फिर पुलिस के नाम पर हथियार डाल दिये।

बैठके में दोनों खबरचियों को चोर की तरह बिठा कर बेगम बहू और बिटिया को ले आये, जो ऐसे डरी-सहमी थीं जैसे उनकी शामत आने वाली हो... दुपट्टे से तीनों चेहरा ढके थीं।

"सलाम... हम से डरिये मत अम्मा। हम आपके अब्दुल जैसे ही हैं... बस थोड़ी फॉर्मेल्टी पूरी करनी है।"

"जज... जी।"

"हम मुसलमानों के बारे में बहुत जानते नहीं हैं ना, बस सुने ही सुने हैं कि इस्लाम बहुत अच्छा मजहब है, औरत को बहुत ऊंचा रुतबा दिया गया है... बहुत बराबरी के अधिकार दिये हैं... तो वहीं जानना था, कि आप लोगों को अपनी मर्जी से जीने की कितनी आजादी मिलती है?"

"जी... जी।" तीनों बोल पड़ीं।

"तो आप लोग अपने अधिकारों से खुश हैं?"

अम्मा की निगाहें अब्बा की ओर उठ गई और बड़े मियां झुंझला पड़े-- "अरे हमें का देख रई... उसे बताओ।"

"जी... हम खुश हैं।" कांपती हुई आवाज़ में अम्मा बोल पड़ीं।

"अभी मुस्लिम पर्सनल लॉ वालों ने अपने समाज की औरतों के बीच एक सर्वे कराया था कि मुस्लिम समाज की ख्वातीन मौजूदा शरई निजाम से खुश हैं और उसमें कोई बदलाव नहीं चाहतीं... तीन तलाक के मुद्दे पर वह बोर्ड के साथ हैं। इस विषय पर उन्होंने लाखों फॉर्म जमा कराये थे। उनमें आप तीनों की तरफ से भी वह फार्म भरे गये थे... आपने खुद भरे थे?"

"कैसे फार्म?" अम्मा से लेकर बिटिया तक अचकचा गईं और बाप भाई को मुंह बांयें देखने लगीं।

"अरे वह... वह..." अब्बा जी उलझ गये और थूक गटकते हुए बोले, "अरे वह बताए नहीं थे, कि फॉर्म भर रहे हैं तुमाई तरफ से... पूछ पूछ के तो भरे थे।"

"अच्छा वह... हां हां, हमई भरे थे।" अम्मा ने कांप कर बात संभाली।

"का लिखा था उसमें?" खबरची ठहरे घाघ... पूछ ही लिया।

"अमा तुम नुक्ताचीनी न करो... जो बताए वई लिखा था।" अब्बा बेगम की बेबसी देख कर झुंझला पड़े।

"अच्छा छोड़िये... भाभी जी आप बताइये, जब आपकी शादी हुई तो कितनी मैहर रखे थे?"

"जी... डेढ़ तोला सोना।" भाभी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया।

"और यह डेढ़ तोला सोना डिसाइड कौन किया? आप खुद या आपके घर वाले यह तय कर दिये, कि आपको इतनी मेहर चाहिये?"

"कैसी बातें कर रहे हैं आप..." इस बार बीवी की बेबसी देखकर अब्दुल पर तिलमिला उठा, "घरवाले ही तय करते हैं... लड़की से थोड़े पूछा जाता है।"

"बस यही जानना था भाई, गुस्सा मत हो। अच्छा आप पसंद करेंगी कि आप कभी खुदा ना करे बेहोश हॉस्पिटल में पड़ी हों और अब्दुल आपको व्हाट्सएप पर तीन बार तलाक लिख दे और आपका बोरिया बिस्तर बंध जाये एक झटके से?"

कल्पना से भी भाभी की आंखें छलक पड़ीं... मुंह से बोल ना फूटा, तो अब्बा बिफर पड़े, "केसी बकवास कर रऐ... अब्दुल काहे देने लगा तलाक?"

"देने वाले भी इंसान ही होते हैं... उनके पंख नहीं लगे होते। बात तरीके की है, सही मानते हैं या गलत... बहू ही नहीं बेटी के साथ भी हो तो?"

औरतों के मुंह से बोल ना फूटा... दोनों मर्द भी चुप रहे। फिर थोड़ी देर बाद अटकते हुए बोले, "जो हमारे धर्म में हैं वह सही है।"

"अच्छा छोड़िये... यह बताइये भाभी जी, कि विधि आयोग ने भी पर्सनल लॉ को खत्म करके, कामन सिविल लॉ को लागू करने पे रिफ्रेंडम मांगा था... आपने लिखा, आप इसका विरोध करती हैं। क्या वाकई में?"

"जी।" सवाल आसान था तो भाभी की जान में जान आई।

"क्या छूट मिली है पर्सनल लॉ के नाम पर मुसलमानों को, जो खत्म हो जाने से आपको ऐतराज है... बता सकती हैं?"

"जी।" शब्द फिर हलक में फंस गये और बेबस निगाहें शौहर और ससुर पर जा टिकीं।

"मतलब विरोध किस बात का है वह पता नहीं... खैर आप दोनों हजरात को पता हो तो बतायें।"

बड़ी देर बाद अब्बा बोल पाये, "हमें नहीं पता... मौली साहेब बोले, हमें विरोध करना है तो करना है।"

"बहुत खूब। अच्छा छोड़िये... बिटिया, आप बतायें... आप पढ़ते हो?"

"नहीं... पढ़ चुके इंटर तक।" बिटिया ने डरते-डरते बताया।

"उससे आगे क्यों नहीं पढ़े... आजकल तो लड़कियां हर तरह की पढ़ाई कर रही हैं।"

बिटिया ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला... फिर होंठ भींच कर शब्द वापस खींच लिये और अब्बा को देखने लगी।

"अरे हमें क्या देख रई।" अब्बा डपट पड़े, "बोलती काहे नई, कि पढ़ लिख कर कौन सी नौकरी करनी है... चूल्हा चौका ही करना है। इतना बहुत पढ़ लिये।"

बिटिया ने कांपते हुए अब्बा की बात पर सहमति दी।

"अच्छा इंटर तक भी गई हो तो साथ की लड़कियों को अलग-अलग कपड़े पहनते देखी होगी... मतलब जींस टीशर्ट वगैरा... तो खुद का भी दिल तो करता होगा कभी उनकी तरह कपड़े पहनने का?"

"जी।" झोंक में वह कह तो गई... पर अब्बा की करख्त "क्या" निकलने से पहले संभल गयी, "नहीं नहीं... हम वह सब बेहूदा कपड़े क्यों पहनें।"

"अच्छा अब इंटरव्यू खत्म। फिक्र ना करें ...हम आप के पक्ष में ही रिपोर्ट देंगे लीजिये, इस खुशी में आप लोग यह फनी वीडियो देखिये।"

खबरची ने एक वीडियो लगा कर मोबाइल उन्हें दे दिया और वह देख देख-देख कर मुस्कुराने लगीं।

"कमाल है... वीडियो देखकर हम तो हंसते-हंसते लोट पोट हो गये थे और आप बस मुस्कुरा कर काम चला रही हैं... अरे खुलकर हंसिये न।"

"हमारे यहां औरतें खुलकर नहीं हंसतीं... यह औरतों का ठहाके लगा कर हंसना बेशर्मी बेहयाई की अलामत है। समझे?" अब्बा गुर्रा पड़े।

"जी... समझ गया। समझ गया कि आप के यहां औरतों को बराबरी के सारे अधिकार हैं... और उनकी मर्जी का कितना खास ख्याल रखा जाता है। समझ गया कि आपके यहां औरत का दर्जा कितना बुलंद है... यही लिख देंगे। लाइये मोबाइल... चलते हैं। जय हिंद।"

वह मोबाइल लेकर चल दिये।

"वालेकुम सलाम।" अब्बा ने पीछे से हुंकार भरी।

और औरतों का वापस अपने काम पर लगने का हुक्म हो गया।

Written by Ashfaq Ahmad

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